‘दरबार स्थानांतरण’ परंपरा चार साल के बाद फिर शुरू, जम्मू में मुख्यमंत्री का गर्मजोशी से स्वागत
सुमित माधव
- 03 Nov 2025, 06:58 PM
- Updated: 06:58 PM
जम्मू, तीन नवंबर (भाषा) जम्मू कश्मीर में चार साल के अंतराल के बाद ऐतिहासिक ‘दरबार स्थानांतरण’ परंपरा फिर से शुरू होने पर सोमवार को जम्मू के लोगों ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का उत्साहपूर्वक स्वागत किया।
अब्दुल्ला का स्वागत नायक की तरह हुआ। मुख्यमंत्री ने अपने काफिले को छोड़कर, अपने सरकारी आवास से रघुनाथ मार्केट तक पैदल ही चलकर सिविल सचिवालय जाने का फैसला किया और एक किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पैदल तय की।
उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी और मंत्री जावेद राणा के साथ मौजूद अब्दुल्ला का रेजीडेंसी रोड पर उमड़ी भारी भीड़ ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। व्यापारियों और नागरिकों ने मिठाइयां बांटीं और उनकी सरकार के इस फैसले पर खुशी जताई।
भीड़ में जबरदस्त उत्साह और जोश देखने को मिला। रेजीडेंसी रोड और भीड़भाड़ वाले रघुनाथ बाजार में मुख्यमंत्री पर फूल बरसाए गए, जबकि ढोल की थाप और जोरदार नारों से पूरा इलाका गूंज उठा।
मुख्यमंत्री ने काफी पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करके एक महत्वपूर्ण चुनावी वादा पूरा किया। उन्होंने इस कदम के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि यह केवल राजकोषीय बचत से अधिक एकता लाने वाला कदम है।
‘दरबार स्थानांतरण’ में जम्मू और कश्मीर के सरकारी कार्यालयों को श्रीनगर से जम्मू में मौसमी रूप से स्थानांतरित करना शामिल है। यह प्रथा लगभग 150 साल पहले डोगरा शासकों द्वारा शुरू की गई थी।
श्रीनगर में सिविल सचिवालय और अन्य कार्यालय 30 और 31 अक्टूबर को बंद हो गए तथा शीतकालीन राजधानी में सोमवार से अगले छह महीने के लिए काम करना शुरू कर दिया।
दरबार स्थानांतरण को जून 2021 में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने रोक दिया था। उन्होंने इसका कारण प्रशासन का पूरी तरह से ई-ऑफिस में बदलाव होना बताया, जिससे उन्होंने कहा कि सालाना करीब 200 करोड़ रुपये की बचत होगी।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘यह (फैसला) खासकर जम्मू के लिए कितना महत्वपूर्ण था, यह आपको आज सुबह पता चल गया होगा। मेरे आधिकारिक आवास से सिविल सचिवालय तक का सफर आमतौर पर पांच मिनट का होता है, लेकिन इसमें एक घंटे का समय लग गया क्योंकि लोग सड़कों पर उमड़ पड़े और उन्होंने अपना प्यार बरसाया... ‘दरबार स्थानांतरण’ रोके जाने से जम्मू पर बहुत बुरा असर पड़ा।’’
इस तर्क पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने सिविल सचिवालय में संवाददाताओं से कहा कि यह निर्णय भावनाओं और क्षेत्रीय एकीकरण से प्रेरित है।
उन्होंने कहा, ‘‘सबसे जरूरी बात यह है कि हर चीज को पैसों से नहीं तौला जाना चाहिए। ‘दरबार स्थानांतरण’ पैसे बचाने के लिए रोका गया था। कुछ चीजें पैसों से बढ़कर होती हैं क्योंकि इसमें जम्मू कश्मीर के दोनों क्षेत्रों के लोगों की भावनाएं और एकता शामिल होती है।’’
इस कदम को रोकने के फ़ैसले की पहले भी तीखी आलोचना हुई थी, ख़ासकर जम्मू के व्यापारिक समुदाय की ओर से, जिन्होंने इसे व्यापार और दोनों क्षेत्रों के बीच पारंपरिक संबंधों के लिए एक बड़ा झटका बताया था। वे तब से ही इसे फिर से शुरू करने पर ज़ोर दे रहे थे।
जम्मू चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष अरुण गुप्ता मुख्यमंत्री का स्वागत करने वाले पहले व्यक्तियों में शामिल थे। गुप्ता ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए एक ऐतिहासिक दिन है और मुख्यमंत्री का गर्मजोशी से किया गया स्वागत इसकी गवाही देता है।
बड़ी संख्या में व्यापारी वहां पहुंचे और उन्होंने मुख्यमंत्री को माला पहनाई, फूल बरसाए तथा पूरे रास्ते ढोल-नगाड़ों और नारेबाजी के बीच मिठाइयां बांटीं।
मुख्यमंत्री के सचिवालय की ओर जाते समय उनके सुरक्षाकर्मियों को भीड़ को नियंत्रित करने में काफी कठिनाई हुई।
गुप्ता ने कहा, "हमने व्यापारियों और नागरिक समाज की मांग स्वीकार करने के लिए मुख्यमंत्री को धन्यवाद देने का फैसला किया। दरबार स्थानांतरण को रोकने से जम्मू को काफी नुकसान हुआ है।"
सिविल सचिवालय पहुंचने पर मुख्यमंत्री को जम्मू-कश्मीर पुलिस की टुकड़ी से गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।
उनके पिता और पूर्व मुख्यमंत्री तथा नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला सिविल सचिवालय में मौजूद थे, उन्होंने कहा कि शहर नई ऊर्जा से भरा हुआ है।
उन्होंने कहा, "वर्षों बाद, पूर्ण ‘दरबार स्थानांतरण’ की वापसी हुई है... मुझे बहुत खुशी है कि जो लोग जम्मू-कश्मीर को अलग करने की कोशिश कर रहे थे, वे आज नाकाम हो गए। जम्मू-कश्मीर एक इकाई है और इससे जम्मू को बहुत लाभ होगा।"
मुख्यमंत्री ने आशा व्यक्त की कि सदियों पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने के उनके निर्णय से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होगा।
समय की कमी के कारण मुख्यमंत्री बाद में अपने काफिले में सचिवालय की ओर रवाना हुए।
सचिवालय के बाहर मुख्यमंत्री का इंतजार कर रहे लोगों के एक समूह ने उनके काफिले पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाईं।
भाषा सुमित