जिन्हें हम 'राष्ट्रविरोधी' कहते हैं, वे ही असल में परवाह करने वाले लोग होते हैं: अरुंधति रॉय
नेत्रपाल पवनेश
- 28 Aug 2025, 03:36 PM
- Updated: 03:36 PM
(फाइल फोटो के साथ)
(माणिक गुप्ता)
नयी दिल्ली, 28 अगस्त (भाषा) सुरक्षा मुझे घुटन देती है। शायद यह दूसरों की तरफ से एक असामान्य टिप्पणी हो, लेकिन अरुंधति रॉय की तरफ से नहीं, जिन्होंने अपने लेखन के लिए प्रसिद्धि और आक्रोश दोनों का सामना किया है।
चाहे वह उनका पहला उपन्यास हो जिसने उन्हें 1997 में बुकर पुरस्कार दिलाया और उन्हें स्टारडम तक पहुंचाया या फिर उनके बेबाक राजनीतिक लेख....।
भले ही उन्हें राष्ट्रविरोधी कहा जाता हो, लेकिन वह इस सबको सहजता से लेती हैं। उन्हें उनके शब्दों और विचारों के चलते ‘ट्रोल’ किया जाता रहा है।
बृहस्पतिवार को उनका बेलाग संस्मरण ‘मदर मैरी कम्स टू मी’ जारी हुआ।
उनका लेखन कुछ लोगों के लिए तीखा और दूसरों के लिए सीधा है। उनका कहना है कि यह ‘‘किसी चीज़ के प्रति प्रेम और परवाह की भावना’’ से आता है।
रॉय ने पीटीआई-भाषा को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैं तब लिखती हूं जब लिखने से ज्यादा चुप रहना कठिन हो जाता है।’’
यह बात उनके पहले राजनीतिक निबंध ‘कल्पना का अंत’ से ही स्पष्ट है, जिसमें वह परमाणु प्रसार और मानवता तथा पर्यावरण पर इसके विनाशकारी प्रभाव जैसे मुद्दों से दो-चार हुई थीं।
उन्होंने अपने बहुचर्चित प्रथम उपन्यास ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के बारे में कहा, ‘‘लोग समझ नहीं पाते कि कोई इतना परेशान क्यों होता है? मैं क्यों लिखती हूं? क्योंकि यह प्यार से उत्पन्न होता है। यह किसी चीज़ की परवाह से आता है। वरना, मैं क्यों परेशान होऊं, मैं अपने बुकर पुरस्कार या जो भी है, उसका आनंद क्यों न लूं?’’
स्पष्टवादी रॉय ने कहा, ‘‘लगभग सभी लोग जिन्हें हम ‘राष्ट्र-विरोधी’ कहते हैं, वही लोग हैं जो इसकी परवाह करते हैं। और फिर जो लोग खुद को महान राष्ट्रवादी कहते हैं, मैं शर्त लगा सकती हूं कि उनमें से 99 प्रतिशत लोग ‘टैक्स’ चोरी कर रहे हैं, अपने बच्चों को अमेरिका भेज चुके हैं, या यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं कि इस देश में जो कुछ भी हो रहा है उसका असर उनकी निजी संपत्ति या उनकी किसी भी बकवास पर न पड़े।’’
वह एक लेखिका और एक कार्यकर्ता हैं, लेकिन अगर दोनों को एक साथ जोड़ दिया जाए तो उनका कहना है कि यह एक ऐसा ‘लेबल’ है जो उन्हें बेतुका लगता है, कुछ-कुछ ‘‘सोफा-बेड’’ जैसे अजीब शब्द की तरह।
उनकी नवीनतम कृति यह दर्शाती है कि रॉय ने जीवन के उतार-चढ़ावों को कैसे पार किया और वह शख्स बनीं जो आज वो हैं - एक ऐसी शख्सियत जो सुरक्षित स्थानों की अपेक्षा सबसे जोखिम भरे स्थानों में सुकून तलाशती है।
उन्होंने कहा, ‘‘समय के इतिहास में सबसे खतरनाक जगह लेखन रहा है। मुझे कभी यह भ्रम नहीं रहा कि यह एक सुरक्षित जगह है। इसलिए मैं यहां ठीक हूं। क्योंकि यही सुरक्षा मुझे घुटन देती है।’’
पिछले दो दशकों में, रॉय ने गैर-काल्पनिक पुस्तकें लिखी हैं - जिनमें ‘द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ भी शामिल है। उन्होंने कई निबंध भी लिखे हैं, जिनमें कश्मीर, बड़े बांधों और वैश्वीकरण से लेकर भीमराव आंबेडकर जैसे मुद्दों, माओवादी विद्रोहियों के साथ बैठकों और व्हिसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन तथा हॉलीवुड अभिनेता जॉन क्यूसैक के साथ बातचीत जैसे व्यापक विषयों को शामिल किया गया है।
सीधी बात का निहितार्थ उनकी नवीनतम कृति में भी दिखता है, जो उनकी मां मैरी रॉय के साथ तनावपूर्ण संबंधों पर केंद्रित है। मैरी रॉय एक प्रसिद्ध शिक्षाविद् और महिला अधिकार कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने केरल की सीरियाई ईसाई महिलाओं को उनके पिता की संपत्ति में समान अधिकार दिलाने के लिए ऐतिहासिक मुकदमा लड़ा था।
