भारत-पाक युद्ध के 60 साल बाद, लखनऊ की महिला ने वीर चक्र विजेता पति की वीरता को याद किया
रंजन
- 21 Sep 2025, 02:44 PM
- Updated: 02:44 PM
(अरुणव सिन्हा)
लखनऊ, 21 सितंबर (भाषा) भारत-पाकिस्तान के 1965 के युद्ध में वीरता प्रदर्शित करने वाले मेजर धीरेन्द्र सिंह की पत्नी विजय कुमारी की भावनाओं का ज्वार इन दिनों ज्यादा उफान पर होता है। यह माह उन्हें अपने पति की वीरता की यादों के चलते गर्व से भर देता है।
लखनऊ की रहने वाली विजय कुमारी (77) ने पीटीआई-भाषा को बताया कि "ठीक 60 साल पहले, मेरे पति, जो उस समय मुश्किल से 25 साल के थे, कश्मीर में भारत-पाक युद्ध के दौरान एक दुश्मन की बारूदी सुरंग फटने से अपना पैर खो बैठे थे।" सिंह का 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कश्मीर के राजौरी सेक्टर में दुश्मन की एक बारूदी सुरंग पर पैर पड़ गया था।
उन्होंने गर्व के साथ बताया कि गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद मेरे पति ने दुश्मन की तोपों को खामोश कर दिया था और इस कार्य के लिए उन्हें देश के तीसरे सर्वोच्च युद्ध कालीन वीरता पुरस्कार, वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।"
उन्होंने कहा कि ''यह मेरे लिए वाकई एक भावुक समय है क्योंकि यह महीना मुझे मेरे पति की बहादुरी की यादों से भर देता है। उनका दृढ़ निश्चय, अनुकरणीय साहस और नेतृत्व, ऐसे पहलू हैं जो मुझे बेहद गर्वित करते हैं।"
विजय कुमारी ने आगे कहा कि हालांकि उनके पति का अप्रैल 2025 में निधन हो गया, लेकिन उनके पदक और उनके पति के लिए भेजा गया वह टेलीग्राम जिसमें उन्हें सूचित किया गया था कि "राष्ट्रपति आपको वीरता के लिए वीर चक्र प्रदान करते हुए प्रसन्न हैं" अब उनकी अनमोल चीज़ों में शामिल हैं।"
आंखों में चमक लिए उन्होंने कहा, ''ये ऐसी गौरवशाली यादें हैं जिनके सहारे मैं जीवित हूं।" उन्होंने उस समय को याद करते हुए कहा जब उन्हें अपने पति के घायल होने की खबर मिली थी और तब संचार माध्यम इतने तेज नहीं थे।
कुमारी ने युद्धकाल की स्मतियों को याद करते हुए कहा कि 1965 का युद्ध शुरू होने के बाद से मेरे पति के पत्र ही सूचना का एकमात्र स्रोत थे। वह अपनी बातचीत में बस इतना कहते थे कि 'मैं ठीक हूं।' विस्तृत समाचार के लिए हम ज्यादातर रेडियो पर निर्भर रहते थे।"
विजय ने याद किया कि वह गोरखपुर में अपने माता-पिता के घर रह रही थीं, जब 23 सितंबर, 1965 को कुमाऊं रेजिमेंट की तीसरी बटालियन (राइफल्स) के कमांडिंग ऑफिसर का एक पत्र उनकी ससुराल पहुँचा।
उन्होंने कहा कि "तभी मुझे पता चला कि मेरे पति को युद्ध के मैदान में 'पैर में गंभीर चोट' लगी है।" उन्होंने आगे बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी उस अस्पताल में उनके पति से मिले थे जहां उन्हें चोट लगने के बाद भर्ती कराया गया था।
अपने पति की चोट के बाद जीवन में आए बदलावों को याद करते हुए उन्होंने कहा, "अप्रैल 1966 तक मेरे पति को एक कृत्रिम पैर लग गया था और कुछ समय तक लखनऊ में तैनात रहने के बाद, 1971 में चिकित्सा आधार पर उन्हें अशक्त घोषित कर दिया गया। इसके बाद उनका दृढ़ निश्चय था कि हमारे बेटे भी सेना में सेवा करें और जब वह उनकी पासिंग आउट परेड में शामिल हुए तो उन्हें बहुत खुशी हुई।"
उन्होंने कहा कि उनके पति "मानसिक रूप से मजबूत" थे, यही वजह थी कि वह चिकित्सा आधार पर सेना छोड़ने के आघात को सहन कर पाए।
कुमारी ने कहा कि "कृत्रिम पैर के साथ गति का समन्वय आसान नहीं था। सेना छोड़ना काफी थका देने वाला था। लेकिन, वह मानसिक रूप से बहुत मजबूत थे क्योंकि वह स्कूटर, कार या ट्रैक्टर चला सकते थे। शायद इसलिए क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे हिम्मत हारें और अपना ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित रखें।
विजय कुमारी ने कहा कि उन्होंने हमारे बच्चों को अपने करियर के लक्ष्य तय करने दिए और जब हमारे दो बच्चों ने सेना में शामिल होने का फैसला किया तो उन्हें बहुत खुशी हुई।"
मेजर धीरेन्द्र सिंह का चार अप्रैल, 2025 को दिल्ली स्थित सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में निधन हो गया।
भाषा अरुणव आनन्द