रूस में हिंदी सीखने को लेकर रुचि बढ़ी, सरकार संस्थानों की संख्या बढ़ा रही
सुभाष दिलीप
- 14 Sep 2025, 09:15 PM
- Updated: 09:15 PM
(विनय शुक्ला)
मॉस्को, 14 सितंबर (भाषा) सोवियत संघ के पतन के तीन दशक बाद, रूस में हिंदी सीखने के प्रति छात्रों की रुचि बढ़ रही है और सरकार इस भाषा को पढ़ाने वाले संस्थानों की संख्या बढ़ा रही है।
रूस के विज्ञान एवं उच्च शिक्षा उपमंत्री कोंस्तांतिन मोगिलेव्स्की ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि हमारे और अधिक छात्र हिंदी सीखें।’’
मोगिलेव्स्की ने रूसी समाचार एजेंसी ‘तास’ को बताया, ‘‘भारत आज दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाला देश है और अधिक से अधिक भारतीय अपने रोजमर्रा के जीवन में अंग्रेजी के बजाय हिंदी का इस्तेमाल करने लगे हैं। हमें हिंदी और अन्य एशियाई भाषाएं सीखने की जरूरत है।’’
रूस के उच्च शिक्षा एवं विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, हिंदी सीखने को लेकर छात्रों में रुचि बढ़ी है और वह इस भाषा को पढ़ाने वाले शैक्षणिक संस्थानों की संख्या बढ़ाने के लिए पहले से ही कदम उठा रहा है।
‘रसियन स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूमैनिटीज’ (आरएसयूएच) की इंदिरा गजीयेवा ने कहा कि रूसी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ‘‘अधिकतर पश्चिमी विमर्श के माध्यम से भारतीय वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘रूस की युवा पीढ़ी आधुनिक भारत और उसकी प्राचीन सभ्यतागत विरासत के गहन अध्ययन में रुचि ले रही है।’’
रूसी शिक्षा एवं विज्ञान मंत्रालय छात्रों के लिए प्राच्य भाषाएं सीखने के और अधिक अवसर पैदा करने की योजना बना रहा है। यह विशेष रूप से हिंदी से संबंधित है, जिसकी आधुनिक छात्रों के बीच मांग पहले ही काफी बढ़ चुकी है।
मोगिलेव्स्की के हवाले से ‘तास’ ने कहा, ‘‘आज हिंदी सीखने के इच्छुक युवाओं के पास पहले की तुलना में अधिक अवसर हैं। अकेले मॉस्को में ही एमजीआईएमओ स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस, आरएसयूएच, मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी का एशियाई और अफ्रीकी अध्ययन संस्थान तथा मॉस्को स्टेट लिंग्विस्टिक यूनिवर्सिटी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सेंट पीटर्सबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी, कजान फेडरल यूनिवर्सिटी और अन्य विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है। हिंदी पाठ्यक्रमों में नामांकित छात्रों की संख्या बढ़ रही है, और समूहों की संख्या दो से तीन गुना अधिक है।’’
सोवियत संघ के पतन के बाद, मॉस्को में हिंदी पढ़ाने वाले सबसे पुराने बोर्डिंग स्कूल को नगर सरकार ने बंद कर दिया था, क्योंकि उसने हिंदी पढ़ाना ऐसे समय में अनावश्यक पाया, जब ‘रेडियो मॉस्को’ ने अपने हिंदी प्रसारण बंद कर दिए थे। साथ ही, ‘‘प्रोग्रेस’’और ‘‘रादुगा’’ प्रकाशन हाउस ने रूसी लेखकों के अनुवाद प्रकाशित करना बंद कर दिया था।
इस महीने की शुरुआत में आयोजित मास्को अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में भारत को ‘‘गेस्ट ऑफ ऑनर कंट्री’’ के रूप में आमंत्रित किया गया था।
भारत के स्थानीय विद्वानों ने ‘‘हिंदी-रूसी मुहावरा शब्दकोश’’ के विमोचन का गर्मजोशी से स्वागत किया था। यह कई भारतीय विद्वानों और अनुवादकों की एक सामूहिक परियोजना थी, जिसमें लगभग 2,000 हिंदी मुहावरे शामिल किये गए हैं।
शब्दकोश के प्रमुख संकलनकर्ताओं में से एक प्रगति टिपनीस ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हमने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि यह शब्दकोश द्विभाषी हो और हिंदी सीखने वालों के लिए तैयार किया जा रहा हो जिनकी भाषा, परंपराएं, भौगोलिक स्थलाकृति आदि हमारी भाषा से बिल्कुल अलग हैं। शब्दकोश में दिये गए अर्थों में यह स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए कि प्रत्येक मुहावरे का प्रयोग कब और कैसे किया जा सकता है।’’
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