तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी के खिलाफ टिप्पणी हटाने से शीर्ष अदालत का इनकार
अमित सुरेश
- 11 Aug 2025, 09:41 PM
- Updated: 09:41 PM
नयी दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी के खिलाफ सितंबर 2022 के अपने आदेश में की गई अपनी टिप्पणियों को हटाने से सोमवार को इनकार कर दिया। नौकरी के बदले नकदी मामले में शीर्ष अदालत ने सेंथिल बालाजी के खिलाफ आपराधिक शिकायतों और अन्य फैसलों को बहाल करने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि वह 2022 के आदेश या मामले में दिए गए किसी भी फैसले में न तो कोई संशोधन करेगी और न ही ‘‘एक शब्द’’ बदलेगी। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने फैसला लिखने वाले न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद आदेशों में संशोधन के लिए शीर्ष अदालत में याचिका दायर करने की प्रथा की निंदा की।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘न्यायाधीशों द्वारा आदेश या निर्णय पारित करने के बाद आवेदन दायर करने की यह प्रथा ‘फोरम शॉपिंग’ (अनुकूल न्यायालय के चयन) जितनी ही खराब है। इन आवेदनों को केवल इसी आधार पर खारिज किया जा सकता है।’’
‘फोरम शॉपिंग’ से तात्पर्य किसी कानूनी मामले के लिए जानबूझकर किसी ऐसे विशिष्ट अदालत का चयन करने से है, जिससे अनुकूल परिणाम मिलने की उम्मीद की जाती है।
हालांकि, पीठ ने कहा कि आदेश में बालाजी के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों से निचली अदालत में लंबित कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी।
पीठ ने कहा, ‘‘हम कुछ भी नहीं हटाएंगे, हम आदेश के एक भी शब्द को नहीं छुएंगे और हम किसी भी फैसले को न तो छुएंगे और न ही उसमें कोई बदलाव करेंगे। हालांकि, हम केवल यह स्पष्ट करेंगे कि इन टिप्पणियों का मुकदमे पर कोई असर नहीं होगा। यह आपराधिक न्यायशास्त्र का एक बुनियादी सिद्धांत है... बुनियादी सिद्धांतों का हमेशा पालन किया जाना चाहिए।’’
टिप्पणियों को हटाने के लिए तीन आवेदन मई 2023 के फैसले से संबंधित हैं, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को बालाजी के खिलाफ जांच करने की अनुमति दी गई थी, जबकि नये सिरे से जांच के लिए मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया गया था।
बालाजी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राहत का अनुरोध नहीं किया। उन्होंने इसके बजाय अदालत से यह कहने का अनुरोध किया कि उसकी टिप्पणियों से मामले की सुनवाई प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
पीठ ने आदेश दिया, ‘‘आवेदनों का निस्तारण इस स्पष्टीकरण के साथ किया जाता है कि टिप्पणियों का लंबित मुकदमे पर कोई असर नहीं होगा।’’
शीर्ष अदालत ने बालाजी के आचरण पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने (बालाजी ने) फैसले में संशोधन के लिए दो साल के अंतराल के बाद आवेदन दायर किया, जब दोनों न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो चुके थे।
मामले में पीड़ितों में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि प्राथमिकियों को एकसाथ जोड़ने के खिलाफ चुनौतियों से संबंधित मामलों में शीर्ष पांच आरोपी पूर्व मंत्री और उनके करीबी सहयोगी थे। आरोपियों में इनके अलावा 25 अधिकारी और बाकी अन्य आरोपी व्यक्ति (रिश्वत देने वाले) थे।
उन्होंने यह भी कहा कि मामले की स्थिति रिपोर्ट से पता चलता है कि मामले में अभी 350 से अधिक गवाहों से जिरह होनी बाकी है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह प्राथमिकी को एकसाथ जोड़ने को चुनौती देने वाली याचिका पर 13 अगस्त को विस्तार से सुनवाई करेगी।
सत्ताईस अप्रैल को बालाजी ने एम. के. स्टालिन के नेतृत्व वाले तमिलनाडु राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले 23 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने बालाजी से "पद और स्वतंत्रता के बीच" चयन करने को कहा था। अदालत ने उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर उन्होंने तमिलनाडु में मंत्री पद नहीं छोड़ा तो उनकी ज़मानत रद्द कर दी जाएगी।
"नौकरी के बदले नकदी" घोटाले से जुड़े धनशोधन के एक मामले में जमानत मिलने के कुछ दिनों बाद बालाजी को तमिलनाडु के कैबिनेट मंत्री के रूप में बहाल कर दिया गया था।
वर्ष 2018 में तमिलनाडु पुलिस द्वारा तीन प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद और कथित घोटाले के पीड़ितों की शिकायतों के आधार पर आरोपों की जांच के लिए ईडी ने जुलाई 2021 में धनशोधन का एक मामला दर्ज किया था।
भाषा अमित