जलवायु वित्त एक निर्णायक मुद्दा, भारत को 2070 तक 10 हजार अरब डॉलर की जरूरत होगी: भूपेंद्र यादव
पारुल पवनेश
- 11 Sep 2025, 09:26 PM
- Updated: 09:26 PM
नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बृहस्पतिवार को कहा कि जलवायु वित्त, जलवायु कार्रवाई के लिए ‘निर्णायक मुद्दा’ है और विकसित देशों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे कम कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने में ‘ग्लोबल साउथ’ का समर्थन करें।
‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है, जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित या अविकसित के रूप में जाना जाता है। ये देश मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका में स्थित हैं।
उद्योग मंडल फिक्की की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यादव ने कहा कि भारत को अपने ‘नेट-जीरो’ लक्ष्य को पूरा करने के लिए 2070 तक 10 हजार अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की आवश्यकता होगी।
‘नेट-जीरो’ का तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जिसमें मानव-जनित ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन वायुमंडल से हटाए गए कार्बन की मात्रा के बराबर हो।
पर्यावरण मंत्री ने वैश्विक वित्तीय प्रणालियों से पारदर्शिता, जवाबदेही और किफायत सुनिश्चित करते हुए निजी पूंजी का प्रवाह बढ़ाने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, “सार्वजनिक धन मौजूदा स्तर की समस्या पर ध्यान देने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता और न ही होगा। राजकोषीय गुंजाइश कम है। सार्वजनिक बजट और रियायती वित्त की भूमिका जोखिम कम करना, भीड़ को नियंत्रित करना और ऐसे नियम बनाना है, जो निजी पूंजी को मुक्त कर सकें।”
यादव ने कहा कि जलवायु वित्त, विकास वित्त है।
उन्होंने कहा, “स्वच्छ ऊर्जा, सक्षम शहर, जलवायु-अनुकूल कृषि और लचीला बुनियादी ढांचा अलग नहीं हैं; ये ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता की नींव हैं।”
यादव ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन का हवाला देते हुए कहा, “जलवायु कार्रवाई के लिए वित्त ही निर्णायक मुद्दा है। इसके बिना, 2030 एजेंडा और पेरिस समझौता केवल सपने बनकर रह जाएंगे।”
भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए मंत्री ने कहा कि ‘सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड’ ने निवेशकों का मजबूत भरोसा आकर्षित किया है, आरबीआई और सेबी जैसे नियामक हरित उपकरणों में जवाबदेही एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित कर रहे हैं और नवीकरणीय ऊर्जा, विद्युत गतिशीलता, अपशिष्ट से धन तथा प्रकृति-आधारित समाधानों को समर्थन देने के लिए मिश्रित वित्त तंत्र का इस्तेमाल किया जा रहा है।
यादव ने कहा कि भारत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में “महत्वाकांक्षा, नवाचार और परिवर्तन” का मार्ग चुना है। उन्होंने देश के “सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम, सबसे जीवंत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और नवाचार के लिए उत्सुक युवा, कुशल आबादी” की ओर इशारा किया।
यादव ने पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 को हरित विकास के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सक्षम बनाता है और विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता को सुगम बना सकता है।
यादव ने कहा कि ‘ग्लोबल नॉर्थ’ को पृथ्वी की बेहतरी के लिए अपने वादों को पूरा करने के लिए आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि 2035 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर की यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया अपर्याप्त है।
‘ग्लोबल नॉर्थ’ आर्थिक रूप से विकसित औद्योगिक देशों के समूह को संदर्भित करता है, जिसमें मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देश शामिल हैं।
भाषा पारुल