न्यायमूर्ति सूर्यकांत की नसीहत: विधि छात्र जिज्ञासु बने रहें, सीखते रहें और निश्चितता पर सवाल उठाएं
सिम्मी सुरेश
- 02 Nov 2025, 02:47 PM
- Updated: 02:47 PM
लखनऊ, दो नवंबर (भाषा) भारत के भावी प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने विधि छात्रों को हमेशा जिज्ञासु बने रहने, लगातार सीखने की ललक रखने और बौद्धिक निश्चितता पर सवाल उठाते रहने की नसीहत देते हुए रविवार को कहा कि वे तंत्र को तात्कालिक रूप में स्वीकार करने के बजाय उसे वैसा बनाने की कोशिश करें, जैसा उसे होना चाहिये।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने लखनऊ स्थित डॉक्टर राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के चौथे दीक्षांत समारोह को सम्बोधित करते हुए उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं से कहा कि वे हमेशा जिज्ञासु बने रहें। उन्होंने कहा कि सीखना एक निरंतर प्रक्रिया है, इसलिए सीखना कभी बंद न करें और बौद्धिक निश्चितता पर भी सवाल उठाना सीखें।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं आज पक्के विश्वास के साथ कह रहा हूं कि कानून का पेशा आपका होगा, इसलिए नहीं कि यह आपके सामने एकमात्र रास्ता है, बल्कि इसलिए कि यह वह रास्ता है, जिसे बदलने के लिए आप पूरी तरह से तैयार हैं।''
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने छात्र-छात्राओं को बेहतर अधिवक्ता बनने का सूत्र देते हुए कहा, ''एक विचार जो आपके साथ रह सकता है, वह है उन वकीलों के बीच का फर्क जो सिर्फ जिंदा रहने के लिए काम करते हैं और जो सच्चे मायनों में कामयाब होते हैं। यह फर्क इससे तय नहीं होता कि आप शुरू में कितना जानते हैं, बल्कि आपके जिज्ञासु बने रहने और कभी सीखना बंद न करने की इच्छा से निर्धारित होता है।''
उन्होंने कहा कि यह विधि विश्वविद्यालय डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के नाम पर है। उन्होंने कहा, ‘‘लोहिया एक ऐसे इंसान थे जो मानते थे कि बौद्धिक निश्चितता आराम की सबसे खतरनाक श्रेणी है।’’
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ''लोहिया की विरासत हमें सिखाती है कि आगे बढ़ने के लिए यह पूछने की हिम्मत चाहिए कि क्या यह (काम) इस तरह होना चाहिए, या (किसी) अलग तरह से? नयापन तब शुरू होता है जब हम सवाल करने की हिम्मत करते हैं।''
कानून के क्षेत्र में अपने सफर का एक शुरुआती सबक याद करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे वह एक बार दो भाइयों के बीच सम्पत्ति के झगड़े के मुकदमे को अति आत्मविश्वास की वजह से हार गए थे।
उन्होंने कहा, ''मुझे खुद पर इतना विश्वास हो गया था कि मैंने अपने ‘ड्राफ्ट’ (मुकदमे का लिखित दस्तावेज) को दोबारा देखने या अपनी दलीलों को दोबारा जांचने की जहमत नहीं उठाई।''
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ''जब मैं हार गया तो मुझे एहसास हुआ कि मैंने उस मुकदमे के जरूरी सवालों को नजरअंदाज कर दिया था। उस नाकामी ने मुझे हर बार शून्य से शुरू करना सिखाया। हर मामले का बारीकी से अध्ययन करना दरअसल नाकामी से पैदा हुई वह आदत बनी जो मेरी नयी सोच की नींव बन गई।''
उन्होंने विधि छात्र-छात्राओं से कानून के पेशे को उन्नत बनाने का आग्रह किया और कहा, ''सालों बाद जब आप इस दिन (दीक्षांत समारोह) के बारे में सोचेंगे तो मुझे उम्मीद है कि आपको सिर्फ यह समारोह ही याद नहीं रहेगा, बल्कि यह आपको ध्यान से सोचने, ईमानदारी से काम करने और हर तरफ से आने वाली जानकारी को स्वीकार करने के लिए भी याद रहेगा।''
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ''इस पेशे को आपकी जरूरत है। आपको इसे मौजूदा स्वरूप में स्वीकार करने की नहीं, बल्कि इसे वैसा बनाने की जरूरत है, जैसा इसे होना चाहिए।''
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली ने इस अवसर पर अपने सम्बोधन में उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं से कहा कि वे अब अपने जीवन के एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुके हैं और अब उनके सामने पेशेवर क्षेत्र का पूरा फलक खुला है।
उन्होंने कहा कि अब उपाधि धारकों के लिए कोई पाठ्यक्रम नहीं होगा, बल्कि अब उनके सामने सिर्फ मुवक्किल और कानूनी लड़ाई के नतीजे होंगे।
न्यायमूर्ति भंसाली ने विधि छात्र-छात्राओं को मुकदमों की बारीकी से तैयारी करने पर जोर देते हुए कहा, ''तैयारी का कोई विकल्प नहीं है। वाक्पटुता एक दिन के लिए चकाचौंध कर सकती है, लेकिन करियर तो तैयारी से ही बनता है।''
उन्होंने कहा कि अदालतें वकीलों की ऊंची आवाजों की नहीं बल्कि सबसे तैयार दिमाग की इज्जत करती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘न्यायाधीश उन वकीलों को याद नहीं रखते जिन्होंने सबसे ऊंची आवाज में बात की, बल्कि उन्हें याद रखते हैं जिन्होंने दमदार तरीके से बात रखी।’’
भाषा सलीम
सिम्मी