भारत के ऐतिहासिक खेल विधेयक ने कैसे आकार लिया
सुधीर आनन्द
- 12 Aug 2025, 08:26 PM
- Updated: 08:26 PM
(पूनम मेहरा)
नयी दिल्ली, 12 अगस्त जुलाई (भाषा) संसद में मंगलवार को ऐतिहासिक राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक पारित हो गया जिससे एक दशक से भी पहले शुरू हुआ वह सफर पूरा हो गया जिसमें इस संरचनात्मक सुधार के लिए प्रयासरत हितधारकों के लिए कई उतार-चढ़ाव आए।
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह अधिनियम बन जाएगा जिसमें अधिक समय नहीं लगेगा और इसके साथ भारत अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और जापान जैसे देशों की सूची में शामिल हो जाएगा जिनके पास सुव्यवस्थित प्रशासनिक व्यवस्था के लिए कानून है।
यह सब 2011 में शुरू हुआ जब तत्कालीन खेल मंत्री अजय माकन उस बुनियादी ढांचे के साथ आए जिसमें आलोचनाओं का सामना करने वाले देश के खेल प्रशासकों के लिए कुछ मानक स्थापित करने की बात कही गई थी।
प्रशासकों पर अक्सर सत्ता संघर्ष, आपसी कलह, वित्तीय हेराफेरी और इनमें से किसी भी मुद्दे पर काबू पाने के इरादे की कमी दिखाने का आरोप लगाया जाता रहा है।
लेकिन नए विधेयक के साथ राष्ट्रीय खेल बोर्ड, राष्ट्रीय खेल पंचाट और राष्ट्रीय खेल चुनाव पैनल के माध्यम से जवाबदेही तय होगी।
वर्तमान खेल मंत्री मनसुख मांडविया के पिछले साल कार्यभार संभालने के तुरंत बाद हितधारकों के साथ महीनों तक चली बातचीत के बाद इसने आकार लिया है।
यहां इस संहिता के महत्वपूर्ण बदलावों के साथ विधेयक में बदलने के सफर पर नजर डाली गई।
यात्रा:
* 2011 में मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक का मसौदा तैयार किया और इसे अनुमोदन के लिए कैबिनेट के समक्ष रखा। हालांकि प्रशासकों के लिए आयु और कार्यकाल की सख्त सीमा के कारण इसका कड़ा विरोध हुआ।
* जुलाई 2013 में मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक का संशोधित मसौदा तैयार किया और सुझाव तथा टिप्पणियां आमंत्रित करने के लिए इसे सार्वजनिक डोमेन में रखा। हालांकि इस विधेयक पर आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई और एक साल बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने खेल संहिता 2011 को बरकरार रखा।
* 2015 में राष्ट्रीय खेल विकास संहिता 2011 का पुनः मसौदा तैयार करने के लिए एक कार्य समूह का गठन किया गया था लेकिन इस समूह में भारतीय ओलंपिक संघ के शीर्ष अधिकारियों को शामिल करने को हितों के टकराव के मामले के रूप में दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
* 2017 में तत्कालीन खेल सचिव इंजेती श्रीनिवास की अध्यक्षता में ‘खेलों में सुशासन के लिए राष्ट्रीय संहिता (मसौदा) 2017’ तैयार करने हेतु एक समिति गठित की गई थी। ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता निशानेबाज अभिनव बिंद्रा, अंजू बॉबी जॉर्ज और प्रकाश पादुकोण जैसे अन्य महान खिलाड़ी तथा तत्कालीन आईओए प्रमुख नरिंदर बत्रा इस समिति के सदस्यों में शामिल थे।
इस मसौदा खेल संहिता को भी दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जिसने आदेश दिया कि समिति की रिपोर्ट एक सीलबंद लिफाफे में उसे सौंपी जाए।
* 2019 में मंत्रालय ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मुकुंदकम शर्मा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जिससे कि मसौदा खेल संहिता 2017 की समीक्षा की जा सके और इसे सभी हितधारकों के लिए स्वीकार्य बनाने के उपाय सुझाए जा सकें।
