एलएलएम, समकक्ष कानूनी पाठ्यक्रम ऑनलाइन, हाइब्रिड माध्यम से प्रदान करना अनधिकृत: बीसीआई
पारुल मनीषा
- 30 Jun 2025, 05:30 PM
- Updated: 05:30 PM
नयी दिल्ली, 30 जून (भाषा) बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने कहा है कि एलएलएम या समकक्ष कानूनी पाठ्यक्रम को उसकी मंजूरी के बिना ऑनलाइन या हाइब्रिड (ऑनलाइन-ऑफलाइन दोनों) माध्यम से प्रदान करना अनधिकृत एवं गैर-मान्यता प्राप्त है।
बीसीआई ने दूरस्थ या हाइब्रिड माध्यम से ऑनलाइन पेश किए जाने वाले गैर-मान्यता प्राप्त मास्टर ऑफ लॉ (एलएलएम) पाठ्यक्रम के खिलाफ एक परामर्श जारी किया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और कानूनी शिक्षा पर बीसीआई की स्थायी समिति के सह-अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राजेंद्र मेनन की ओर से तैयार किया गया यह परामर्श पत्र आवश्यक कार्रवाई के लिए 25 जून को सभी उच्च न्यायालयों को भेजा गया था।
पत्र में कहा गया है, ‘‘यह दोहराया जाता है कि ऑनलाइन, दूरस्थ, मिश्रित या हाइब्रिड माध्यम से या एलएलएम (व्यावसायिक) और एमएससी (कानून) जैसे भ्रामक नामकरण के तहत बीसीआई की पूर्व मंजूरी के बिना पेश किया गया कोई भी एलएलएम या समकक्ष कानूनी पाठ्यक्रम अनधिकृत है और इसे किसी भी उद्देश्य के लिए मान्यता नहीं दी जाएगी।’’
पत्र में कहा गया है, ‘‘इन उद्देश्यों में रोजगार, अकादमिक नियुक्तियां, शोध पंजीकरण या न्यायिक सेवा और विभागीय पदोन्नति पात्रता शामिल है। ऐसी शैक्षणिक योग्यता शुरू से ही शून्य एवं अमान्य मानी जाएगी और उम्मीदवारों द्वारा इसका हवाला दिया जाना गलत बयानी समझा जाएगा।’’
पत्र में उच्च न्यायालयों से आग्रह किया गया है कि वे इस नियामक स्थिति का न्यायिक संज्ञान लें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी नियुक्ति, पदोन्नति या शैक्षणिक निर्णय ऐसी शैक्षणिक योग्यताओं के आधार पर न किए जाएं, जिन्हें बीसीआई की मंजूरी नहीं मिली है।
इसमें कहा गया है, ‘‘उच्च न्यायालय यह निर्देश जारी कर सकते हैं कि एलएलएम या संबंधित योग्यता के आधार पर नियुक्ति या पदोन्नति चाहने वाले किसी भी उम्मीदवार को बीसीआई की यह पुष्टि पेश करनी होगी कि पाठ्यक्रम कानूनी शिक्षा नियम, 2008 और 2020 के अनुपालन में संचालित किया गया था।’’
पत्र के मुताबिक, प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और निजी केंद्रों सहित कई संस्थानों ने बीसीआई से अनिवार्य अनुमोदन हासिल किए बिना गैर-पारंपरिक प्रारूपों के माध्यम से स्नातकोत्तर कानूनी शिक्षा पाठ्यक्रम पेश किए और इनमें केवल-ऑनलाइन, मिश्रित शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा मॉडल शामिल हैं।
इसमें कहा गया है, ‘‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कई संस्थानों को पहले ही कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है और वह कई संस्थानों को नोटिस जारी करने की प्रक्रिया में है, जिनमें नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी, भोपाल; भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर; ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, सोनीपत और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली शामिल हैं, जो बिना अपेक्षित अनुमोदन के ऑनलाइन, दूरस्थ, मिश्रित या हाइब्रिड प्रारूपों के जरिये एलएलएम या इसी तरह के नामित कानूनी पाठ्यक्रम की पेशकश करते हैं।’’
पत्र में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मेनन ने कहा है कि कुछ संस्थान अपने पाठ्यक्रमों को यह कहकर उचित ठहराने की कोशिश करते हैं कि वे ‘‘कार्यकारी’’ प्रकृति के हैं या पारंपरिक एलएलएम डिग्री के समकक्ष नहीं हैं।
उन्होंने कहा है, ‘‘हालांकि, ये दावे अपुष्ट पाए गए हैं, खास तौर पर उन मामलों में जिनमें विज्ञापनों, ब्रोशर और अकादमिक संचार में 'एलएलएम' शब्द का प्रमुखता से इस्तेमाल किया गया है। 'एलएलएम' शब्द, जो विधिशास्त्र में स्नातकोत्तर मास्टर डिग्री के लिए प्रयुक्त होता है, उसका इस्तेमाल काउंसिल ऑफ इंडिया से पैरामीटर अनुमोदन/मान्यता के बिना करना भावी छात्रों को गुमराह करने और इस योग्यता से जुड़ी वैधानिक एवं शैक्षणिक स्थिति का दुरुपयोग करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है।’’
पत्र में कहा गया है कि इस तरह के प्रयास वैधानिक रूप से अस्वीकार्य हैं और इन तरीकों से अर्जित किसी भी डिग्री या योग्यता को शैक्षणिक नियुक्तियों, यूजीसी-नेट पात्रता, पीएचडी पंजीकरण या न्यायिक सेवाओं के लिए मान्यता नहीं दी जाएगी।
इसमें कहा गया है, ‘‘एलएलएम कोई निजी प्रमाण पत्र नहीं है, बल्कि एक वैधानिक रूप से विनियमित डिग्री है। 'कार्यकारी' या 'पेशेवर' एलएलएम पाठ्क्रमों की आड़ में नामकरण का दुरुपयोग करना या नियमों को दरकिनार करना अकादमिक धोखाधड़ी के बराबर है।’’
भाषा पारुल