विश्वविद्यालयों की स्थिति के लिए केवल राजनीति और सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता: नैयर
प्रशांत वैभव
- 09 Jul 2025, 10:28 PM
- Updated: 10:28 PM
नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) प्रख्यात शिक्षाविद् दीपक नैयर ने बुधवार को कहा कि भारतीय विश्वविद्यालयों की स्थिति के लिए केवल राजनीति और सरकारों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि संस्थान भी उतने ही दोषी हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के एमेरिटस प्रोफेसर ने यहां बी.जी. देशमुख व्याख्यान देते हुए कहा कि प्रवेश परीक्षाओं के केंद्रीकरण का औचित्य “संदिग्ध और त्रुटिपूर्ण” है।
उन्होंने कहा, “यह समझना जरूरी है कि हमारे विश्वविद्यालयों की स्थिति के लिए सिर्फ राजनीति और सरकारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। समुदाय और संस्थान के रूप में विश्वविद्यालय भी उतने ही दोषी हैं।”
नैयर का मानना है कि विश्वविद्यालयों में नेतृत्व की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आई है, जिसका एक कारण सरकारों द्वारा पक्षपातपूर्ण ढंग से की गई कुलपतियों की नियुक्तियां हैं, जो शिक्षाविद या प्रशासक के रूप में पर्याप्त तौर पर अच्छे नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि दूसरा कारण यह है कि अधिकतर कुलपतियों में सरकारों के सामने खड़े होने का “साहस और ईमानदारी नहीं होती”, “लेकिन यदि संभव हो तो उनकी नजर अगली नौकरी पर रहती है।”
नैयर ने रेखांकित किया कि भारत में विश्वविद्यालयों के बढ़ते राजनीतिकरण के लिए हर सरकार और हर पार्टी जिम्मेदार है।
उन्होंने कहा, “इससे स्वायत्तता का गला घोंटा जाता है और बिना किसी जवाबदेही के रचनात्मकता को दबाया जाता है।”
नैयर ने कहा कि प्रोफेसर या तो शिक्षक संघों की राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल हैं या फिर चुप्पी साधे हुए हैं, जो असहज सवालों से मुंह मोड़कर केवल संकीर्ण शैक्षणिक कार्यों में लगे रहना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग खड़े होते हैं, वे बहुत कम हैं।
नैयर ने कहा कि भाजपा न केवल केंद्र सरकार पर शासन करने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल है, बल्कि यह 28 राज्यों में से 19 में सत्तारूढ़ पार्टी भी है।
उन्होंने कहा, “भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा, जो उनके राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य को आकार देती है, अब भारत में उच्च शिक्षा पर गहरा प्रभाव डाल रही है।”
राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) में प्रवेश प्रक्रियाओं को केंद्रीकृत किए जाने का उल्लेख करते हुए, नैयर ने कहा कि इस कदम के पीछे का तर्क “संदिग्ध और त्रुटिपूर्ण” है।
उन्होंने कहा, “आप जानते हैं, आईआईटी ने दशकों, आधी सदी से, बिना किसी खामी के जेईई परीक्षा का संचालन किया है। अगर यह (व्यवस्था) खराब नहीं है, तो इसे ठीक मत कीजिए।”
शिक्षाविद् ने कहा कि स्वीकार्य गुणवत्ता वाली प्राथमिक शिक्षा आधार तैयार करती है।
उन्होंने जोर देकर कहा, “स्कूली शिक्षा में सार्वभौमिक पहुंच के साथ-साथ समान अवसर महत्वपूर्ण हैं, लेकिन गुणवत्ता के बिना पहुंच, पहुंच नहीं है।”
नैयर ने कहा कि विश्व स्तर तक पहुंचने के लिए हमारे विश्वविद्यालयों को अभी बहुत लंबा सफर तय करना है।
उन्होंने उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के असमान विस्तार का उल्लेख करते हुए कहा, “उत्कृष्टता केंद्रों के रूप में आईआईटी, आईआईएम... कोई सांत्वना नहीं हैं... उत्तरोत्तर सरकारों ने आईआईटी, आईआईएम की संख्या बढ़ाने की कोशिश की है... लेकिन इसका अपरिहार्य परिणाम अत्यधिक असमान गुणवत्ता और पहले से ही अकादमिक उत्कृष्टता प्राप्त कर चुके मौजूदा संस्थानों की व्यापक समानता को कमजोर होना है।”
अपने व्याख्यान के दौरान शिक्षाविद् ने कहा कि उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले छात्रों का एक बड़ा तबका अब भारत नहीं लौटता।
उन्होंने कहा, “और इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत के विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों की संख्या, यहां तक कि दक्षिण एशियाई देशों से भी, नगण्य स्तर तक गिर गई है। इसका श्रेय हमारे विश्वविद्यालयों के लोकाचार और गुणों को जाता है।”
भाषा प्रशांत