न्यायालय पुलिस सुधार को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई को सहमत
धीरज प्रशांत
- 18 Aug 2025, 10:30 PM
- Updated: 10:30 PM
नयी दिल्ली, 18 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 2006 के उसके आदेश के बावजूद कथित तौर पर पुलिस सुधार नहीं करने और कुछ राज्यों में पुलिस प्रमुखों की अस्थायी तौर पर की जा रही नियुक्ति को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सोमवार को सहमत हो गया।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ याचिकाकर्ता और पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) प्रकाश सिंह की याचिका पर भी विचार करेगी, जिसमें एक ऐसी व्यवस्था लागू करने का अनुरोध किया गया है, जिसमें राज्य पुलिस प्रमुख की नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति हो।
प्रधान न्यायाधीश ने याचिकाओं को सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हुए कहा, ‘‘हम सभी मुद्दों पर विचार करेंगे।’’
कुछ अवमानना याचिकाओं सहित ये याचिकाएं शीर्ष अदालत के समक्ष सूचीबद्ध थीं और इनमें 2006 के फैसले का अनुपालन न करने का आरोप लगाया गया था, जिसमें पुलिस प्रशासन में सुधारों को अनिवार्य बनाया गया था ताकि पुलिस बल को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाया जा सके।
याचिकाकर्ता और पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आग्रह किया कि डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के समान होनी चाहिए। उन्होंने नियुक्तियों के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन का प्रस्ताव रखा।
भूषण ने दलील दी, ‘‘सीबीआई की तरह, राजनीतिक दुरुपयोग को रोकने के लिए राज्य पुलिस प्रमुख का चयन एक स्वतंत्र समिति के माध्यम से किया जाना चाहिए।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि पहले के फैसलों की भावना का उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘कार्यवाहक डीजीपी नहीं हो सकते। इस अदालत ने बार-बार ऐसी प्रथाओं पर नाराजगी जताई है। फिर भी राज्य कानून को दरकिनार करना जारी रखे हुए हैं।’’
झारखंड सरकार का पक्ष रखने के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है और डीजीपी के चयन में संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) की भूमिका पर फिर से विचार किया जाना चाहिए।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुख्यमंत्री पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि वह जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि हैं।
सिब्बल ने राज्य पुलिस नियुक्तियों में यूपीएससी की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह मामला भी ‘‘संघीय प्रकृति का’’ है क्योंकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है।
पीठ ने कहा कि यद्यपि वह सुधारों को लागू करने के लिए असाधारण न्यायाधिकार का प्रयोग कर सकती है, लेकिन अंततः विधायी हस्तक्षेप ही प्रभावी होगा। प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया,‘‘ यदि विधायिका कोई कानून बनाती है, तो क्या मान्य होगा... हमारे निर्देश या कानून?’’
पूर्व डीजीपी और याचिकाकर्ता प्रकाश सिंह ने व्यक्तिगत रूप से अदालत को संबोधित करते हुए कहा कि निगरानी की कमी के कारण मूल जनहित याचिका ‘‘निष्क्रय’’ है। उन्होंने कहा कि नियमित निगरानी के अभाव में राज्यों को अनुपालन में ढिलाई बरतने का मौका मिल जाता है।
न्यायमित्र राजू रामचंद्रन ने सुझाव दिया कि उच्च न्यायालयों को हर तीन महीने में कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए विशेष पीठ स्थापित करने का कार्य सौंपा जाना चाहिए।
पीठ ने 28 जुलाई को कुछ राज्यों में डीजीपी की अस्थायी नियुक्ति सहित कई मुद्दों की समीक्षा करने पर सहमति जताई थी।
भाषा धीरज