झारखंड में कुड़मी समुदाय का रेल रोको आंदोलन, 100 से अधिक ट्रेन प्रभावित
पारुल पवनेश
- 20 Sep 2025, 10:40 PM
- Updated: 10:40 PM
(तस्वीरों के साथ)
रांची, 20 सितंबर (भाषा) झारखंड में अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की मांग को लेकर कुड़मी समुदाय के सदस्यों के रेल रोको आंदोलन के चलते शनिवार को सौ से अधिक ट्रेन या तो रद्द कर दी गईं, या उनका मार्ग परिवर्तित करना पड़ा या फिर उनकी यात्रा अंतिम ठहराव से पूर्व समाप्त कर दी गई।
अधिकारियों ने बताया कि दक्षिण पूर्व रेलवे (एसईआर) के रांची मंडल और पूर्व मध्य रेलवे के धनबाद मंडल के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विभिन्न रेलवे स्टेशन पर कुड़मी समुदाय का रेल रोको आंदोलन जारी है।
उन्होंने बताया कि आदिवासी कुड़मी समाज (एकेएस) के तत्वावधान में प्रदर्शकारियों ने कुड़मी समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने और कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को मानने का दबाव बनाने के लिए निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए रांची के मुरी, राय, टाटीसिलवई, रामगढ़ के बरकाकाना, गिरिडीह के पारसनाथ, हजारीबाग के चरही, धनबाद के प्रधानखंता, पूर्वी सिंहभूम के गालूडीह और बोकारो के चंद्रपुरा रेलवे स्टेशन पर पटरियों पर बैठकर ट्रेन की आवाजाही बाधित की।
एकेएस नेता ओपी महतो ने कहा कि प्रदर्शनकारी रात पटरियों पर बिताएंगे और जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, वे पीछे नहीं हटेंगे।
आंदोलन के कारण ईसीआर के धनबाद मंडल में कम से कम 25 यात्री ट्रेन रद्द कर दी गईं और 24 के मार्ग में परिवर्तन किया गया। वहीं, एसईआर के रांची मंडल में वंदे भारत और राजधानी एक्सप्रेस सहित 12 ट्रेन रद्द कर दी गईं और 11 के मार्ग में परिवर्तन किया गया।
रेलवे की ओर से जारी बयान के मुताबिक, दोनों मंडल में कई ट्रेन को बीच में ही रोक दिया गया।
प्रदर्शनकारियों के रेल परिचालन अवरुद्ध करने से पूरे झारखंड में हजारों यात्री फंस गए।
पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला रेलवे स्टेशन पर फंसी मालती घोष नाम की एक यात्री ने कहा, “मेरी बेटी, जो पुणे में काम करती है, बीमार है। मुझे किसी भी तरह वहां पहुंचना है, क्योंकि उसके दोनों बच्चों को परेशानी हो रही है। अधिकारी सिर्फ रेल परिचालन जल्द बहाल होने का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि ट्रेन कब चलेगी।”
रेलवे अधिकारियों ने बताया कि सुरक्षाकर्मियों ने प्रदर्शनकारियों को शांत करने और पटरियों को खाली कराने की कोशिश की।
टाटा-पटना वंदे भारत एक्सप्रेस के सैकड़ों यात्री भी रांची के मुरी स्टेशन पर फंसे रहे। बाद में ट्रेन रद्द कर दी गई, जिसके चलते यात्रियों ने हंगामा किया।
वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक सुचि सिंह ने बताया कि प्रदर्शन के कारण टाटा-पटना वंदे भारत एक्सप्रेस को मुरी स्टेशन पर रद्द कर दिया गया।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “यात्रियों को उनके मूल स्टेशन पर ले जाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है।”
ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) और झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) सहित कई राजनीतिक दलों ने कुड़मी समुदाय के प्रदर्शन के प्रति समर्थन व्यक्त किया।
आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने मुरी स्टेशन पर विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
महतो ने कहा, “राज्य भर में यह आंदोलन बेहद सफल रहा है। कुड़मी समुदाय को 1931 में अनुसूचित जनजाति की सूची से हटा दिया गया था। तब से यह समुदाय अपने अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है।”
आंदोलन को देखते हुए रांची प्रशासन ने जिले के विभिन्न रेलवे स्टेशन के 300 मीटर के दायरे में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा-163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी है।
आधिकारिक बयान के मुताबिक, यह प्रतिबंध मुरी, सिल्ली, खलारी और टाटीसिलवई में शुक्रवार रात आठ बजे से 21 सितंबर सुबह आठ बजे तक प्रभावी रहेगा।
पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूम उपमंडल के अंतर्गत टाटानगर, गोविंदपुर, राखा माइंस और हल्दीपोखर रेलवे स्टेशन पर 100 मीटर के दायरे में बीएनएसएस की धारा-163 के तहत निषेधाज्ञा लागू की गई है।
आदिवासी कुड़मी समाज के सदस्य और कुर्मी विकास मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शीतल ओहदार ने कहा कि वे शांतिपूर्ण तरीके से रेल पटरियों पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अनुराग गुप्ता ने शुक्रवार को पुलिस को सतर्कता बढ़ाने, सुरक्षात्मक उपकरणों के साथ अतिरिक्त बल तैनात करने, संवेदनशील स्टेशन पर सीसीटीवी एवं ड्रोन तैनात करने और आंदोलन के दौरान पथराव रोकने तथा यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रेलवे पुलिस के साथ समन्वय करने के निर्देश दिए थे।
इस बीच, विभिन्न आदिवासी संगठनों ने कुड़मी आंदोलन के विरोध में रांची में राजभवन के पास प्रदर्शन किया।
आदिवासी नेता लक्ष्मी नारायण मुंडा ने कहा, “कुड़मी समुदाय का विरोध-प्रदर्शन गैरकानूनी और अलोकतांत्रिक है। वे असली अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को छीनना चाहते हैं।”
भाषा पारुल