कर्नाटक में ‘जाति जनगणना’ शुरू, कुछ हिस्सों में तकनीकी गड़बड़ियों की सूचना मिली
आशीष दिलीप
- 22 Sep 2025, 10:45 PM
- Updated: 10:45 PM
बेंगलुरु, 22 सितंबर (भाषा) कर्नाटक में ‘जाति जनगणना’ के नाम से जाना जाने वाला सामाजिक एवं शैक्षिक सर्वेक्षण सोमवार से शुरू हो गया, जिसमें गणक घर-घर जाकर आंकड़े एकत्र कर रहे हैं।
राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में सर्वेक्षण कार्य चल रहा है, लेकिन अधिकारियों ने ग्रेटर बेंगलुरु क्षेत्र में प्रशिक्षण और आवश्यक तैयारियों के कारण एक या दो दिन की देरी का संकेत दिया है, जहां पांच निगमों का नवगठन किया गया है।
कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सात अक्टूबर तक किए जाने वाले इस सर्वेक्षण में 1.75 लाख गणक शामिल होंगे, जिनमें ज्यादातर सरकारी स्कूल के शिक्षक होंगे। इस गणना में राज्य भर के लगभग दो करोड़ घरों के लगभग सात करोड़ लोगों को कवर किया जाएगा।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया, "सर्वेक्षण चल रहा है और हमें विभिन्न स्थानों से रिपोर्ट मिली हैं।"
हालांकि, शिवमोगा, हावेरी, बेल्लारी, चित्रदुर्ग और कोडागु जिलों सहित कई स्थानों पर तकनीकी गड़बड़ियों और सर्वर संबंधी समस्याओं के चलते सर्वेक्षण में देरी हुई। सूत्रों ने बताया कि इनमें से कई स्थानों पर समस्याएं हल होने के बाद सर्वेक्षण जारी रहा।
अधिकारियों के अनुसार 420 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाला यह सर्वेक्षण ‘‘वैज्ञानिक रूप से’’ किया जाएगा और इसके लिए 60 प्रश्नों की प्रश्नावली तैयार की जाएगी।
आयोग द्वारा दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपे जाने की संभावना है।
वहीं, सर्वेक्षण के लिए तैयार की गई जातियों की सूची को लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस सहित विभिन्न वर्गों की आलोचना और आपत्तियों के बीच आयोग ने कहा कि इन जातियों के नाम ‘‘छिपाए’’ जाएंगे, लेकिन हटाए नहीं जाएंगे। इनमें दोहरी पहचान वाली कई जातियां शामिल हैं - जिनके ईसाई और हिंदू दोनों धर्मों के पहचान वाले नाम शामिल हैं जैसे कि ‘कुरुबा ईसाई’, ‘ब्राह्मण ईसाई’, ‘वोक्कालिगा ईसाई’ आदि।
पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष मधुसूदन आर. नाइक ने रविवार को कहा कि पुस्तिका में जातियों की सूची सार्वजनिक जानकारी के लिए नहीं है और इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है, यह केवल गणनाकर्ताओं को वर्णानुक्रम के अनुसार जातियों की सूची प्राप्त करने में मदद करने के लिए है।
उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ऐप इन 33 जातियों को दोहरी पहचान के साथ नहीं दिखाएगा, क्योंकि अब इन्हें छिपा दिया गया है। हालांकि, नागरिक अपनी पसंद के अनुसार गणना करने के लिए स्वतंत्र हैं।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह 23 सितंबर को इस बात पर सुनवाई करेगा कि क्या चल रहे सर्वेक्षण पर रोक लगाई जानी चाहिए। इस सर्वेक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं उच्च न्यायालय में लंबित हैं।
भाषा आशीष