पश्चिम बंगाल: झाड़ग्राम में एक्सप्रेस ट्रेन की चपेट में आने से तीन हाथियों की जान गई
धीरज रंजन
- 18 Jul 2025, 06:09 PM
- Updated: 06:09 PM
झाड़ग्राम, 18 जुलाई (भाषा) पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर जिले में बांसतला रेलवे स्टेशन के पास एक एक्सप्रेस ट्रेन की चपेट में आकर तीन हाथियों की जान चली गई। पुलिस ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
पुलिस के मुताबिक यह घटना बृहस्पतिवार की रात को उस समय घटी जब हाथियों का एक झुंड वहां से गुजर रहा था। उसने बताया कि हाथियों का झुंड संभवतः झारखंड के दलमा जंगल से आया था।
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि खड़गपुर-टाटानगर सेक्शन पर तेज गति से आ रही जनशताब्दी एक्सप्रेस ने तीन हाथियों को पटरी पर कुचल दिया।
उन्होंने बताया कि उस इलाके से 30 हाथियों का झुंड गुजरने के कारण कुछ समय तक मृत हाथियों के पास तक जाना मुश्किल हो गया था।
मुख्य वन संरक्षक एस कुलंदैवे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी और रेलवे को झुंड की आवाजाही से तीन घंटे पहले सूचित करने के बावजूद, इस त्रासदी को टाला नहीं जा सका।
उन्होंने कहा, ‘‘झारखंड के दलमा वन क्षेत्र से पश्चिम बंगाल के इस हिस्से में आने वाले हाथियों के झुंडों का यह सामान्य गलियारा है और मानक प्रोटोकॉल के अनुसार, वन और रेलवे अधिकारियों का एक समूह स्थिति पर नजर रखता है ताकि कोई दुर्घटना न हो। प्रभागीय वन अधिकारी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया है और हम ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।’’
एक अन्य वन अधिकारी ने बताया कि घटनास्थल पर हाथियों के अवशेष बिखरे पड़े थे, जिससे पता चलता है कि पहले ट्रेन की चपेट में आने के बाद, तीन हाथियों में से कम से कम एक को उसी पटरी पर या बगल वाली पटरी पर ट्रेन ने टक्कर मारी और उसे घसीटता हुआ चला गया।
कुलंदैवे ने कहा कि रेलवे के साथ समन्वय को मजबूत करने के अलावा, वन विभाग स्थानीय लोगों को भी इसमें शामिल कर रहा है, जो इस क्षेत्र में झुंडों की आवाजाही से परिचित हैं और क्षेत्र में वन्यजीवों को बचाने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कुलंदैवे ने कहा कि बांकुड़ा के बरजोरा जैसे और अधिक हाथी अभयारण्य स्थापित करने की आवश्यकता है, जहां 35 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में लगभग 70 हाथी रहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे और अधिक अभयारण्य स्थापित करने पर विचार कर रहे हैं, ताकि हाथियों को बाहर निकलने की आवश्यकता महसूस न हो।’’
भाषा धीरज