गुरुदत्त की 100वीं जयंती : उनकी 10 कालजयी फिल्में, जो आज भी हैं नजीर
धीरज माधव
- 09 Jul 2025, 04:29 PM
- Updated: 04:29 PM
नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) हिंदी सिनेमा की जब कालजयी फिल्मों की बात आती हैं तो गुरुदत्त का नाम शीर्ष पंक्ति में आता है जिनकी 100वीं जयंती बुधवार को मनाई जा रही है। उन्होंने बॉलीवुड की कुछ बेहतरीन क्लासिक फिल्मों का निर्देशन, निर्माण किया और कुछ में अपने अभिनय से एक उच्च मापदंड स्थापित किया। उनकी ऐसी ही शीर्ष 10 यादगार फिल्में हैं :
‘‘प्यासा’’ : वर्ष 1957 में प्रदर्शित इस फिल्म को उनका ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ माना जाता है। इसमें गुरुदत्त को एक निराश कवि के रूप में दिखाया गया है। इसमें जीवनी संबंधी तत्व भी हैं क्योंकि यह उनके पिता की लेखक बनने की असफल रचनात्मक महत्वाकांक्षा का दस्तावेज है। इस फिल्म ने ‘‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या’’, ‘‘जाने वो कैसे लोग थे’’, ‘‘हम आपकी आंखों में’’, ‘‘जाने क्या तूने कहीं’’ के साथ-साथ ‘‘सर जो तेरा चकराये’’ जैसे अमर गाने दिये। फिल्म में अभिनेत्री माला सिन्हा, वहीदा रहमान और रहमान ने भी अभिनय किया।
‘‘कागज के फूल’’ : वर्ष 1959 में जब यह फिल्म सिनेमाघरों में लगी तो व्यावसायिक रूप से बुरी तरह असफल साबित हुई। गुरुदत्त इस असफलता से इतने दुखी हुए कि उन्होंने फिर कभी निर्देशन नहीं किया। लेकिन आज, यह हिंदी सिनेमा की सबसे पसंदीदा क्लासिक फिल्मों में गिनी जाती है।
‘‘प्यासा’’ की तरह इस फिल्म में भी जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया था। खासकर उनकी टूटी हुई शादी और अपने रचनात्मक प्रयासों से उनका असंतोष। यह एक ऐसे फिल्म निर्माता की कहानी है जिसके पास एक प्रेरणा और टूटा हुआ घर है, जिसे शराब की लत लग जाती है और वह फिल्म के सेट पर अकेले मर जाता है। यह सिनेमास्कोप में निर्मित भारत की पहली फिल्म थी और ब्रिटिश फिल्म संस्थान द्वारा इसे ‘1959 की सबसे महान संगीतमय फिल्म’ का दर्जा दिया गया है। इस फिल्म को इसकी तकनीकी दक्षता के लिए भी सराहा गया है।
साहिब बीबी और गुलाम : वर्ष 1962 में प्रदर्शित यह फिल्म बतौर निर्माता के रूप में उनकी आखिरी फिल्मों में से एक है। उन्होंने बंगाली उपन्यासकार विमल मित्र को न केवल अपनी किताब पर फिल्म बनाने के लिए मनाया बल्कि उसकी पटकथा लिखने के लिए भी राजी किया। इस फिल्म का निर्देशन गुरुदत्त के करीबी दोस्त अबरार अल्वी ने किया था। यह बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित है और अपनी शानो-शौकत गंवा चुके सामंती घराने में एक उपेक्षित गृह स्वामिनी के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें गुरुदत्त एक नौकर की भूमिका निभाते हैं जो उस महिला के अकेलेपन से सहानुभूति रखता है। यह मीना कुमारी के शानदार अभिनय वाली फिल्मों में से एक है। फिल्म में वहीदा रहमान भी जाबा की भूमिका में हैं और रहमान ने मीना कुमारी के पति की भूमिका निभाई है।