रॉय ने कहा कि यह पुस्तक 2022 में 89 वर्ष की आयु में मैरी के निधन से उत्पन्न हुई यादों और भावनाओं के प्रवाह से भरी है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने यह पुस्तक इसलिए लिखी क्योंकि मुझे लगता है कि मेरी मां ऐसी शख्सियत हैं जिनके बारे में बातों को दुनिया के साथ साझा किया जाना चाहिए।’’
‘मदर मैरी कम्स टू मी’ में रॉय के उथल-पुथल भरे जीवन की गहरी झलक मिलती है, जिसमें वह लंबे समय से दबी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करती हैं और अपनी कठोर, दृढ़निश्चयी मां के साथ अपने समीकरण को याद करती हैं।
वह इस किताब को न तो कोई निर्णय मानती हैं, न ही कोई आरोप, और न ही कोई ‘‘जीवनी’’। उनका कहना है कि एक लेखक के लिए सबसे दिलचस्प बात ‘‘बिना किसी समाधान के लिखना’’ है।
रॉय (63) ने कहा, ‘‘मैंने कभी भी उनकी बात का जवाब नहीं दिया... मैं इस पूरे समय चुप रही... मैं उनके बारे में कोई राय नहीं बनाने की कोशिश करती हूं। मुझे नहीं पता कि यह सही है या गलत, लेकिन मैंने कोशिश की और मुझे लगता है कि मैं इसमें सफल रही।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एक लेखिका के तौर पर मैं बस यही सोचती हूं कि वह अपने आप में एक अनोखा किरदार हैं। यह मुश्किल था। लेकिन जो लिखना मुश्किल नहीं है, उसे लिखने का क्या मतलब है? जो लिखना मुश्किल नहीं है, उसे लिखने का कोई मतलब नहीं है।’’
वर्ष 2024 का ‘पेन पिंटर प्राइज’ प्राप्त करने वाली रॉय ने जहां प्रशंसकों से प्रशंसा अर्जित की है, वहीं उन्होंने अपने पुतले जलाए जाने, आपने कार्यक्रमों को बाधित किए जाने, देशद्रोही कहे जाने और पाकिस्तान चले जाने के लिए कहे जाने जैसी परिस्थितियों का भी सामना किया है।
वास्तव में, ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ से उनकी प्रसिद्धि में तेजी से वृद्धि विवादों से अछूती नहीं रही।
उन पर अश्लीलता का आरोप लगाया गया, जो उनके खिलाफ दर्ज तीन आपराधिक मामलों में से पहला था। इनमें से एक मामले में ‘नर्मदा बचाओ’ आंदोलन के दौरान बड़े बांधों के निर्माण का विरोध करने पर उन्हें एक दिन जेल में बिताना पड़ा था।
इस अगस्त में, उनकी पुस्तक ‘आज़ादी’ उन 25 पुस्तकों में शामिल है, जिन्हें जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने क्षेत्र में ‘‘झूठे विमर्श और अलगाववाद’’ को बढ़ावा देने के कारण प्रतिबंधित कर रखा है।
मेघालय में 1961 में जन्मी लेखिका ने 18 वर्ष की उम्र में केरल स्थित अपना घर छोड़ दिया और विभिन्न व्यवसायों में काम करते हुए गुजारा किया, जिसमें राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान में नौकरी, ‘मैसी साहब’ में अभिनय और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त ‘इन विच एनी गिव्स इट दोज़ वन्स’ में अभिनय और पटकथा लेखन दोनों शामिल थे।
रॉय ने अपनी पुस्तक में याद किया है कि उनकी मां ने जोर देकर कहा था कि वह और उनके भाई ललित कुमार क्रिस्टोफर उन्हें केरल के कोट्टायम में उनके द्वारा स्थापित स्कूल पल्लीकूडम के छात्रों की तरह “श्रीमती रॉय” कहकर संबोधित करें।
यह किताब रॉय के अपने अलग हुए पिता (जिनसे वह पहली बार 25 साल की उम्र में मिली थीं), अपने प्यारे भाई, अपने ‘रोमांटिक पार्टनर्स’ और अपने पूर्व पति एवं प्रसिद्ध प्रकृतिवादी प्रदीप कृष्णन के साथ संबंधों का भी वर्णन करती है। यह सामाजिक मुद्दों और उसके बाद के विवादों, जिनमें क़ानून से उनका टकराव भी शामिल है, से उनके लगाव का भी वर्णन करती है।
पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया (पीआरएचआई) द्वारा प्रकाशित ‘मदर मैरी कम्स टू मी’ पुस्तक की कीमत 899 रुपये है, जो ऑनलाइन और ऑफलाइन रूप से बिक्री के लिए उपलब्ध है।
भाषा
नेत्रपाल