नेपाल : प्रमुख मधेसी पार्टी ने समर्थन वापस लिया, ओली सरकार उच्च सदन में अल्पमत में आयी
शफीक अविनाश
- 26 Jun 2025, 08:41 PM
- Updated: 08:41 PM
(शिरीष बी प्रधान)
काठमांडू, 26 जून (भाषा) नेपाल में एक प्रमुख मधेसी पार्टी ने प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन से औपचारिक रूप से समर्थन वापस ले लिया है, जिससे सरकार नेशनल असेंबली (उच्च सदन) में अल्पमत में आ गई है।
हालांकि, उपेंद्र यादव के नेतृत्व वाली जनता समाजवादी पार्टी, नेपाल (जेएसपी-नेपाल) के इस फैसले से गठबंधन सरकार पर तत्काल कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन के पास प्रतिनिधि सभा में पर्याप्त संख्याबल है।
ओली की पार्टी ने कहा कि उन्हें जेएसपी-नेपाल द्वारा समर्थन वापस लेने का कोई कारण नहीं दिखता।
जेएसपी-नेपाल ने 23 और 24 जून को आयोजित पार्टी की कार्यकारी परिषद की बैठक के दौरान सरकार से अपना समर्थन वापस लेने का फैसला किया।
जेएसपी-नेपाल के उपाध्यक्ष शिवलाल थापा ने ‘पीटीआई’ को बताया, ‘‘अब कुछ दिनों में पार्टी अपने संसदीय दल की बैठक बुलाएगी और फिर संसद के अध्यक्ष को आधिकारिक रूप से अपने फैसले से अवगत कराएगी।’’
उन्होंने कहा कि पिछले साल सरकार का नेतृत्व संभालते समय ओली ने भ्रष्टाचार खत्म करने, सुशासन सुनिश्चित करने, आर्थिक प्रगति लाने और संविधान में संशोधन करने का वादा किया था।
थापा ने कहा, ‘‘हमने इन चार एजेंडों पर सरकार को समर्थन दिया था। हालांकि, अब एक साल बाद, हमें नहीं लगता कि सरकार इन मुद्दों को लेकर चिंतित है। इसलिए, हमने ओली के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया है।’’
नेशनल असेंबली में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) अपने 18 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है, उसके बाद नेपाली कांग्रेस के 16 सदस्य, ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के 11 सदस्य हैं जबकि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत समाजवादी) के पास आठ सीटें हैं।
जेएसपी-नेपाल के पास तीन सीटें हैं, राष्ट्रीय जनमोर्चा और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के पास एक-एक सीट है जबकि एक निर्दलीय है। इस प्रकार सत्तारूढ़ गठबंधन के पास 59 सदस्यीय सदन में 27 सीटें रह गई हैं।
पूर्व पर्यावरण मंत्री और सीपीएन-माओवादी सेंटर के केंद्रीय सदस्य सुनील मनंधर ने कहा कि जेएसपी-नेपाल के फैसले से गठबंधन सरकार पर तत्काल प्रभाव नहीं पड़ेगा, हालांकि यह सरकार पर कुछ नैतिक दबाव डालेगा।
उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के पास प्रतिनिधि सभा में पर्याप्त संख्याबल है, इसलिए फिलहाल इस कदम का कोई बड़ा प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा है।
भाषा शफीक