झारखंड: चंपई सोरेन ने 1980 में गुआ पुलिस गोलीबारी में मारे गए आदिवासियों को श्रद्धांजलि दी
सुरभि नेत्रपाल
- 08 Sep 2025, 07:09 PM
- Updated: 07:09 PM
जमशेदपुर, आठ सितंबर (भाषा) झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक चंपई सोरेन ने सोमवार को कांग्रेस पर ‘‘आदिवासी विरोधी रुख’’ अपनाने का आरोप लगाया और आदिवासियों एवं मूलवासियों से एकजुट होकर राज्य में धर्मांतरण तथा तेजी से बदलती जनसांख्यिकी के खिलाफ एक विशाल जन आंदोलन शुरू करने की अपील की।
पश्चिमी सिंहभूम जिले के गुआ में 1980 में झारखंड आंदोलन के दौरान ‘जल, जंगल, जमीन’ के लिए अपने प्राण देने वाले आदिवासियों को श्रद्धांजलि देते हुए सोरेन ने कहा कि अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन के दौरान हुई घटना में पुलिस गोलीबारी में कई लोग मारे गए थे।
सोरेन ने कहा, ‘‘हर साल हम यहां अपने शहीदों को श्रद्धांजलि देने और उनके सपनों के राज्य के लिए संघर्ष जारी रखने की प्रेरणा लेने आते हैं।’’
पत्रकारों से बातचीत में आदिवासी नेता ने कांग्रेस पर ‘‘लगातार आदिवासी विरोधी रुख अपनाने’’ का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, ‘‘1980 में जब पुलिस गोलीबारी हुई थी तब कांग्रेस सत्ता में थी। हर बार वे अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन को कुचलने पर तुले रहे क्योंकि वे इसके खिलाफ थे।’’
पूर्व मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया, ‘‘हमारे आदर्शों - बिरसा मुंडा, पोटो हो, सिदो-कान्हू, तिलका मांझी, फूलो-झानो द्वारा शुरू किए गए आंदोलनों का उद्देश्य आदिवासियों के ‘जल, जंगल और जमीन’ की रक्षा करना था। लेकिन कांग्रेस ने कभी समुदाय के हित में काम नहीं किया। इसके बजाय उसने हमारे आंदोलन को कुचलने के लिए गोलियों का इस्तेमाल किया।’’
राज्य में तेजी से बदलती जनसांख्यिकी के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)-कांग्रेस-राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठबंधन सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए सोरेन ने कहा कि आज भी आदिवासियों की पहचान और अस्तित्व दांव पर है।
उन्होंने कहा, ‘‘जब से कांग्रेस झारखंड में आई है, उसने न तो आदिवासियों और मूलवासियों का समर्थन किया है और न ही उनके अधिकारों की रक्षा की है।’’
सोरेन ने एक नए ‘जन आंदोलन’ का आह्वान करते हुए कहा, ‘‘झारखंड को अपनी जमीन बचाने के लिए एक और बड़े आंदोलन की जरूरत है, जिसे सदियों पुराने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के बावजूद खासकर संथाल परगना क्षेत्र में जबरन हड़पा जा रहा है।’’
रांची के नगरी में ‘‘हल जोतो, रोपो रोपो’’ आंदोलन के दौरान सरकार की हालिया कार्रवाई की निंदा करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘सरकार मालिकों से बिना किसी बातचीत के हमारी कृषि भूमि कैसे अधिगृहीत कर सकती है? सफल नगरी आंदोलन के माध्यम से हमने यह संदेश दिया है कि आदिवासी सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि उनकी जमीन और सामाजिक व्यवस्था पर लगातार हमले हो रहे हैं। इसलिए ऐसी आदिवासी-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए एक जन आंदोलन की आवश्यकता है।’’
भाषा सुरभि