हुड्डा पर परोक्ष हमले के एक महीने बाद कांग्रेस की हरियाणा इकाई के नेता संपत सिंह ने पार्टी छोड़ी
सुभाष नरेश
- 02 Nov 2025, 10:25 PM
- Updated: 10:25 PM
चंडीगढ़, दो नवंबर (भाषा) हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में नियुक्ति पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करने के एक महीने बाद, राज्य के वरिष्ठ कांग्रेस नेता संपत सिंह ने रविवार को पार्टी छोड़ दी।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को संबोधित अपने त्यागपत्र में सिंह ने विस्तार से बताया कि किस तरह पार्टी में कथित तौर पर ऐसी परिस्थितियां पैदा की गईं, जिससे कई नेताओं को पिछले कुछ वर्षों में अन्य दलों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
हरियाणा के पूर्व मंत्री सिंह ने दावा किया कि पिछले 15 वर्षों में राज्य में ‘‘पार्टी के निरंतर पतन के लिए कोई जवाबदेही तय नहीं की गई।’’
एक महीने पहले, सिंह ने हुड्डा की कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में नियुक्ति पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए कहा था, ‘‘अगर पार्टी उसी व्यक्ति को नियुक्त करना चाहती थी, तो एक साल तक इंतज़ार करने की क्या ज़रूरत थी।’’
कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने 29 सितंबर को हुड्डा को हरियाणा में कांग्रेस विधायक दल का नेता नियुक्त किया था।
छह बार के विधायक सिंह ने बताया कि कैसे उनके योगदान और अनुभव के बावजूद उन्हें दरकिनार कर दिया गया।
उन्होंने कहा कि वह 2009 में (इनेलो छोड़ने के बाद) कांग्रेस में शामिल हुए थे।
उन्होंने लिखा, ‘‘मुझे फतेहाबाद विधानसभा सीट का आश्वासन दिया गया था, लेकिन मुझे नलवा सीट दे दी गई। हालांकि, नलवा के लोगों ने मेरी नैतिकता और प्रतिबद्धता पर भरोसा जताया और मुझे हरियाणा विधानसभा भेजा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन कांग्रेस फतेहाबाद सीट हार गई, जो फतेहाबाद से पांच बार जीतने के बावजूद नलवा में मेरे जाने से जनता की नाराजगी का सीधा नतीजा था। मेरे आने से कांग्रेस को उन क्षेत्रों में लगभग आधा दर्जन अतिरिक्त सीटें जीतने में मदद मिली, जहां मेरा राजनीतिक प्रभाव था।’’
सिंह ने कहा, ‘‘मेरे योगदान और अनुभव के बावजूद, मुझे मंत्रिमंडल में जगह या कोई संगठनात्मक भूमिका नहीं दी गई। मुझे बाद में पता चला कि ऐसा इसलिए हुआ कि मैं चुनाव के बाद कुमारी सैलजा से मिला था और उनके मंत्रालय (तत्कालीन केंद्रीय मंत्री के रूप में) ने मेरे निर्वाचन क्षेत्र के लिए 18 करोड़ रुपये के अनुदान को मंज़ूरी दी थी।’’
उन्होंने कहा कि 2019 के विधानसभा चुनावों में भी यही इतिहास दोहराया गया, जब उन्हें फिर से टिकट नहीं दिया गया और नलवा और फतेहाबाद, दोनों सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की।
उन्होंने कहा, ‘‘2024 में, मुझे सिरसा निर्वाचन क्षेत्र में लोकसभा चुनावों के लिए समन्वयक नियुक्त किया गया, जहां कुमारी सैलजा कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही थीं। उनकी जीत के लिए मेरे ईमानदार प्रयासों के कारण, पार्टी का राज्य नेतृत्व असुरक्षित महसूस कर रहा था। उसी वर्ष, मैंने नारनौंद में कुमारी सैलजा की रैली में भाग लिया, जिससे पार्टी का प्रदेश नेतृत्व नाराज हो गया। उस वर्ष बाद में, मुझे फिर से पार्टी का टिकट देने से इनकार कर दिया गया, और कांग्रेस एक बार फिर नलवा से हार गई।’’
सिंह ने आरोप लगाया कि 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में, ‘‘योग्य उम्मीदवारों की अनदेखी की गई, जबकि धनबल वालों को टिकट दिए गए।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि हरियाणा में कांग्रेस एक निजी जागीर बनकर रह गई है, जहां ‘‘निष्ठा का बदला दासता और असहमति का बदला निर्वासन’’ से मिलता है।
उन्होंने कहा कि 2009 से 2024 के बीच पार्टी के लगातार पतन के लिए कोई जवाबदेही तय नहीं की गई है।
सिंह के त्यागपत्र में पार्टी छोड़ने वाले नेताओं का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिनमें दिवंगत भजन लाल, राव इंद्रजीत सिंह, कुलदीप बिश्नोई, धर्मबीर सिंह और अरविंद शर्मा शामिल हैं।
हुड्डा पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए सिंह ने कहा, ‘‘राज्य नेतृत्व ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक शक्ति को मजबूत किया। 2020 में, जब राज्यसभा की एक सीट खाली हुई, तो अनुसूचित या पिछड़ी जातियों के एक योग्य सदस्य को बढ़ावा देने के बजाय, नेता के अपने बेटे (दीपेंद्र सिंह हुड्डा) को नामित किया गया, जिससे एक राष्ट्रीय पार्टी एक क्षेत्रीय पारिवारिक उद्यम में तब्दील हो गई।’’
भाषा सुभाष