दिल्ली के द्वारका की भूमि ऊपर उठ रही, यह भूजल स्तर में बढ़ोतरी का संकेत: इसरो-आईआईटी अध्ययन
नेत्रपाल संतोष
- 30 Oct 2025, 07:33 PM
- Updated: 07:33 PM
(वर्षा सागी)
नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर (भाषा) वर्षों से दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के जलभृतों के सूख जाने के कारण जमीन चुपचाप धंसती रही, लेकिन अब उपग्रहों से एक दुर्लभ उलटफेर देखने को मिला है जिसके अनुसार द्वारका की भूमि फिर से ऊपर उठ रही है जो इस बात का संकेत है कि शहर का लंबे समय से खत्म हो रहा भूजल धीरे-धीरे वापस ऊपर आ रहा है। यह दावा एक अध्ययन में किया गया है।
पत्रिका ‘वाटर रिसोर्सेज रिसर्च’ में प्रकाशित ‘इनएसएआर रिवील्स रिकवरी ऑफ स्ट्रेस्ड एक्विफर सिस्टम्स इन पार्ट्स ऑफ दिल्ली, इंडिया’ शीर्षक वाले शोधपत्र में अक्टूबर 2014 से अक्टूबर 2023 तक के उपग्रह डेटा की पड़ताल की गई।
इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी के कुछ हिस्सों में भूमि अवतलन या जमीन धंसना रुक गया है और इसकी स्थिति उलट गई है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-कानपुर), आईआईटी (आईएसएम),धनबाद और मियामी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा लिखे गए शोधपत्र में कहा गया है कि दिल्ली के सबसे अधिक भूजल संकटग्रस्त क्षेत्रों में से एक द्वारका में 2016 के मध्य से भूजल स्तर बढ़ना शुरू हो गया।
रिपोर्ट में दावा किया गया है, ‘‘तब से वहां की भूमि 5 से 10 सेंटीमीटर तक ऊपर उठ गई है, जो लगभग 4 वर्ग किलोमीटर में दो सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से ऊपर उठ रही है, जो कि लगभग 988 एकड़ भूमि है।’’
शोधकर्ताओं ने कहा कि यह बदलाव यह दर्शाता है कि भूमिगत जलभृत पुनः भर रहा है और पानी का दबाव पुनः बढ़ने के कारण इसका विस्तार हो रहा है।
अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘विश्लेषण से पता चलता है कि द्वारका क्षेत्र में भूजल स्तर में सुधार के कारण भूजल भंडारण (0.002-0.007 घन किलोमीटर प्रति वर्ष) में वृद्धि हुई है और छिद्र दबाव संतृप्ति की शुरुआत हुई है।’’
वर्ष 2016 और 2023 के बीच देखी गई यह वृद्धि, प्रति वर्ष लगभग 2-7 अरब लीटर पानी के बराबर है - जो ओलंपिक आकार के सैकड़ों स्विमिंग पूल को फिर से भरने या पूरे दिल्ली के एक मोहल्ले की वार्षिक जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि द्वारका और उसके आसपास के कई भूजल निगरानी कुओं, जिनमें विकास पुरी, जनकपुरी और डाबरी पश्चिम शामिल हैं, में हर साल कुछ सेंटीमीटर की जलस्तर वृद्धि देखी गई है।
इसके विपरीत, छावला गांव, ककरोला और सागरपुर में कुओं का जल स्तर या तो स्थिर रहा या फिर उनमें थोड़ी गिरावट जारी रही।
शोधकर्ताओं ने कहा कि जिन क्षेत्रों में जलस्तर में सुधार हुआ है, वे उन कुओं से काफी मिलते-जुलते हैं जहां जलस्तर में सुधार हुआ है।
अध्ययन में कहा गया है कि 2018 और 2021 के बीच दिल्ली में भूजल स्तर 1.5 मीटर से अधिक बढ़ गया, भले ही इसी अवधि के दौरान वर्षा में गिरावट आई।
शोधपत्र में कहा गया, ‘‘वर्षा में कमी के बावजूद 2018-2021 के दौरान भूजल स्तर में निरंतर वृद्धि, बेहतर प्रबंधन के माध्यम से भूजल संसाधनों के पर्याप्त पुनर्भरण का मजबूत साक्ष्य प्रदान करती है।’’
यह बदलाव दिल्ली की 2016 की भूजल नीति के अनुरूप है, जिसमें नए बोरवेल को सीमित कर दिया गया, वर्षा जल संचयन को अनिवार्य कर दिया गया, तथा सभी बड़ी आवासीय परियोजनाओं में पुनर्भरण संरचनाओं को शामिल करना अनिवार्य कर दिया गया।
शोधपत्र के अनुसार, अन्य जगहों पर भी सूक्ष्म परिवर्तन दिखाई दिए। यमुना नदी के पश्चिम में लगभग 1 सेमी की हल्की वृद्धि देखी गई, जो उन क्षेत्रों में स्थिरता का संकेत देती है, जबकि दिल्ली के पूर्वी किनारे वाले हिस्सों में 2 से 3 सेमी की गिरावट जारी रही, जो ज़मीन की ऊँचाई में लगभग 1 से 1.5 प्रतिशत की धीमी वार्षिक गिरावट के बराबर है।
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की सीमा के बाहर, रुझान मिला-जुला रहा है। क्षेत्र में जमीन धंसने की सर्वाधिक समस्या का सामना करने वाले गुरुग्राम में 2014 से 2023 के बीच ज़मीन 1 मीटर से ज़्यादा धंस गई।
लेकिन इसकी गति काफ़ी धीमी हो गई है। 2014 और 2018 के बीच, मध्य गुरुग्राम में प्रति वर्ष लगभग 15 सेमी और शहर के दक्षिणी हिस्से में 6 सेमी की दर से भू-धंसाव देखा गया। 2018 के बाद, यह क्रमशः लगभग 10 सेमी और 2 सेमी प्रति वर्ष तक कम हो गया है।
हालांकि, फरीदाबाद में हालात चिंताजनक बने हुए हैं। अध्ययन में पाया गया कि वहा जमीन अब भी तेजी से धंस रही है और धंसाव की दर दोगुनी हो गई है, जो 2017 से पहले लगभग दो सेमी प्रति वर्ष से बढ़कर लगभग 4 से 5 सेमी प्रति वर्ष हो गई है।
लेखकों ने निष्कर्ष निकाला कि जहां दिल्ली के जलभृतों में सुधार के प्रारंभिक संकेत दिखाई दे रहे हैं, वहीं गुरुग्राम और फरीदाबाद के आसपास के क्षेत्रों में पानी की कमी जारी है।
उन्होंने कहा कि निरंतर उपग्रह निगरानी से पुनर्भरण की कमी वाले क्षेत्रों का पता लगाने और भविष्य के संरक्षण प्रयासों का मार्गदर्शन करने में मदद मिल सकती है।
भाषा नेत्रपाल