आस्ट्रेलिया में हर पांच में से एक बच्चा दर्द से परेशान, लेकिन अक्सर यह पता नहीं चलता
(द कन्वरसेशन) सुभाष नरेश
- 23 Sep 2025, 03:51 PM
- Updated: 03:51 PM
(जोशुआ पाटे, सिडनी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय; मार्क हचिंसन, एडिलेड विश्वविद्यालय)
सिडनी, 22 सितंबर (द कन्वरसेशन) आमतौर पर चोट या बीमारी के बाद अधिकांश बच्चे दर्द से उबर जाते हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में हर पांच में से एक बच्चा, लगभग 8,77,000 को तीन महीने से अधिक समय तक लगातार इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
चिकित्सक इस स्थिति को पुराना या लगातार रहने वाला दर्द कहते हैं। बच्चों में यह दर्द सिरदर्द, पेट दर्द या गठिया जैसी बीमारियों के कारण हो सकता है। हालांकि, कई मामलों में दर्द का कोई स्पष्ट कारण नहीं होता।
‘क्रॉनिक’ दर्द पर ऑस्ट्रेलिया द्वारा कराये गए एक नये अध्ययन में, 229 बच्चों, युवाओं और उनके परिवारों से इस दर्द से जुड़े उनके अनुभवों के बारे में जानकारी जुटाई गई।
परिवारों ने बताया कि यह दर्द खेलकूद, पढ़ाई, दोस्ती और माता-पिता के काम करने की क्षमता तक को प्रभावित करता है, लेकिन यह समस्या अक्सर दिखाई नहीं देती।
वर्ष 2025 की ‘नेशनल किड्स इन पेन रिपोर्ट’ में एक कठोर तस्वीर पेश की गई है: दर्द स्कूली शिक्षा को बाधित करता है, मित्रता को खत्म करता है, पारिवारिक जीवन को बदल देता है, तथा राष्ट्रीय उत्पादकता पर भारी दबाव डालता है।
इसमें निम्नलिखित मुद्दे लगातार सामने आए:
1) निदान में देरी : 64 प्रतिशत परिवारों को सही निदान के लिए 3 साल या उससे ज्यादा इंतजार करना पड़ा।
2) स्कूल जाना प्रभावित होना: 83 प्रतिशत बच्चों को दर्द के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा, और आधे से अधिक बच्चे पढ़ाई में पीछे रह गए।
3) नींद और मानसिक स्वास्थ्य: 84 प्रतिशत बच्चों को नींद की समस्या, जबकि 80 प्रतिशत से ज्यादा को चिंता, उदासी या अन्य मानसिक समस्याएं हुईं।
4) परिवार और आर्थिक प्रभाव: लगभग आधे अभिभावकों को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी या काम के घंटे कम करने पड़े। पांच में से एक ने नौकरी छोड़ी और 20 में से एक को नौकरी से निकाल दिया गया। लड़कियों को अधिक प्रभावित पाया गया, कुल मामलों में 57 प्रतिशत।
इस समस्या से ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था पर 15 अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर का सालाना बोझ पड़ता है।
एक अभिभावक ने हमें बताया:
मेरी बेटी ने आठ साल की उम्र में दर्द की शिकायत शुरू की, लेकिन चार साल बाद जाकर हमें कोई औपचारिक निदान मिला। तब तक वह स्कूली पढ़ाई में पिछड़ चुकी थी और सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ गई थी।
परिवारों ने बताया कि डॉक्टरों ने बार-बार उनकी बात को टाल दिया। 71 प्रतिशत को कहा गया कि यह सिर्फ एक चिंता है। 54 प्रतिशत को “ग्रोइंग पेन” यानी बढ़ती उम्र का सामान्य दर्द बताया गया।
35 प्रतिशत मामलों में इसे ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कहा गया।
एक बच्चे ने कहा:
काश! किसी ने मेरी बात पहले ही मान ली होती। वर्षों तक इंतजार करने से स्कूल, दोस्त और आत्मविश्वास, सब कुछ खराब हो गया।
दर्द के प्रति सरकारी उदासीनता:
ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सा प्रणाली में लगातार होने वाले दर्द को कोई अलग स्थिति नहीं माना जाता।
यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य डेटा में शामिल नहीं है, इसलिए न तो इसके अनुसार योजनाएं बनती हैं और न ही बजट तय होता है।
हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2019 में लगातार होने वाले दर्द को एक अलग बीमारी के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने अब तक इसे स्वीकार नहीं किया है।
क्या किया जा सकता है:
जब डॉक्टर, स्कूल और परिवार मिलकर काम करते हैं, और बच्चों के लिए सहज पढ़ाई, विश्राम स्थल और ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था होती है, तो बच्चे बेहतर तरीके से दर्द से उबर पाते हैं।
रिपोर्ट में सुझाए गए समाधान:
उम्र के अनुसार हल्का-फुल्का व्यायाम (धीरे-धीरे बढ़ाना)। नींद पूरी करना।
दर्द बढ़ने पर नियंत्रण की रणनीति
मनोवैज्ञानिक सलाह और आत्मविश्वास बढ़ाने वाली थेरेपी। आवश्यकता पड़ने पर सावधानीपूर्वक दवाओं का इस्तेमाल।
स्कूलों के लिए यह कानूनी रूप से जरूरी है कि वे “उचित समायोजन” करें, भले ही बच्चे को औपचारिक निदान न मिला हो।
आगे की राह:
हमारे पास पहले से ही सबूतों पर आधारित समाधान मौजूद हैं, लेकिन जरूरत है कि देश इस मुद्दे को राष्ट्रव्यापी स्तर पर मान्यता दें।
बच्चे और उनके परिवार वही चाहते हैं जो हम सभी चाहते हैं -- स्कूल जाना, खेलना, और एक सामान्य जीवन जीना।
(द कन्वरसेशन) सुभाष