महाभियोग से बचने के लिए न्यायमूर्ति वर्मा के पास इस्तीफा ही एकमात्र विकल्प: नियम
सुभाष रंजन
- 13 Aug 2025, 05:35 PM
- Updated: 05:35 PM
नयी दिल्ली, 13 अगस्त (भाषा) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक समिति के गठन की घोषणा की है और ऐसे में संसद द्वारा पद से हटाए जाने से बचने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पास इस्तीफा ही एकमात्र विकल्प बचा है।
जांच समिति में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अरविंद कुमार, मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता बी वी आचार्य शामिल होंगे।
बिरला ने मंगलवार को लोकसभा में कहा, ‘‘समिति यथाशीघ्र अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। जांच समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने तक प्रस्ताव (न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने का) लंबित रहेगा।’’
उन्होंने सदन को सूचित किया कि उन्हें गत 31 जुलाई को भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद और सदन में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित सत्ता पक्ष और विपक्ष के कुल 146 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव की सूचना प्राप्त हुई है।
उन्होंने कहा था कि उक्त सूचना में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद से हटाने के लिए राष्ट्रपति को एक समावेदन प्रस्तुत करने का प्रस्ताव है।
शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और उन्हें हटाने की प्रक्रिया से अवगत अधिकारियों ने बताया कि किसी भी सदन में सांसदों के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए न्यायमूर्ति वर्मा यह घोषणा कर सकते हैं कि वह पद छोड़ रहे हैं और उनके मौखिक बयान को उनका इस्तीफा माना जाएगा।
यदि वह इस्तीफा देने का फैसला करते हैं, तो उन्हें उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के बराबर पेंशन और अन्य सुविधाएं मिलेंगी।
अधिकारियों ने कहा कि लेकिन यदि उन्हें संसद द्वारा पद से हटाया जाता है, तो उन्हें पेंशन और अन्य लाभों से वंचित कर दिया जाएगा।
संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार, उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश ‘‘राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर वाले पत्र द्वारा पद से इस्तीफा दे सकता है।’’
न्यायाधीश के इस्तीफे के लिए किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती। एक सामान्य त्यागपत्र ही पर्याप्त है।
न्यायाधीश पद छोड़ने के लिए एक संभावित तिथि दे सकता है। ऐसे मामलों में, न्यायाधीश पद पर रहने की अंतिम तिथि से पहले अपना इस्तीफा वापस ले सकता है।
संसद द्वारा पद से हटाया जाना एक अन्य तरीका है।
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने नकदी बरामदगी विवाद में फंसे न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था।
न्यायमूर्ति वर्मा के राष्ट्रीय राजधानी स्थित आधिकारिक आवासीय परिसर से मार्च में अधजली नोटों की गड्डियां मिलने के बाद उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया था।
न्यायमूर्ति खन्ना की रिपोर्ट मामले की जांच करने वाले तीन न्यायाधीशों के आंतरिक पैनल के निष्कर्षों पर आधारित थी।
सूत्रों ने पूर्व में बताया था कि न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था।
न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, जब किसी न्यायाधीश को पद से हटाने का प्रस्ताव किसी भी सदन में स्वीकार कर लिया जाता है, तो (लोकसभा) अध्यक्ष या सभापति, जैसा भी मामला हो, तीन सदस्यीय समिति का गठन करेंगे। समिति उन आधारों की जांच करेगी, जिनके तहत न्यायाधीश को पद से हटाने (या दूसरे शब्दों में, महाभियोग) की मांग की गई है।
समिति में प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) या उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश, 25 उच्च न्यायालयों में से एक के मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद शामिल होते हैं।
नियम के अनुसार, एक समिति का गठन किया जाना चाहिए और फिर समिति को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है। रिपोर्ट सदन में पेश की जाएगी और महाभियोग के लिए चर्चा शुरू होगी।
न्यायमूर्ति वर्मा के राष्ट्रीय राजधानी स्थित आवास पर मार्च में आग लगने की घटना के बाद परिसर में अधजली नोटों की गड्डियां मिली थीं।
हालांकि, न्यायाधीश ने दावा किया था कि उन्हें इस नकदी के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त समिति ने कई गवाहों से बात करने और उनके बयान दर्ज करने के बाद न्यायमूर्ति वर्मा को अभ्यारोपित किया था।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामास्वामी और कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन ने भी महाभियोग की कार्यवाही का सामना किया था, लेकिन उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था।
नये संसद भवन में महाभियोग की कार्यवाही पहली बार होगी, जो न्यायमूर्ति वर्मा पर होगी।
भाषा सुभाष