उमर खालिद समेत अन्य की जमानत याचिका खारिज करने को वाम दलों ने ‘न्याय का उपहास’ बताया
नोमान देवेंद्र
- 03 Sep 2025, 07:38 PM
- Updated: 07:38 PM
नयी दिल्ली, तीन सितंबर (भाषा) दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाके में फरवरी 2020 में हुए दंगों के संबंध में “बड़ी साजिश” के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं को खारिज करने की वाम दलों ने बुधवार को आलोचना की और इसे “न्याय का उपहास” बताया।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में यह पांचवीं बार है जब उनकी जमानत याचिका खारिज की गई है और अब तक कोई आरोप तय नहीं किया गया है।
पार्टी ने एक बयान में कहा, "माकपा पोलित ब्यूरो दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उमर खालिद, शरजील इमाम और आठ अन्य को जमानत देने से इनकार करने की आलोचना करता है। ये सभी फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के पीछे कथित साजिश से जुड़े होने के कारण कठोर यूएपीए के तहत पांच साल से अधिक समय से हिरासत में हैं।"
बयान में कहा गया है “यह और भी अधिक परेशान करने वाली बात है कि पिछले पांच वर्षों से उनके खिलाफ आरोप भी तय नहीं किए गए हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय न्याय का उपहास है और इस सिद्धांत का खंडन करता है कि "जमानत देना नियम है और इनकार अपवाद है।"
वामपंथी पार्टी ने कहा कि ये 10 युवा बिना किसी दोषसिद्धि के पांच साल से अधिक समय से जेल में सड़ रहे हैं, जबकि कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर जैसे भाजपा नेता, जिन पर नफरत भरे भाषण देने का आरोप है, "बेखौफ घूम रहे हैं।"
माकपा ने कहा, "यह भी एक गंभीर न्यायिक विरोधाभास है कि मालेगांव बम विस्फोटों के आरोपियों जैसे प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य को बरी कर दिया गया, जबकि उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य को पांच साल से अधिक समय तक जेल में सड़ने के लिए मजबूर किया गया।"
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ने कहा कि युवा कार्यकर्ताओं को दिल्ली पुलिस द्वारा "बिना किसी विश्वसनीय सबूत के मनगढ़ंत" आरोपों के तहत जेल में डाल दिया गया है।
भाकपा (माले) लिबरेशन ने कहा, "दो सितंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में नौ कार्यकर्ताओं - शरजील इमाम (2044 दिन), खालिद सैफी (2015 दिन), मीरान हैदर (1980 दिन), गुलफिशा फातिमा (1972 दिन), शिफा उर रहमान (1955 दिन), उमर खालिद (1815 दिन), अतहर खान, मोहम्मद सलीम खान और शादाब अहमद - की जमानत याचिकाओं को खारिज करना न्याय का उपहास है, जिन्हें वर्षों से अन्यायपूर्ण तरीके से कैद रखा गया है।"
इसने आरोप लगाया, "असली दोषियों को जवाबदेह ठहराने के बजाय, सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ खड़े होने वालों और असंवैधानिक सीएए-एनआरसी के खिलाफ लोकतांत्रिक विरोध का नेतृत्व करने वालों का उत्पीड़न चुना है।"
इसने कहा, “हमें उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इस अन्याय और उपहास का संज्ञान लेगा और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को बरकरार रखेगा।”
भाषा नोमान