कृत्रिम बारिश एसओएस उपाय, मानव और पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं: आईआईटी कानपुर निदेशक
नेत्रपाल नरेश
- 30 Oct 2025, 05:26 PM
- Updated: 05:26 PM
(मोहित सैनी)
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (भाषा) आईआईटी-कानपुर के निदेशक मनिंद्र अग्रवाल ने कहा है कि कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) अत्यधिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक संकटकालीन (एसओएस) उपाय है और यह तकनीक मनुष्यों या पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं है, क्योंकि इसमें बारिश कराने के लिए रसायनों की बहुत कम मात्रा का उपयोग होता है।
अग्रवाल की टीम ने हाल ही में दिल्ली में कृत्रिम बारिश परीक्षणों का नेतृत्व किया था।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के निदेशक ने पीटीआई-भाषा के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि हालांकि दोनों प्रयासों से कृत्रिम वर्षा नहीं हुई, लेकिन इससे भविष्य के कार्यों के लिए मूल्यवान डेटा और वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि प्राप्त हुई।
उन्होंने कहा, ‘‘इससे हमें कृत्रिम बारिश के लिए इस्तेमाल की गई सामग्री की मात्रा, बादलों की नमी और उनके ज़मीनी स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव के बीच के संबंध को समझने में मदद मिलती है। इससे हमें भविष्य के कार्यों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।’’
अग्रवाल ने बताया कि बादलों में नमी की मात्रा कम होने के कारण यह कवायद रोक दी गई।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें बादलों में कम से कम 30 से 50 प्रतिशत नमी की आवश्यकता है। चूंकि यह उपलब्ध नहीं थी, इसलिए हमने स्थिति में सुधार होने तक प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया।’’
अग्रवाल ने कहा कि अनुकूल मौसम होने पर परीक्षण पुनः शुरू किए जाएंगे।
पर्यावरण या स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में आशंकाओं को दूर करते हुए अग्रवाल ने कहा कि बादलों में छिड़के जाने वाले मिश्रण में मुख्य रूप से साधारण नमक और थोड़ी मात्रा में सिल्वर आयोडाइड होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक किलोग्राम से भी कम सिल्वर आयोडाइड का उपयोग करते हैं - प्रति वर्ग किलोमीटर 10 ग्राम से भी कम। यह इतना कम है कि इसका मनुष्यों, पशुओं या वनस्पतियों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’
अग्रवाल ने स्वीकार किया कि कृत्रिम बारिश वायु प्रदूषण का स्थायी समाधान नहीं हो सकती।
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक एसओएस उपाय है, जिसका उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक हो और उपयुक्त बादल उपलब्ध हों। वास्तविक समाधान उत्सर्जन को कम करने और स्रोत पर प्रदूषण को नियंत्रित करने में निहित है।’’
पर्यावरणविदों ने मिट्टी और पानी में सिल्वर आयोडाइड के संचयन की संभावना के बारे में चिंता व्यक्त की है जो फसलों, जलीय जीवन और पेयजल की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
अग्रवाल ने कहा कि प्रयुक्त सांद्रता नगण्य है और इससे पारिस्थितिकीय जोखिम उत्पन्न नहीं होता।
उन्होंने कहा कि संस्थान ने इससे पहले 2017-18 में कानपुर में सफल परीक्षण किए थे, लेकिन दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में यह इस तरह का पहला प्रयोग है।
दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर के सहयोग से मंगलवार को बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग और मयूर विहार में कृत्रिम बारिश के दो परीक्षण किए लेकिन बारिश नहीं हुई।
भाषा
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