टीईटी पास न होने पर बर्खास्त किए गए दो शिक्षकों को उच्चतम न्यायालय ने बहाल किया
खारी माधव
- 31 Oct 2025, 06:36 PM
- Updated: 06:36 PM
नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के उन दो सहायक शिक्षकों की बर्खास्तगी को शुक्रवार को रद्द कर दिया, जिन्हें 2018 में इस आधार पर सेवा से हटा दिया गया था कि उन्होंने अपनी नियुक्ति के समय तक शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण नहीं की थी।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने उमाकांत और एक अन्य शिक्षक द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया गया था।
पीठ ने कहा कि दोनों शिक्षकों ने सांविधिक अनुग्रह अवधि के भीतर टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी।
फैसले में कहा गया, “टीईटी उत्तीर्ण करने की शर्त 31 मार्च 2019 तक पूरी करनी थी, और अपीलकर्ताओं ने उस तारीख से पहले ही टीईटी पास कर ली थी। हमारा मानना है कि उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश द्वारा हस्तक्षेप न किया जाना और उस निर्णय को खंडपीठ द्वारा बरकरार रखना त्रुटिपूर्ण था।”
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि दोनों शिक्षकों को तुरंत बहाल किया जाए। शिक्षकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने पैरवी की।
अदालत ने कहा कि शिक्षकों ने बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई अधिनियम) के तहत निर्धारित विस्तारित समय सीमा के भीतर अनिवार्य योग्यता प्राप्त कर ली थी।
अपीलकर्ताओं का चयन जुलाई 2011 में जारी एक विज्ञापन के आधार पर कानपुर नगर के भोती स्थित ज्वाला प्रसाद तिवारी जूनियर हाई स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप में हुआ था। वे 17 मार्च 2012 को सेवा में शामिल हुए।
उत्तर प्रदेश में पहली बार टीईटी परीक्षा 13 नवंबर 2011 को आयोजित की गई थी। एक अपीलकर्ता ने नवंबर 2011 में परीक्षा पास की, जबकि दूसरे ने मई 2014 में उत्तीर्ण की।
हालांकि, बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) ने 12 जुलाई 2018 को उनकी सेवाएं इस आधार पर समाप्त कर दीं कि नियुक्ति के समय उनके पास टीईटी प्रमाणपत्र नहीं था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 12 मार्च 2024 को उनकी याचिका खारिज कर दी, और बाद में एक खंडपीठ ने एक मई 2024 को उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसके बाद शिक्षकों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।
पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा कि आरटीई अधिनियम की धारा 23(2) में 2017 के संशोधन के तहत 31 मार्च 2015 से पहले नियुक्त ऐसे शिक्षकों को चार वर्ष, अर्थात 31 मार्च 2019 तक, टीईटी पास करने की अनुमति दी गई थी जिनके पास उस समय न्यूनतम योग्यता नहीं थी।
चूंकि दोनों अपीलकर्ताओं ने 2014 तक टीईटी उत्तीर्ण कर ली थी, इसलिए पीठ ने माना कि वे समयसीमा से काफी पहले योग्य हो गए थे और 2018 में उनकी बर्खास्तगी के समय उन्हें अयोग्य नहीं माना जा सकता था।
भाषा खारी