श्रीलंका ने मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का विरोध किया
मनीषा दिलीप
- 08 Sep 2025, 04:13 PM
- Updated: 04:13 PM
कोलंबो, आठ सितंबर (भाषा) श्रीलंका ने सोमवार को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में अपने मानवाधिकार रिकॉर्ड पर किसी भी अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप का यह कहते हुए विरोध किया कि ऐसी कार्रवाइयां देश में न्याय और सुलह के लिए चल रहे प्रयासों को कमजोर करती हैं।
यूएनएचआरसी के 60वें नियमित सत्र की शुरुआत सोमवार को जिनेवा में हुई, जहां म्यांमा, श्रीलंका, अफगानिस्तान, सूडान, फलस्तीन और सीरिया सहित कई देशों पर रिपोर्ट और मौखिक अद्यतन जानकारी दी जाएंगी।
श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “श्रीलंका का मानना है कि बाहरी पहल केवल राष्ट्रीय प्रयासों में बाधा बनेंगी और लोगों के बीच ध्रुवीकरण को बढ़ावा देंगी।”
विदेश मंत्री विजिता हेराथ जिनेवा सत्र में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त की अगस्त में प्रकाशित रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देंगे। यह रिपोर्ट मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क की जून के अंत में श्रीलंका यात्रा के बाद तैयार की गई थी।
मंत्रालय ने कहा कि हेराथ परिषद से ‘‘परिवर्तनकारी सुधारों’’ के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक ‘‘स्थान और समय देने’’ की अपील कर सकते हैं, जिनकी सिफारिश रिपोर्ट में की गई है।
रिपोर्ट में श्रीलंका से अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की अधिकार क्षेत्र संबंधी रोम संविधि को अपनाने, आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पीटीए) के उपयोग पर रोक लगाने, ऑनलाइन सुरक्षा कानून जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाले कानूनों को रद्द या संशोधित करने, सुरक्षा बलों को गैर-न्यायिक तरीकों से परहेज करने के निर्देश जारी करने, और निगरानी गतिविधियों को समाप्त करने की सिफारिश की गई थी।
हालांकि, श्रीलंका ने कहा कि वह रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों और निष्कर्षों से सहमत नहीं है, विशेषकर अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई को लेकर।
श्रीलंका को विशेष रूप से 2009 में लिट्टे के साथ समाप्त हुए लंबे गृहयुद्ध के अंतिम चरणों के दौरान कथित मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर अंतरराष्ट्रीय जांच का सामना करना पड़ा है।
संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न संस्थाओं और मानवाधिकार संगठनों ने बार-बार कहा है कि श्रीलंका की घरेलू न्याय प्रक्रियाएं पर्याप्त नहीं हैं और अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही तंत्र की आवश्यकता है। लेकिन श्रीलंकाई सरकार का कहना है कि ऐसे बाहरी हस्तक्षेप देश की संप्रभुता का उल्लंघन करते हैं और स्थानीय सुलह प्रयासों को कमजोर करते हैं।
भाषा मनीषा