काकोरी ट्रेन एक्शन: नकदी से भरा बक्सा लूटने के बाद जब क्रांतिकारियों के सामने खड़ी हो गई थी मुसीबत
अरूनव जफर जोहेब
- 09 Aug 2025, 07:22 PM
- Updated: 07:22 PM
(अरूनव सिन्हा)
लखनऊ, नौ अगस्त (भाषा) नौ अगस्त, 1925 की शाम थी। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन जुटाने के मकसद से युवा क्रांतिकारियों के एक समूह ने लखनऊ के निकट काकोरी में एक ट्रेन से सरकारी खजाना लूटने की साहसिक योजना बनाई।
उन्हें इस योजना को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। हालांकि काकोरी ट्रेन एक्शन के बारे में कुछ ऐसी चीजें भी रहीं, जिनके बारे में बहुत कम जानकारी सामने आई है।
इस साल इस घटना की 100वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस अवसर पर उन क्रांतिकारियों के परिजनों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को काकोरी ट्रेन एक्शन के बारे में कुछ रोचक जानकारी दी।
स्वतंत्रता सेनानी अशफाक उल्लाह खान के परपोते अशफाक उल्लाह खान ने ऐसे ही एक दिलचस्प वाकये के बारे में बताया।
उन्होंने कहा कि जब क्रांतिकारियों को लगा कि ट्रेन डकैती को पूरी तरह से अंजाम दे दिया गया है, तो उन्हें एक अप्रत्याशित समस्या का सामना करना पड़ा।
अशफाक ने कहा कि वह समस्या यह थी कि 4,600 रुपये रखे जिस संदूक को उन्होंने लूटा था वह उनकी कल्पना से कहीं अधिक मजबूत था, जिससे अशफाकउल्ला खान समेत योजना में शामिल लोगों की जान जोखिम में पड़ गई।
उन्होंने कहा, “इसके बाद मेरे परदादा (अशफाक उल्लाह खान) ने एक हथौड़ा उठाया और दो जोरदार वार से संदूक को चीर दिया।”
अशफाक ने मुस्कुरते हुए बताया कि ताला तोड़ने के बाद अशफाक उल्लाह खान ने हल्के-फुल्के अंदाज में अपने साथी शाकाहारी क्रांतिकारियों से कहा कि “यह ताला तोड़ना पूरी सब्जी खाने वालों के लिए संभव नहीं था।”
अशफाकउल्ला खान रामप्रसाद बिस्मिल और दूसरे क्रांतिकारियों के साथ काकोरी ट्रेन एक्शन में प्रमुख रूप से शामिल थे।
अशफाक (59) ने कहा, “मैंने भी उन लोहे के संदूकों को पहली बार तब देखा था जब मैं मात्र 15 वर्ष का था।”
आज 4,600 रुपये की राशि का कोई खास मूल्य नहीं है, लेकिन उस समय यह राशि बहुत बड़ी थी।
‘टैक्स लॉयर्स एसोसिएशन’ के उपाध्यक्ष आशीष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि आज के हिसाब से यह धनराशि लगभग 11 लाख रुपये के बराबर हो सकती है।
दिलचस्प बात यह है कि लूट की योजना नौ अगस्त के लिए नहीं बनाई गई थी।
काकोरी ट्रेन एक्शन में भाग लेने वाले रामकृष्ण खत्री के वंशज रोहित खत्री ने कहा कि शुरू में डकैती की योजना आठ अगस्त के लिए बनाई गई थी, लेकिन बाद में इसे अगले दिन के लिए टाल दिया गया।
रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी रोहित ने बताया कि काकोरी घटना के बाद से नौ दशकों से अधिक समय तक रेलवे में लोहे के बक्सों में दैनिक राजस्व ले जाने की परंपरा जारी रही और कुछ साल पहले ही इसे बंद किया गया है।
काकोरी ट्रेन एक्शन के समय से चली आ रही लाल रंग के लोहे के बक्सों में नकदी ले जाने की परंपरा सितंबर 2018 में बंद कर दी गई थी। उस व्यवस्था में, हर स्टेशन से प्राप्त नकदी को एक चमड़े के थैले में भर दिया जाता था। फिर उस चमडे के थैले को एक लोहे के संदूक में रख दिया जाता था। उस पर नंबर लिखा होता था।
उत्तर रेलवे (लखनऊ मंडल) के वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक कुलदीप तिवारी ने बताया, "लोहे का बक्सा मंडल के नकदी कार्यालय में आता था, जहां नकदी की गिनती होती थी। इसके बाद रेलवे अपने कर्मियों की मदद से नकदी को स्थानांतरित करता था। रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) सुरक्षा प्रदान करता था।"
अब यह व्यवस्था बदल गई है, क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक के नामित प्रतिनिधि स्टेशनों से नकदी एकत्र करते हैं।
वरिष्ठ डीसीएम ने बताया कि उस समय, नकदी का संदूक लोहे का बना होता था और इसकी लंबाई व ऊंचाई लगभग 2.5 फुट और चौड़ाई एक फुट से अधिक होती थी।
इस घटना के बाद 1927 में ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों राम प्रसाद 'बिस्मिल', अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी।
साल 2021 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस क्रांतिकारी घटना का नाम बदलकर काकोरी ट्रेन एक्शन कर दिया। आधिकारिक संचार में इस घटना के उल्लेख के लिए काकोरी ट्रेन एक्शन नाम इस्तेमाल किया गया है। इससे पहले इसे आमतौर पर 'काकोरी ट्रेन डकैती' या 'काकोरी ट्रेन षड्यंत्र' कहा जाता था।
भाषा अरूनव जफर