भारत में चावल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने की जरूरत : गुलाटी
राजेश राजेश अजय
- 30 Oct 2025, 07:39 PM
- Updated: 07:39 PM
नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर (भाषा) कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत में चावल की उत्पादकता चीन की तुलना में बहुत कम है और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की आवश्यकता है।
उन्होंने धान की खेती में पानी के उपयोग को कम करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर ज़ोर दिया।
गुलाटी ने मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने की आवश्यकता पर भी बात की क्योंकि भारत में चावल खरीफ और रबी दोनों मौसम में उगाया जाता है।
वर्ष 2015 में पद्म श्री से सम्मानित गुलाटी, भारत अंतरराष्ट्रीय चावल सम्मेलन (बीआईआरसी) 2025 में एक तकनीकी सत्र को संबोधित कर रहे थे, जो बृहस्पतिवार को राष्ट्रीय राजधानी के भारत मंडपम में शुरू हुआ।
भारतीय चावल निर्यातक संघ (आईआरईएफ) द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय कार्यक्रम में लगभग 10,000 लोग भाग ले रहे हैं।
कृषि अर्थशास्त्री ने कहा कि भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है।
गुलाटी ने कहा कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान देश ने दो करोड़ टन से ज़्यादा चावल का निर्यात किया, जो लगभग छह करोड़ टन के कुल वैश्विक व्यापार का एक-तिहाई है।
उन्होंने कहा, ‘‘एक तरह से, एक ऐसा देश जिसने खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों का सामना किया, आज वैश्विक खाद्य सुरक्षा में योगदान दे रहा है।’’
अर्थशास्त्री को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में अफ्रीकी देशों से चावल के भारी निर्यात ऑर्डर मिलेंगे।
हालांकि, गुलाटी ने बताया कि ‘‘उत्पादन के मामले में हम चीन से भी आगे निकल गए हैं। लेकिन एक छोटी सी बात है, वे (चीन) 2.9 करोड़ हेक्टेयर से लगभग 14.5 करोड़ टन उत्पादन करते हैं। हम अब लगभग पांच करोड़ हेक्टेयर से लगभग 15 करोड़ टन उत्पादन कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि चावल की उत्पादकता अभी भी लगभग तीन टन प्रति हेक्टेयर के आसपास है, जबकि चीन में औसतन यह पांच टन प्रति हेक्टेयर है।
गुलाटी ने कहा कि तकनीक की मदद से भारत आसानी से औसत चावल उत्पादकता को तीन से पांच टन तक बढ़ा सकता है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि मौजूदा तकनीक से उपज को सात-आठ टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाने की गुंजाइश है।
गुलाटी ने कहा कि भारत में चावल का प्रचुर भंडार है, क्योंकि देश इसका सबसे बड़ा निर्यातक है और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत 80 करोड़ लोगों को प्रति माह पांच किलो मुफ्त चावल और गेहूं भी उपलब्ध करा रहा है।
अर्थशास्त्री ने कहा कि उत्पादन में किसी भी अनिश्चितता को कम करने के लिए बफर स्टॉक बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से व्यापार में विश्वास की कमी पैदा होती है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें सामान्य चावल और बासमती चावल से आगे बढ़ना होगा।’’ उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
गुलाटी ने कहा कि कई पोषण संबंधी किस्में हैं जिन्हें भारत को वैश्विक बाजार में ब्रांडिंग और बिक्री के लिए तैयार करना होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन एक और बात महत्वपूर्ण है, हमें इसे टिकाऊ बनाना होगा। स्थिरता से हमारा क्या तात्पर्य है? हम सभी जानते हैं कि चावल एक बहुत अधिक पानी की खपत करने वाली फसल है, एक किलोग्राम चावल... लगभग 3,000 से 5,000 लीटर पानी की खपत करता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कहां उगाया जा रहा है।’’
उन्होंने कहा कि जब भारत दो करोड़ टन चावल निर्यात कर रहा है, तो भारत 40 अरब घन मीटर पानी भी निर्यात कर रहा है। उन्होंने आगे कहा, ‘‘इसलिए पहली चुनौती यह है कि हम पानी की खपत कैसे कम करें।’’
गुलाटी ने आगे कहा कि पानी के उपयोग को कम करने के लिए तकनीकें और बीज किस्में उपलब्ध हैं।
अर्थशास्त्री ने कहा कि धान की खेती में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की भी आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें कम कार्बन वाले चावल का उत्पादन करना होगा और इसे कम कार्बन वाले चावल के रूप में बेचा जाना चाहिए।’’
खाद्य सुरक्षा बनाम ईंधन सुरक्षा पर बहस के बारे में, गुलाटी ने कहा, ‘‘शायद हमें कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों के साथ दीर्घकालिक गठजोड़ करना चाहिए, ताकि हमें उस कच्चे तेल की आपूर्ति का आश्वासन मिले जिसकी हम तलाश कर रहे हैं, और उन्हें भी उस चावल की आपूर्ति का आश्वासन मिले जिसकी वे दीर्घकालिक और टिकाऊ आधार पर तलाश कर रहे हैं।’’
भाषा राजेश राजेश