बम की झूठी धमकी: डार्क वेब, वीपीएन पर निर्देश जारी करने से अदलत का इनकार
अमित रंजन
- 19 May 2025, 10:31 PM
- Updated: 10:31 PM
नयी दिल्ली, 19 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने विद्यालयों और अन्य स्थानों में बम की झूठी धमकियों के लिए डार्क वेब और वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) के इस्तेमाल पर निर्देश जारी करने से सोमवार को इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति अनीश दयाल ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और पुलिस आयुक्त के खिलाफ अवमानना याचिका में मामला बंद कर दिया, जिसमें विद्यालयों में बम की धमकी जैसी आकस्मिक स्थितियों से निपटने के लिए एक व्यापक तंत्र तैयार करने में उनकी ओर से विफलता का आरोप लगाया गया था।
अदालत ने कहा कि विद्यालयों में बम धमकियों से निपटने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा एक विस्तृत मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) अधिसूचित और कार्यान्वित की गई है। अदालत ने कहा कि कार्यकारी अधिकारी स्थिति से अवगत हैं और वे अपनी जिम्मेदारियों को जानते हैं। अदालत ने इस मुद्दे के नाजुक सुरक्षा पहलू को रेखांकित किया।
दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि उसके शिक्षा निदेशालय ने विद्यालयों में बम की धमकियों से निपटने के लिए एक व्यापक एसओपी तैयार किया है, जिसमें सीसीटीवी कैमरे लगाना, स्थल से निकलने की योजनाएं बनाना और नियमित सुरक्षा ऑडिट तथा मॉक ड्रिल जैसे कई उपाय शामिल हैं।
दिल्ली पुलिस ने अधिवक्ता फरमान अली के माध्यम से कहा कि एसओपी को 16 मई को अधिसूचित किया गया था, साथ ही पुलिस द्वारा सुझाए गए बदलावों को भी इसमें शामिल किया गया था।
संबंधित डीसीपी ने कहा कि चूंकि दिल्ली पुलिस की भूमिका निर्धारित कर दी गई है, इसलिए वे एसओपी को लागू करने के लिए एक अद्यतन परिपत्र जारी करेंगे।
अदालत याचिकाकर्ता अधिवक्ता अर्पित भार्गव द्वारा दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने अदालत के 14 नवंबर 2024 के आदेश का अनुपालन नहीं होने का दावा किया था। उक्त आदेश में सरकार और पुलिस को ऐसी चिंताओं को दूर करने के लिए विस्तृत एसओपी के साथ एक व्यापक कार्य योजना विकसित करने का निर्देश दिया गया था।
निर्देशों में सरकारी एजेंसियों और पुलिस को आदेश की तारीख से आठ सप्ताह के भीतर तंत्र विकसित करने की आवश्यकता थी। हालांकि, याचिकाकर्ता ने आदेश के निर्देश के तहत कार्य योजना नहीं होने की ओर इशारा किया।
याचिकाकर्ता ने कहा कि वे वीपीएन से निपटे नहीं हैं जो अब प्रमुख मुद्दा है क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है वह डार्क वेब के माध्यम से हो रहा है।
अदालत ने पूछा, ‘‘ऐसे लोग हैं जो इस बारे में जानते हैं। हम आपके कहने पर कार्यकारी को किसी विशेष तरीके से इसे करने का निर्देश नहीं दे सकते। वे अपनी ज़िम्मेदारियों को जानते हैं। ये विस्तृत एसओपी हैं। हम डार्क वेब आदि पर आगे निर्देश पारित करने के इच्छुक नहीं हैं। ये गंभीर मुद्दे हैं जिनसे कार्यकारी को निपटना होगा और वे चिंता को जानते हैं।’’
याचिकाकर्ता ने यह दलील अदालत की नवंबर 2024 की टिप्पणी के मद्देनजर दी थी, जिसमें कहा गया था कि "झूठी धमकियां, विशेष रूप से डार्क वेब और वीपीएन जैसे परिष्कृत तरीकों के माध्यम से दी जाने वाली, केवल दिल्ली या भारत तक ही सीमित नहीं हैं और ये एक वैश्विक समस्या है, जो दुनिया भर में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए चुनौती बनी हुई हैं।’’
सरकार ने विद्यालयों में बम की धमकियों से निपटने के लिए एसओपी अधिसूचित किए हैं, जिनमें सीसीटीवी कैमरे लगाने, स्थान से बाहर निकलने की योजना बनाने और नियमित सुरक्षा ऑडिट और मॉक ड्रिल जैसे कई उपाय शामिल हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा कि एसओपी को 16 मई को मंजूरी दी गई थी और इसे पहले ही विद्यालयों और अन्य हितधारकों को इसके अनुपालन के लिए प्रसारित किया जा चुका है और यह छह महीने की प्रक्रिया होगी।
उसने कहा कि एसओपी में विद्यालयों में बम की धमकियों की स्थिति में सभी हितधारकों द्वारा अपनाए जाने वाले उपायों की रूपरेखा दी गई है। उसने कहा कि सभी विद्यालयों के प्रमुखों को तत्काल प्रभाव से अपने-अपने विद्यालय में एसओपी के क्रियान्वयन में सख्त अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए विद्यालयों को अब समीक्षा और आगे की कार्रवाई के लिए अपने संबंधित जिला अधिकारियों को मासिक सुरक्षा चेकलिस्ट जमा करना आवश्यक है।
चेकलिस्ट में अभ्यास की स्थिति, सुरक्षा उपकरण और आपातकालीन संपर्क सूचियों के अपडेट शामिल होंगे।
याचिकाकर्ता ने राजधानी में विद्यालयों को बार-बार मिलने वाली बम की धमकी वाली ईमेल से निपटने में दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस के लापरवाह रवैये की ओर इशारा करते हुए अवमानना का आरोप लगाया था।
भाषा अमित