भारत में ऑटिज्म की जांच के लिए ‘गेट सेट अर्ली’ तकनीक शुरू की गई
सुरभि संतोष
- 31 Aug 2025, 04:33 PM
- Updated: 04:33 PM
मुंबई, 31 अगस्त (भाषा) बाल चिकित्सा थेरेपी के क्षेत्र में काम करने वाले और समावेशी शिक्षा मंच ‘बटरफ्लाई लर्निंग्स’ ने भारत में ‘ऑटिज्म’ की प्रारंभिक जांच को सुविधाजनक बनाने के लिए एक नियामक-अनुमोदित प्रौद्योगिकी की शुरुआत की है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डिएगो (यूसीएसडी) में ऑटिज्म सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की सह-निदेशक डॉ. कैरेन पियर्स ने कहा कि ‘गेट सेट अर्ली’ एक विषयनिष्ठ, साक्ष्य-आधारित मूल्यांकन प्रदान करने के लिए उन्नत ‘आई-ट्रैकिंग’ तकनीक (आंखों की गति और दृष्टि की दिशा को ट्रैक करने वाली तकनीक) और व्यवहार विज्ञान का उपयोग करता है।
‘बटरफ्लाई लर्निंग्स’ संगठन की सह-संस्थापक और सीईओ डॉ. सोनम कोठारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि ‘बटरफ्लाई लर्निंग्स’ भारत के सबसे बड़े और सबसे विविध बाजारों में पहुंच सुनिश्चित करने के लिए पहले चरण में मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, रायपुर, लखनऊ, नागपुर और दिल्ली जैसे शहरों को शामिल करते हुए ‘गेट सेट अर्ली’ को चरणबद्ध तरीके से शुरू करेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत में ऑटिज्म से पीड़ित अधिकतर बच्चे वर्तमान में चार से साढ़े चार साल की उम्र में क्लीनिक आ रहे हैं और तब तक उनके मस्तिष्क का महत्वपूर्ण विकास काफी हद तक प्रभावित हो चुका होता है। ‘गेट सेट अर्ली’ के साथ हम इस समय को बदल सकते हैं; भारत में पहली बार बच्चों में ऑटिज्म की पहचान 12 महीने की उम्र में ही की जा सकती है, जब मस्तिष्क सबसे अधिक सीखने अनुकूल होता है और हस्तक्षेपों का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। ऑटिज्म की जांच में पहले पहुंच प्रदान करके हम भारतीय परिवारों को अपने बच्चों के लिए बेहतर विकासात्मक परिणाम प्राप्त करने का अवसर दे रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 68 में से एक बच्चा और दुनिया भर में 100 में से एक बच्चा ऑटिज्म से प्रभावित है। इसलिए यह तकनीक बाल रोग विशेषज्ञों, शिक्षकों और अभिभावकों को 12 से 24 महीने की उम्र में यानी महत्वपूर्ण प्रारंभिक हस्तक्षेप के लिए समय समाप्त होने से बहुत पहले ही जोखिम की पहचान करने में सक्षम बनाती है।
डॉ. पियर्स ने कहा, ‘‘दो दशकों से भी अधिक समय से मेरा शोध ऑटिज्म का जल्द से जल्द पता लगाने के तरीके खोजने पर केंद्रित रहा है क्योंकि दीर्घकालिक परिणामों को बेहतर बनाने के लिए शुरुआती पहचान सबसे महत्वपूर्ण कारक है। ‘गेट सेट अर्ली’ एक बड़ी सफलता है, यह बच्चों के सामाजिक ध्यान की अनूठी प्रवृत्ति को पकड़ने के लिए ‘आई-ट्रैकिंग’ का इस्तेमाल करता है और उन्हें वस्तुनिष्ठ, मात्रात्मक डेटा में बदल देता है। कुछ ही मिनटों में बाल रोग विशेषज्ञ न केवल ऑटिज्म की पहचान कर सकते हैं बल्कि इसकी गंभीरता का भी आकलन कर सकते हैं जिससे परिवारों को समय पर जरूरत के अनुसार हस्तक्षेप शुरू करने के लिए एक स्पष्ट, प्रमाण-आधारित आधार मिल जाता है।’’
डॉ. कोठारी ने बताया कि इस तकनीक को भारत में नियामकीय मंजूरी हाल ही में अगस्त में मिली है। हालांकि, इस मॉडल को पहले ही अमेरिका में 200 से ज्यादा बाल रोग विशेषज्ञों द्वारा मान्यता दी जा चुकी है और इसका परीक्षण किया जा चुका है, जिससे हमें यहां इसे अपनाने के लिए एक मजबूत आधार मिलता है।
भाषा सुरभि