‘एक्सप्लेनर’ : बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण
आशीष मनीषा
- 09 Jul 2025, 04:38 PM
- Updated: 04:38 PM
पटना, नौ जुलाई (भाषा) बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है, जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने आरोप लगाया है कि सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को लाभ पहुंचाने के लिए यह कवायद हो रही है। हालांकि, निर्वाचन आयोग ने इस आरोप का खंडन किया है।
यह मामला उच्चतम न्यायालय भी पहुंच गया है। बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा यह प्रक्रिया लागू करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई होगी।
इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी इस प्रकार है:
विशेष गहन पुनरीक्षण क्या है?
निर्वाचन आयोग ने 24 जून को बिहार के आठ करोड़ मतदाताओं का घर-घर जाकर सत्यापन शुरू करने के लिए एक अधिसूचना जारी की।
इस प्रक्रिया के अनुसार, राज्य के सभी मतदाताओं को अपने नाम, पते और फोटो के साथ प्रपत्रों की प्रतियों पर हस्ताक्षर करने होंगे और उन्हें नए फोटोग्राफ और निवास के वैध प्रमाण के साथ वापस भेजना होगा।
हालांकि, जिन लोगों के नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे, उन्हें विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत अतिरिक्त दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे। विवाद का यह मुख्य कारण है।
यह कार्य एक लाख बूथ-स्तरीय अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है, जिनकी सहायता चार लाख स्वयंसेवक और राजनीतिक दलों द्वारा नामित हज़ारों बूथ-स्तरीय एजेंट कर रहे हैं।
राजनीतिक हंगामा क्यों मचा है?
विशेष गहन पुनरीक्षण पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने हमला बोला है, जिसने आरोप लगाया है कि सत्तारूढ़ राजग को लाभ पहुंचाने के लिए यह कवायद हो रही है। विपक्षी गठबंधन का दावा है कि निर्वाचन आयोग, जिसने महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को कथित तौर पर फर्जी मतदाताओं को जोड़कर मदद की थी, अब बिहार में ऐसे कई लोगों के नाम गलत तरीके से हटाने की कोशिश कर रहा है, जिनके सत्तारूढ़ दल को वोट देने की संभावना नहीं है।
तेजस्वी यादव के नेतृत्व और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी) लिबरेशन नेता दीपांकर भट्टाचार्य के समर्थन से ‘इंडिया’ गठबंधन ने विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रूख किया है। बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में पटना स्थित निर्वाचन आयोग कार्यालय तक एक विरोध मार्च निकाला गया।
इस बात पर भी चिंता व्यक्त की जा रही है कि निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी "संदिग्ध विदेशी नागरिकों के मामलों को नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी को भेजेगा", जिसके बारे में यह आशंका है कि इसका इस्तेमाल राज्य के सीमांचल क्षेत्र में बड़ी संख्या में "अवांछित" मतदाताओं के खिलाफ किया जा सकता है।
उनकी मुख्य चिंताएं क्या हैं:
* लक्षित समय : यह कार्य केवल बिहार में और चुनाव से ठीक पहले क्यों किया जा रहा है?
* मतदाता सूची से नाम कटने की आशंकाएं : उनका आरोप है कि निर्वाचन आयोग का उद्देश्य उन मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाना है जिनके राजग का समर्थन करने की संभावना नहीं है।
* दस्तावेजों का बोझ : 2003 की मतदाता सूची में शामिल न होने वाले तीन करोड़ से ज़्यादा लोगों को भारी दस्तावेज़ प्रक्रिया का सामना करना पड़ रहा है।
* युवाओं की जांच : 1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को अब अपने माता-पिता की जन्मतिथि और जन्म स्थान भी बताना होगा - अगर उनके माता-पिता 2003 में सूचीबद्ध नहीं थे।
* अस्वीकार्य बहिष्करण : आधार और मनरेगा कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेज़ वैध पहचान पत्र के रूप में स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
* मताधिकार से वंचित होने और दुरुपयोग की आशंका : निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों को "दावों और आपत्तियों" पर निर्णय लेने का अधिकार देने वाले प्रावधान ने चिंता बढ़ा दी है, तथा विपक्षी नेताओं को इसके दुरुपयोग की आशंका है।
निर्वाचन आयोग की प्रतिक्रिया क्या है?
निर्वाचन आयोग ने कहा है कि पुनरीक्षण प्रक्रिया वैध और संवैधानिक है। अब तक, घर-घर जाकर की गई इस प्रक्रिया में 2.88 करोड़ मतदाता (लगभग 36.5 प्रतिशत) शामिल हो चुके हैं।
ज़मीनी हक़ीक़त : नागरिक विशेष गहन पुनरीक्षण के कार्यान्वयन में गंभीर समस्याओं की ओर इशारा कर रहे हैं।
मुजफ्फरपुर के एक निवासी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, "मैं यह देखकर हैरान रह गया कि मेरे बेटे का पता श्मशान घाट के रूप में दर्ज था। मेरी बहू का पता खाली छोड़ दिया गया था।"
विपक्षी नेताओं का क्या कहना है : राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने कहा, "यह प्रक्रिया सिर्फ़ बिहार में ही क्यों शुरू की गई, जबकि 2003 में पूरे देश के लिए मतदाता सूची में इसी तरह का पुनरीक्षण किया गया था? और यह विधानसभा चुनावों से ठीक पहले क्यों शुरू किया गया? अगर यह इतना जरूरी था, तो पिछले साल के लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद यह काम क्यों नहीं शुरू किया गया।’’
भाकपा(माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का दावा है कि निर्वाचन आयोग ने कठिन रास्ता चुना है और 25 जुलाई तक इस प्रक्रिया को पूरा करना लगभग असंभव है, क्योंकि आठ करोड़ से अधिक मतदाता हैं, जिनमें से अधिकांश मानसून के दौरान बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में रहते हैं।
शीर्ष अदालत में याचिका : उच्चतम न्यायालय बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को सुनवाई करेगा। विपक्षी दलों - कांग्रेस, राकांपा (शरदचंद्र पवार), शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), समाजवादी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, भाकपा और भाकपा (माले) लिबरेशन - की संयुक्त याचिका सहित कई नयी याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई हैं, जिनमें चुनाव निर्वाचन द्वारा इस साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से पहले इस प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया है।
भाषा आशीष