सरकारी स्कूलों को जोड़ने के कदम के खिलाफ याचिका खारिज
सं जफर राजेंद्र अमित सुरेश
- 08 Jul 2025, 12:00 AM
- Updated: 12:00 AM
लखनऊ, सात जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के 50 से कम छात्रों वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को नजदीकी संस्थानों के साथ जोड़ने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने यह निर्णय देते हुए कहा कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने को बाध्य है कि उसके द्वारा की गई किसी कार्रवाई से कोई भी बच्चा ना छूटे।
न्यायालय ने शुक्रवार को कृष्णा कुमारी और अन्य द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रखा था, जो राज्य सरकार के 16 जून के आदेश को रद्द करने का अनुरोध कर रहे थे।
याचिकाकर्ताओं के वकील एलपी मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी कि राज्य सरकार की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21ए के प्रावधानों का उल्लंघन करती है, जिसके तहत छह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार की गारंटी है।
उन्होंने तर्क दिया कि निर्णय के कार्यान्वयन से बच्चे अपने पड़ोस में शिक्षा के अधिकार से वंचित हो जाएंगे।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सरकार को इसके बजाय अधिक छात्रों को आकर्षित करने के लिए स्कूलों के मानक को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार ने आर्थिक लाभ या हानि को दरकिनार करते हुए जन कल्याण की दिशा में काम करने के बजाय इन स्कूलों को बंद करने का "आसान तरीका" चुना है।
हालांकि, अतिरिक्त महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया, मुख्य स्थायी वकील शैलेंद्र सिंह और बेसिक शिक्षा निदेशक का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने दलील दी कि सरकार का निर्णय नियमों के अनुसार लिया गया था और इसमें कोई खामी या अवैधता नहीं है।
उन्होंने कहा कि कई स्कूलों में बहुत कम या यहां तक कि एक भी छात्र नहीं है और स्पष्ट किया कि सरकार ने स्कूलों को "विलय" नहीं किया है, बल्कि उन्हें "जोड़ा" है, साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि कोई भी प्राथमिक स्कूल बंद नहीं होगा।
अदालत ने कहा, “यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार आबादी के सबसे निकट स्कूल खोलने को बाध्य है और इसकी अनुपस्थिति में परिवहन सुविधाएं आदि सुनिश्चित करना उसका दायित्व है।”
पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नई शिक्षा नीति 2020 पर विचार करते हुए कहा, “यह नीति स्वयं में सराहनीय है और सभी नागरिकों और इस देश के बच्चों को शुरुआती स्तर पर शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के संबंध में इसमें निर्देशन दिए गए हैं।”
अदालत ने कहा, “2020 की नीति के अनुरूप दिशानिर्देश में ऐसा कोई विरोधाभास नहीं है जिसे संविधान के अनुच्छेद 21ए का उल्लंघन कहा जा सके। इसलिए सरकार के 16 जून के आदेश में किसी तरह के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।”
भाषा सं जफर राजेंद्र अमित