थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी संबंधी मामले में 26 सितंबर को आदेश सुनाएगी शीर्ष अदालत
वैभव अविनाश
- 15 Sep 2025, 04:51 PM
- Updated: 04:51 PM
नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि देश भर के पुलिस थानों में स्थापित सीसीटीवी कैमरों की फीड की निगरानी के लिए बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के नियंत्रण कक्ष होना चाहिए।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी से संबंधित स्वत: संज्ञान वाले मामले में वह 26 सितंबर को आदेश सुनाएगी।
न्यायमूर्ति मेहता ने कहा, ‘‘हम एक ऐसे नियंत्रण कक्ष के बारे में सोच रहे थे जिसमें कोई मानवीय हस्तक्षेप न हो। इसलिए सभी फीड नियंत्रण कक्ष को उपलब्ध कराए जाएं और अगर कोई कैमरा बंद हो जाए, तो तुरंत सूचना मिल जाए। इस समस्या से निपटने का यही तरीका है। इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।’’
पीठ ने कहा कि संभवत: किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा हर थाने का निरीक्षण होना चाहिए।
उसने कहा, ‘‘हम कुछ आईआईटी को शामिल करने के बारे में सोच सकते हैं, जो हमें एक समाधान, एक सॉफ्टवेयर प्रदान करें, जिसके द्वारा प्रत्येक सीसीटीवी फीड की निगरानी एक विशेष स्थान पर की जाए और यहां तक कि निगरानी भी मानव द्वारा नहीं, बल्कि एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) द्वारा की जाए।’’
पीठ ने कहा कि यदि कोई कैमरा बंद हो जाता है तो इसकी तत्काल सूचना संबंधित विधिक सेवा प्राधिकरण या निरीक्षण एजेंसी को दी जा सकती है।
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे की दलीलें भी सुनीं, जिन्हें एक अलग मामले में न्यायमित्र नियुक्त किया गया था, जिसमें शीर्ष अदालत ने दिसंबर 2020 में एक आदेश पारित किया था।
अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने केंद्र को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) सहित जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाने का निर्देश दिया था।
सोमवार को दवे ने एक ‘स्पष्ट तथ्य’ का उल्लेख किया और कहा कि केंद्र, जिसके पास कम से कम तीन से चार जांच एजेंसियां हैं, ने उच्चतम न्यायालय के निर्देश का पालन नहीं किया।
उन्होंने कहा कि एनआईए, ईडी और सीबीआई में से किसी भी एजेंसी ने निर्देश का पालन नहीं किया।
हालांकि, दवे ने कहा कि कुछ राज्यों ने दिसंबर 2020 के निर्देश का पालन किया था जिसमें उनसे यह सुनिश्चित करने को कहा गया था कि प्रत्येक थाने में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं।
पीठ ने कहा, ‘‘आज अनुपालन हलफनामा हो सकता है, लेकिन कल ऐसे मामले सामने आ सकते हैं जहां पुलिस अधिकारी कैमरों का रुख मोड़ सकते हैं या उन्हें बंद कर सकते हैं।’’
जब एक हस्तक्षेपकर्ता के वकील ने दलील देने की कोशिश की, तो पीठ ने कहा, ‘‘हमने अब तक आपके हस्तक्षेप आवेदन को स्वीकार नहीं किया है। अगर हमें आपकी सहायता की आवश्यकता होगी, तो हम आपको दलील रखने की अनुमति देंगे।’’
पीठ ने कहा कि यह स्वत: संज्ञान वाला मामला है और इसमें किसी हस्तक्षेप को स्वीकार करने की जरूरत नहीं है।
शीर्ष अदालत ने चार सितंबर को एक खबर का स्वत: संज्ञान लिया था जिसमें कहा गया था कि पिछले आठ महीने में राजस्थान में पुलिस हिरासत में 11 लोगों की मौत हुई जिनमें से सात घटनाएं उदयपुर संभाग में ही हुईं।
शीर्ष अदालत ने 2018 में मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था।
दिसंबर 2020 में, शीर्ष अदालत ने केंद्र को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) सहित जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाने का निर्देश दिया था।
उसने कहा था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक थाने, उसके सभी प्रवेश और निकास बिंदुओं, मुख्य द्वार, हवालात, गलियारों, लॉबी और रिसेप्शन के साथ-साथ हवालात के बाहर के क्षेत्रों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं।
न्यायालय ने यह भी कहा कि सीसीटीवी प्रणाली नाइट विजन से लैस होना चाहिए और इसमें ऑडियो और वीडियो फुटेज भी होनी चाहिए। उसने कहा कि केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए ऐसी प्रणालियां खरीदना अनिवार्य होना चाहिए, जिसमें कम से कम एक वर्ष के लिए डेटा भंडारण की सुविधा हो।
भाषा वैभव