उसी वर्ष दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस समिति के गठन पर रोक लगा दी जो आज तक प्रभावी है।
* अक्टूबर 2024 में राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक का मसौदा जनता की टिप्पणियों और सुझावों के लिए जारी किया गया था। भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए), राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ), खिलाड़ियों, कोच, कानूनी विशेषज्ञों और यहां तक कि खिलाड़ियों के प्रबंधन से जुड़ी निजी संस्थाओं के साथ व्यापक परामर्श सत्र आयोजित किए गए थे। इस विधेयक को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) और विश्व एथलेटिक्स, फीफा और अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय महासंघों के साथ भी साझा किया गया था।
संसद में इसे पेश करने से पहले मंत्रालय को आम जनता सहित विभिन्न हितधारकों से 700 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं।
* 23 जुलाई 2025: विधेयक लोकसभा में पेश किया गया।
* 11 अगस्त 2025: खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने कुछ संशोधनों के साथ विधेयक को लोकसभा में पुनः प्रस्तुत किया। संक्षिप्त विचार-विमर्श के बाद इसे पारित कर दिया गया।
* 12 अगस्त 2025: विधेयक को राज्यसभा में पारित होने के लिए प्रस्तुत किया गया जहां दो घंटे से अधिक समय तक चली चर्चा के बाद इसे पारित कर दिया गया।
खेल संहिता से अंतर:
* आयु सीमा: खेल संहिता में प्रशासकों की आयु 70 वर्ष निर्धारित की गई थी लेकिन नए विधेयक में किसी पदाधिकारी को अपना कार्यकाल पूरा करने की अनुमति दी गई है, यदि नामांकन दाखिल करते समय उनकी आयु 70 वर्ष से कम थी। यदि अंतरराष्ट्रीय कानून और उपनियम संबंधित खेल संस्था में चुनाव लड़ने की अनुमति देते हैं तो चुनाव लड़ने के लिए पांच साल की अतिरिक्त छूट दी गई है।
* कार्यकाल: खेल संहिता में अध्यक्ष के लिए दो कार्यकाल और कोषाध्यक्ष तथा सचिव के लिए दो कार्यकाल के बाद ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ (ब्रेक) के साथ तीन कार्यकाल की अनुमति थी। नया खेल विधेयक पदाधिकारियों (अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष) को अधिकतम 12 वर्षों के लगातार तीन कार्यकालों तक सेवा करने और ब्रेक के बाद कार्यकारी समिति के चुनाव के लिए पात्र बने रहने की अनुमति देता है।
* कार्यकारी समिति: खेल संहिता में समिति में महिलाओं के अनिवार्य प्रतिनिधित्व का कोई प्रावधान नहीं था जिसकी अधिकतम सदस्य संख्या 15 थी। नए विधेयक में यह अनिवार्य किया गया है कि कार्यकारी समिति में कम से कम चार सदस्य महिलाएं और उत्कृष्ट योग्यता वाले दो खिलाड़ी होने चाहिए।
* नियामक संस्था: खेल संहिता में राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) पर नजर रखने के लिए किसी नियामक संस्था का प्रावधान नहीं था जिससे मान्यता देने या रद्द करने का अधिकार खेल मंत्रालय के पास था लेकिन खेल प्रशासन विधेयक में एक राष्ट्रीय खेल बोर्ड के गठन का प्रावधान है जो यह भूमिका निभाएगा।
* राष्ट्रीय खेल पंचाट जो खेल विवादों का निपटारा करेगा, राष्ट्रीय खेल चुनाव पैनल जो एनएसएफ में चुनावों की देखरेख करेगा और आचरण आयोग खेल संहिता का हिस्सा नहीं थे। इस विधेयक के अधिनियम बन जाने के बाद इन सभी निकायों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
भाषा सुधीर आनन्द