पिछले चार दशक में ताप तनाव के कारण प्रवासी श्रमिकों की उत्पादकता में 10 प्रतिशत की कमी आई: अध्ययन
नेत्रपाल अविनाश
- 31 Oct 2025, 05:42 PM
- Updated: 05:42 PM
नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) पिछले चार दशक में ताप तनाव के कारण भारत में प्रवासी श्रमिकों की उत्पादकता में 10 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह बात एक अध्ययन में कही गई है।
ताप तनाव एक ऐसी स्थिति है जब अधिक गर्मी के कारण व्यक्ति का शरीर अपने तापमान को नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाता है।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, 1980-2021 के दौरान उत्तर, पूर्व और दक्षिण भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहर की ओर होने वाले प्रवासन के क्षेत्रों में आर्द्रता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो घर के अंदर रहने वाले लोगों द्वारा अनुभव किए जाने वाले उच्च ताप तनाव की ओर इशारा करता है।
अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के अनुसंधानकर्ता भी शामिल थे।
उन्होंने कहा कि मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और हैदराबाद शीर्ष चार शहरी क्षेत्र हैं जहां प्रवासियों की सबसे अधिक संख्या है, जिनकी कुल आबादी एक करोड़ तक होने का अनुमान है।
‘अर्थ्स फ्यूचर’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वैश्विक तापमान में प्रत्येक अतिरिक्त डिग्री की वृद्धि के साथ प्रवासी श्रमिकों के शरीर में ताप तनाव में काफी वृद्धि हो सकती है - घर के अंदर और बाहर दोनों जगह - तथा शारीरिक श्रम करने की उनकी क्षमता में कमी आ सकती है।
भारत में प्रवासी श्रमिक काम के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पहुंचते हैं और ये देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा हैं।
अध्ययनों से पता चलता है कि कुल आबादी का 42 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक हो सकते हैं। ‘द इंडियन जर्नल ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स’ में प्रकाशित 2020 के एक अध्ययन में 2011 की जनगणना के अनुसार 45 करोड़ आंतरिक प्रवासियों का हवाला दिया गया है।
शारीरिक रूप से कठिन काम करने और अकसर लंबे समय तक बाहर काम करने के कारण प्रवासी श्रमिक ताप तनाव के प्रति संवेदनशील होते हैं - जहां उच्च तापमान के कारण उनका शरीर अपने तापमान को नियंत्रित करने में असमर्थ होता है।
जलवायु परिवर्तन के कारण ताप तनाव बढ़ता है, जिससे प्रवासी श्रमिकों सहित प्रवासी श्रमिकों की उत्पादकता और आय पर प्रभाव पड़ता है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि अत्यधिक ताप तनाव जैसी स्थिति के लंबा होने का अनुमान है, जिससे प्रवासी श्रमिकों के समग्र कल्याण और श्रम क्षमता के लिए चुनौतियां उत्पन्न होंगी।
हालांकि, उन्होंने कहा कि इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि शहरी क्षेत्रों में ताप तनाव बढ़ने से प्रवासी श्रमिकों के काम करने की क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि बाह्य क्षेत्रों में काम के दौरान ताप तनाव के कारण श्रम क्षमता में (लगभग) 10 प्रतिशत की गिरावट आई है।
टीम ने अनुमान व्यक्त किया कि यदि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से दस डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तो भारत के लगभग सभी शहरी क्षेत्रों में उच्च ताप तनाव की स्थिति बन सकती है।
अनुमान है कि वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस और 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर सामान्य श्रम क्षमता घटकर 71 प्रतिशत और 62 प्रतिशत रह जाएगी, जबकि वर्तमान तापमान वृद्धि के जारी रहने पर यह 86 प्रतिशत होगी।
भाषा
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