उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज होने के बाद उच्चतम न्यायालय ही एकमात्र विकल्प: कार्यकर्ता की साथी
सुभाष धीरज
- 02 Sep 2025, 07:30 PM
- Updated: 07:30 PM
नयी दिल्ली, दो सितंबर (भाषा) उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़ी साजिश के एक मामले में सितंबर 2020 से जेल में बंद कार्यकर्ता उमर खालिद की जमानत याचिका उच्च न्यायालय द्वारा खारिज किये जाने के बाद उसकी साथी ने मंगलवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय ही एकमात्र विकल्प बचा है।
बंज्योत्सना लाहिड़ी ने उम्मीद जताई कि खालिद को जल्द ही न्याय मिलेगा।
लाहिड़ी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘बिना किसी सुनवाई के किसी को पांच साल तक जेल में रखना अपने आप में जमानत का आधार है। लेकिन खालिद की याचिका को उच्च न्यायालय ने फिर से खारिज कर दिया। हमें इसका कारण समझ नहीं आ रहा है क्योंकि नागरिक होने के नाते हम न्याय के लिए केवल अदालतों का ही सहारा लेते हैं। हम उच्चतम न्यायालय जाएंगे, क्योंकि हमारे पास यही एकमात्र विकल्प बचा है।’’
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने भी खालिद की गिरफ्तारी के पांच साल पूरे होने पर 13 सितंबर को एक एकजुटता मार्च निकालने की घोषणा की है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व शोधार्थी खालिद पहली बार उस वक्त चर्चा में आया जब फरवरी 2016 में विश्वविद्यालय परिसर में कथित तौर पर भड़काऊ नारे लगाने के आरोप में अन्य छात्रों के साथ उस पर भी मामला दर्ज किया गया।
जेएनयूएसयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने आरोप लगाया कि छात्र कार्यकर्ता को जानबूझ कर निशाना बनाया जा रहा है जबकि हिंसा भड़काने के जिम्मेदार लोग आजाद घूम रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह पैटर्न हम लगातार देख रहे हैं कि प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने वालों को जमानत नहीं दी जाती। दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपी अब जेल से बाहर हैं, और उनमें से कुछ सरकार में मंत्री और विधायक भी हैं। छात्र कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया जाता है, जबकि मुख्य आरोपी खुलेआम घूमते हैं और उन्हें बहुत सम्मान दिया जाता है।’’
कुमार ने कहा कि 13 सितंबर को उमर खालिद को गिरफ्तार हुए पांच साल हो जाएंगे और ‘‘हम उस दिन एकजुटता प्रकट करने के लिए मार्च करेंगे, जैसा कि हम हर साल करते हैं।’’
फरवरी 2024 में, खालिद ने अपने वकील कपिल सिब्बल के साथ ‘‘परिस्थितियों में बदलाव’’ का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली और कहा कि वह मामले की सुनवाई कर रही अदालत में अपनी किस्मत आजमाएंगे।
इससे पहले दिन में, उच्च न्यायालय ने फरवरी 2020 के दंगों के पीछे कथित साजिश के संबंध में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत खालिद, शरजील इमाम और सात अन्य आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी।
अधीनस्थ अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए पीठ ने अभियोजन पक्ष के इस दलील को स्वीकार कर लिया कि हिंसा स्वतःस्फूर्त नहीं थी, बल्कि एक ‘‘खतरनाक मंसूबे’’ वाली ‘‘सुनियोजित षडयंत्र’’ का परिणाम थी।
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