सरफेसी के तहत नीलामी नोटिस के प्रकाशन के बाद कर्जदार संपत्ति मुक्त नहीं करा सकते: न्यायालय
आशीष सुरेश
- 22 Sep 2025, 10:45 PM
- Updated: 10:45 PM
नयी दिल्ली, 22 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि नीलामी नोटिस के प्रकाशन के बाद कर्जदार संपत्ति को मुक्त नहीं करा सकते, क्योंकि सरफेसी अधिनियम के तहत ऋणदाता बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा बिक्री प्रमाण-पत्र जारी होने के बाद खरीदार को अविभाज्य अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने इस तथ्य पर अफसोस जताया कि वित्तीय संपत्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम (सरफेसी अधिनियम) 2002 में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था, लेकिन इसकी धारा 13(8) और कुछ नियमों में कुछ अस्पष्टता के कारण मुकदमेबाजी लंबी चली।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि सरफेसी अधिनियम की धारा 13(8) में 2016 में किया गया संशोधन, जो ऋणदाता द्वारा नीलामी नोटिस प्रकाशित करने के बाद कर्जदार के संपत्ति को मुक्त कराने के अधिकार को समाप्त कर देता है, संशोधन लागू होने से पहले लिये गए ऋणों पर भी लागू होगा, यदि चूक एक सितंबर, 2016 के बाद हुई हो।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने 140 पन्नों के फैसले में कहा, "हम वित्त मंत्रालय से आग्रह करते हैं कि वह इन प्रावधानों पर गंभीरता से विचार करे और आवश्यक बदलाव लाए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।"
पीठ ने कहा, "सरफेसी अधिनियम को लागू हुए लगभग 23 साल हो गए हैं। यह देखना वाकई बहुत दुखद है कि इतने सालों बाद भी, इस मामले से जुड़े प्रक्रियागत मुद्दे इस कानून को लगातार प्रभावित कर रहे हैं।"
पीठ ने कहा कि उसे सरफेसी अधिनियम की धारा 13(8) और सरफेसी नियमों के नियम आठ और नौ के संबंध में ‘स्पष्ट विसंगति’ मिली है।
संशोधित प्रावधान का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि यह प्रावधान उस स्थिति में कर्जदार के मुक्त कराने के अधिकार को "समाप्त" कर देता है जब वह नीलामी नोटिस के प्रकाशन से पहले अपनी बकाया राशि चुकाने और संपत्ति को छुड़ाने में विफल रहता है।
इसमें कहा गया है कि सरफेसी नियम बिक्री के किसी ऐसे विशिष्ट नोटिस की बात नहीं करते हैं जिसे पट्टे, समनुदेशन या बिक्री के माध्यम से सुरक्षित संपत्ति के हस्तांतरण के लिए सुरक्षित ऋणदाता द्वारा जारी किया जाना आवश्यक हो।
भाषा आशीष