‘‘आर पार’’ : वर्ष 1954 में प्रदर्शित इस फिल्म में गुरुदत्त ने अपने दोस्त और हास्य अभिनेता जॉनी वॉकर, श्यामा, शकीला, जगदीप और जगदीश सेठी के साथ अभिनय करने के अलावा निर्देशन भी किया। यह एक व्यावसायिक फिल्म थी, जिसका विषय हास्य था और इसमें एक टैक्सी चालाक और दो महिलाओं के बीच रोमांस दिखाया गया था।
‘‘चौदहवीं का चांद’’ : मोहम्मद सादिक द्वारा निर्देशित और गुरुदत्त द्वारा निर्मित, 1960 की यह फिल्म बतौर निर्माता सबसे बड़ी व्यावसायिक हिट फिल्म थी। इसने ‘‘कागज़ के फूल’’ की असफलता के बाद उनकी प्रोडक्शन कंपनी को दिवालिया होने से बचाया। यह फिल्म उस समय लोकप्रिय ‘‘मुस्लिम सामाजिक’’ शैली की थी। इसमें गुरुदत्त, वहीदा रहमान और रहमान के बीच प्रेम त्रिकोण वाले संबंध थे। यह फिल्म आज भी मोहम्मद रफी द्वारा गाए गए अपने सदाबहार शीर्षक गीत के लिए याद की जाती है।
बाज़ी: गुरुदत्त के दोस्त देव आनंद और गीता बाली अभिनीत और 1951 में प्रदर्शित इस फिल्म से उन्होंने निर्देशन की शुरुआत की थी। इस फिल्म की सफलता ने हिंदी सिनेमा में भविष्य की ‘नॉयर’ फिल्मों (फिल्म की शैली जो सनकी दृष्टिकोण और प्रेरणाओं पर जोर देती है।)को आकार दिया, जिन्हें ‘‘बॉम्बे नॉयर’’ के नाम से जाना गया। यह फिल्म मदन (आनंद द्वारा अभिनीत) नामक एक जुआरी के इर्द-गिर्द घूमती है, जिस पर एक नर्तकी की हत्या का आरोप लगाया जाता है जिसे वह जानता था।
‘‘मिस्टर एंड मिसेज-55’’ : वर्ष 1955 में प्रदर्शित यह फिल्म एक संघर्षशील कार्टूनिस्ट और आधुनिक उत्तराधिकारी की कहानी पर आधारित एक रोमांटिक कॉमेडी है। इसमें कार्टूनिस्ट का किरदार स्वयं गुरुदत्त ने निभाया और उनके साथ मधुबाला मुख्य भूमिका में थीं। यह फिल्म अपने मुख्य किरदारों के बीच बेहतरीन आपसी तालमेल के लिए जानी जाती है। कहानी प्रेम, विवाह और लैंगिक भूमिकाओं के इर्द-गिर्द घूमती है।
‘जाल’: गुरुदत्त द्वारा निर्देशित एवं 1952 में प्रदर्शित इस फिल्म में देव आनंद और गीता बाली की मुख्य भूमिकाएं थीं। यह गोवा के मछुआरों के गांव की पृष्ठभूमि पर आधारित थी और मारिया नाम की एक महिला पर आधारित थी, जो आकर्षक और रहस्यमयी टोनी से प्यार करने लगती है।
बाज़ : वर्ष 1953 में प्रदर्शित एवं गुरुदत्त द्वारा निर्देशित यह फिल्म बतौर अभिनेता उनकी पहली फिल्म थी। इसमें गीता बाली और के. एन. सिंह की भी भूमिकाएं थीं। यह फिल्म नीलू नाम की एक युवती की कहानी पर आधारित है, जो खुद को दो पुरुषों..एक पुलिस इंस्पेक्टर और एक कुख्यात अपराधी के बीच फंसा हुआ पाती है।
‘‘बहारें फिर भी आएंगी’’: यह गुरुदत्त की आखिरी फिल्म थी जो 1966 में उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई थी। शहीद लतीफ द्वारा निर्देशित इस फिल्म को धर्मेंद्र, माला सिन्हा, तनुजा, देवेन वर्मा, रहमान और जॉनी वॉकर के साथ दोबारा शूट किया गया था। दत्त इसके निर्माता थे और 10 अक्टूबर, 1964 को 39 वर्ष की आयु में दत्त के निधन के बाद धर्मेंद्र ने उनकी जगह मुख्य भूमिका निभाई। यह फिल्म एक पत्रकार और उससे प्यार करने वाली दो बहनों के बीच प्रेम त्रिकोण को दर्शाती है।
भाषा धीरज