जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को विधानसभा में सदस्यों को मनोनीत करने का है अधिकार: गृह मंत्रालय
आशीष संतोष
- 11 Aug 2025, 03:26 PM
- Updated: 03:26 PM
श्रीनगर, 11 अगस्त (भाषा) केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में कहा है कि केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल को विधानसभा में पांच सदस्यों को मनोनीत करने की दी गई शक्तियां सभी समुदायों की समावेशिता और पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक हैं।
गृह मंत्रालय की टिप्पणी पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे "लोकतांत्रिक सिद्धांतों का घोर उल्लंघन" करार दिया और उमर अब्दुल्ला नीत सरकार से इस "अलोकतांत्रिक कदम" को चुनौती देने का आग्रह किया।
गृह मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा कि उपराज्यपाल की शक्तियां उनके विवेकाधिकार के अधीन हैं और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना भी उनका प्रयोग किया जा सकता है।
यह हलफनामा कांग्रेस नेता रवींद्र शर्मा की उस याचिका के जवाब में दाखिल किया गया जिसमें जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 15, 15-ए और 15-बी की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इन धाराओं के तहत उपराज्यपाल विधानसभा में स्वीकृत संख्या से अधिक पांच सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं।
गृह मंत्रालय ने कहा कि ये धाराएं यह सुनिश्चित करने के लिए लागू की गई हैं कि कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों सहित विविध आवाजें विधायी प्रक्रिया में योगदान दे सकें। केंद्र ने कहा, "केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए इन धाराओं (उपराज्यपाल को शक्ति प्रदान करने) को लागू करना आवश्यक था।"
इसमें कहा गया है कि विधानसभा में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। इसलिए, उपराज्यपाल को उन समुदायों या समूहों के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सदस्यों को नामित करने का अधिकार दिया गया है, जिनका पर्याप्त चुनावी प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता है।
केंद्र सरकार के अनुसार, उपराज्यपाल को बिना किसी सहायता और सलाह के एक वैधानिक पदाधिकारी के रूप में अपने विवेक से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का अधिकार है, न कि सरकार के विस्तार के रूप में।
हलफनामे के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के पास नयी दिल्ली और पुडुचेरी के शासन मॉडल की तरह कार्यकारी अधिकार हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के जम्मू, कश्मीर और लद्दाख मामलों के विभाग की अवर सचिव इप्सिता पॉल के हलफनामे में याचिका को ‘राजनीति से प्रेरित’ बताते हुए, इस पर जुर्माना लगाने के साथ खारिज करने का अनुरोध किया गया।
हलफनामे में कहा गया है, "जम्मू-कश्मीर के पास कोई विशेष दर्जा नहीं है और भारत की संसद द्वारा बनाए गए सभी कानून केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे।"
इन धाराओं के तहत उपराज्यपाल को विधानसभा में तीन सदस्यों (दो कश्मीरी प्रवासियों में से, जिनमें से एक महिला होनी चाहिए और पाक के कब्जे वाले कश्मीर से विस्थापित व्यक्तियों में से) को मनोनीत करने का अधिकार दिया गया।
गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा कि कश्मीरी प्रवासियों के समुदाय से दो सदस्यों का होना आवश्यक है, क्योंकि कई क्षेत्र दशकों से अशांत रहे हैं, जिसके कारण नागरिकों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है।
गृह मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर से विस्थापित लोगों में से विधानसभा में कोई प्रतिनिधि नहीं है, इसलिए भी यह प्रावधान जरूरी है।
विधान परिषद के पूर्व सदस्य और कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई के मुख्य प्रवक्ता शर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि इन धाराओं में अल्पमत सरकार को बहुमत में बदलने और बहुमत वाली सरकार को अल्पमत में बदलने की क्षमता है।
याचिका में उपराज्यपाल को निर्देश देने का अनुरोध किया गया कि वे जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए सदस्यों को मनोनीत न करें, क्योंकि इससे अल्पमत सरकार के बहुमत में बदलने की संभावना है।
पीडीपी अध्यक्ष ने केंद्र के हलफनामे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में चुनाव के बाद विधानसभा के लिए पांच सदस्यों को मनोनीत करने का निर्णय लोकतांत्रिक सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।
उन्होंने कहा, "देश में कहीं और केंद्र सरकार जनादेश को दरकिनार करने के लिए विधायकों को अपने हिसाब से नहीं चुनती। भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र में, जो लंबे समय से संघर्ष से ग्रस्त है, यह कदम शासन कम और नियंत्रण ज़्यादा लगता है।"
मुफ्ती ने कहा कि पूर्ववर्ती राज्य के "अवैध विभाजन", विषम परिसीमन और भेदभावपूर्ण सीट आरक्षण के बाद, सदस्यों को नामित किया जाना जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र पर एक और बड़ा प्रहार है। उन्होंने कहा, "प्रतिनिधित्व जनता के वोट से अर्जित किया जाना चाहिए, केंद्र के किसी आदेश से नहीं।"
पीडीपी प्रमुख ने कहा, "इसे मानक नहीं बनने दिया जा सकता। उम्मीद है कि उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार इस अलोकतांत्रिक परंपरा को चुनौती देगी, क्योंकि अभी चुप्पी बाद में मिलीभगत साबित होगी।"
भाषा आशीष