न्यायालय ने जिला न्यायपालिका में ठहराव, प्रतिभाशाली युवाओं के सेवा छोड़ने पर अफसोस जताया
सुभाष नरेश
- 23 Sep 2025, 08:00 PM
- Updated: 08:00 PM
नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को जिला न्यायपालिका में ‘‘ठहराव’’ पर अफसोस जताया और इस बात पर जोर दिया कि कई ‘‘प्रतिभाशाली युवा’’ कुछ वर्षों के बाद ही सेवा छोड़ देते हैं, क्योंकि वे सेवानिवृत्ति के समय तक भी जिला न्यायाधीश नहीं बन पाते हैं।
जिला न्यायाधीश पदों के लिए सीधी भर्ती परीक्षाओं में भाग लेने से वंचित किये गए दीवानी (सिविल) न्यायाधीशों के एक समूह की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने दलील दी कि सिविल न्यायाधीशों को भी ‘बार कोटा’ के तहत जिला जज बनने के लिए परीक्षा देने की अनुमति दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘दीवानी न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए हमें अच्छे लोग इसलिए नहीं मिल रहे हैं कि उन्हें लगता है कि वे पूरी तरह से जड़ हो गए हैं... मैं सेवा में आ जाऊंगा और फिर पूरे 15-16 साल तक जिला न्यायाधीश भी नहीं बन पाऊंगा।’’
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई और न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि कई ‘‘प्रतिभाशाली युवा’’ यह महसूस करने के बाद (न्यायिक) सेवा छोड़ देते हैं कि उन्हें पदोन्नति के लिए 15-16 साल इंतजार करना पड़ सकता है।
सीजेआई ने कहा, ‘‘(अधीनस्थ न्यायपालिका) में शामिल होने वाले कई प्रतिभाशाली युवा... दो साल में ही नौकरी छोड़ देते हैं क्योंकि वे प्रधान जिला न्यायाधीश नहीं बन पाते और सेवानिवृत्त हो जाते हैं। वे (अधीनस्थ) जिला न्यायपालिका में वर्षों तक रहते हैं।’’
न्यायमूर्ति सुंदरेश ने अपनी पूर्व विधि लिपिक के अनुभव का जिक्र किया।
न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय में मेरी एक विधि लिपिक, मैंने उसे (अधीनस्थ) न्यायपालिका की परीक्षा देने के लिए प्रेरित किया था... वह टॉपर थी। पिछली बार जब वह मुझसे मिली, तो उसने कहा था कि वह इस्तीफा देना चाहती है। यह युवा मन की आकांक्षाओं के साथ धोखा है।’’
पीठ संविधान के अनुच्छेद 233 की व्याख्या से जुड़े सवालों की पड़ताल कर रही है, जो जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबद्ध है।
अनुच्छेद 233 में कहा गया है, ‘‘किसी भी राज्य में जिला न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति तथा पदस्थापन और पदोन्नति, उस राज्य के संबंध में क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करने वाले उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्यपाल द्वारा की जाएगी।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘कोई व्यक्ति, जो पहले से संघ या राज्य की सेवा में नहीं है, केवल तभी जिला न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए पात्र होगा यदि वह कम से कम सात वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो और उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्ति के लिए उसकी सिफारिश की गई हो।’’
भूषण ने कहा कि कई न्यायिक अधिकारियों को, अधीनस्थ न्यायपालिका में शामिल होने से पहले सात साल तक वकालत करने के बावजूद, बार कोटे के तहत आवेदन करने से रोक दिया गया।
विभिन्न उच्च न्यायालयों में उनकी याचिकाएं पहले के फैसलों का हवाला देकर खारिज कर दी गईं।
उन्होंने दलील दी, ‘‘यह मुद्दा अब एक अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक व्याख्या के प्रश्न में तब्दील हो गया है।’’
भूषण ने जो चार प्रश्न उठाए हैं, उनमें से एक यह है कि, ‘‘क्या एक न्यायिक अधिकारी, जिसने न्यायिक सेवा में आने से पहले ही बार में सात वर्ष पूरे कर लिए हों, बार कोटा रिक्तियों के विरुद्ध अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) के रूप में नियुक्ति का हकदार है?"
सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।
सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 12 सितंबर को कहा था कि वह 23 सितंबर से इन मुद्दों पर सुनवाई शुरू करेगी और 25 सितंबर तक, तीन दिनों तक दलीलें सुनेगी।
पीठ ने कहा कि उसे इस बात की पड़ताल करनी होगी कि क्या बार में प्रैक्टिस (वकालत) और उसके बाद न्यायिक सेवा के संयुक्त अनुभव को पात्रता में गिना जा सकता है।
उच्चतर न्यायिक सेवा के अंतर्गत आने वाले एडीजे के पद निचले न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते हैं। इन्हें वकीलों की सीधी भर्ती के माध्यम से भी भरा जाता है, जिनके पास बार में कम से कम सात वर्षों का अनुभव हो।
भाषा सुभाष