असम: विपक्षी दलों ने बिना कागजात के गैर मुसलमानों को भारत में रहने देने को लेकर भाजपा की निंदा की
राजकुमार माधव
- 03 Sep 2025, 10:41 PM
- Updated: 10:41 PM
गुवाहाटी, तीन सितंबर (भाषा) असम के विपक्षी दलों ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से गैर मुसलमानों को 2024 तक भारत में प्रवेश करने पर बिना यात्रा दस्तावेजों के रहने की अनुमति देने वाले आदेश को राज्य के साथ विश्वासघात करार देते हुए केंद्र और राज्य की भाजपा नीत सरकारों की आलोचना की।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (सीएए) का उद्देश्य बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदुओं, जैनियों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को देश में पांच साल रहने के बाद भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।
असम जातीय परिषद (एजेपी), कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने एक सितंबर की अधिसूचना को लेकर सरकार की आलोचना की। इस अधिसूचना में उन देशों के प्रवासियों के लिए भारत में रहने की समय सीमा 10 साल बढ़ा दी गई।
एजेपी अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने भाजपा पर हिंदू बांग्लादेशी वोटों के लिए असमिया लोगों के अस्तित्व को खतरे में डालने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, ‘‘वोट बैंक के जुनून में डूबी सरकार ने असमिया पहचान और अस्तित्व की कीमत पर समय सीमा बढ़ाने का फैसला किया है। सीएए की समय सीमा को 10 साल और बढ़ाकर भाजपा ने असम पर विदेशियों के 43 साल के बोझ को बढ़ाकर 53 साल कर दिया है। यह घोर अन्याय है।’’
बांग्लादेश से सटे असम में छह साल तक हिंसक विदेशी-विरोधी आंदोलन चला, जिसकी परिणति 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर के रूप में हुई। इस समझौते के तहत प्रवासियों की नागरिकता निर्धारित करने के लिए 25 मार्च, 1971 को अंतिम तिथि निर्धारित की गई और इस तिथि के बाद आने वालों का पता लगाकर उन्हें निष्कासित किया जाना था।
असम में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।
गोगोई ने कहा,‘‘यह असमिया लोगों के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा अपराध है। भाजपा सरकार अभूतपूर्व ऐतिहासिक अन्याय को जारी रख रही है और असम के लोगों के साथ विश्वासघात कर रही है।’’
असम विधानसभा में विपक्ष के नेता (कांग्रेस) देवव्रत सैकिया ने दावा किया कि असम में लगभग पांच लाख अवैध विदेशी रहेंगे जो असम समझौते के दायरे में नहीं आते हैं।
आप ने भी अधिसूचना का विरोध किया और नियम लागू करने के निर्णय को ‘तानाशाही’ करार दिया।
माकपा ने भी नई अधिसूचना की आलोचना की और सरकार से इसे तुरंत वापस लेने को कहा।
भाषा राजकुमार