शिक्षा वह धन है जिसे छीना नहीं जा सकता : उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन
प्रशांत
- 03 Nov 2025, 07:30 PM
- Updated: 07:30 PM
कोल्लम (केरल), तीन नवंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन ने भारत के शिक्षा क्षेत्र में केरल के योगदान की सराहना करते हुए सोमवार को कहा कि शिक्षा किसी व्यक्ति के पास मौजूद सबसे बड़ी संपत्ति है।
राधाकृष्णन ने स्थानीय ‘फातिमा माता राष्ट्रीय महाविद्यालय’ के हीरक जयंती समारोह में तमिल कवि तिरुवल्लुवर को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘शिक्षा वह धन है, जिसे किसी व्यक्ति से छीना नहीं जा सकता। कोई भी धन, शिक्षा समृद्धि के बराबर नहीं हो सकता।’’
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में, जब दुनिया अनिश्चितता से जूझ रही है- चाहे वह जलवायु परिवर्तन के कारण हो, डिजिटल व्यवधान के कारण हो, या सामाजिक विखंडन के कारण- शिक्षा की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें ऐसे महाविद्यालयों की आवश्यकता है, जो छात्रों को केवल नौकरियों के लिए तैयार न करें। हमें 'गुमास्ता' (क्लर्क) बनाने में रुचि नहीं रखनी चाहिए। हमें ऐसे वैज्ञानिक और महान प्रशासक तैयार करने में अधिक रुचि रखनी चाहिए जो समाज की बेहतर सेवा कर सकें।’’
उन्होंने कहा कि शिक्षा को छात्रों को आलोचनात्मक सोच, करुणा और वैश्विक दृष्टिकोण से लैस करना चाहिए।
राधाकृष्णन ने भारत की शैक्षिक प्रगति में केरल के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि जब अन्य राज्य 40 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच पाए थे, तब राज्य की 90 प्रतिशत साक्षरता दर ‘‘उल्लेखनीय और अतुलनीय’’ थी।
उन्होंने आगे कहा कि इसका मुख्य श्रेय हमारे बुजुर्गों को जाता है।
उपराष्ट्रपति ने छात्रों से आग्रह किया कि वे समय-सारिणी को केवल स्कूल के दिनों के लिए ही न समझें, बल्कि इसे जीवन भर मार्गदर्शन देने वाली चीज के रूप में देखें।
उन्होंने कहा, ‘‘हर समय सोशल मीडिया में डूबे न रहें। हमें किसी भी चीज की आदत नहीं डालनी चाहिए- वरना, यह हमें अपनी शर्तें थोपने लगेगी। हमें हर चीज पर आत्म-नियंत्रण रखना चाहिए।’’
उन्होंने नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग के खिलाफ भी कड़ा रुख अपनाया और कहा कि उन्होंने जागरूकता बढ़ाने के लिए 'नो टू ड्रग्स' नामक एक पहल शुरू की है।
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘जहां ज्यादा आजादी है, हमें उसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, हमें आत्म-नियंत्रण रखना चाहिए। ‘नशे को नकारना’ एक जन आंदोलन बनना चाहिए।’’
राधाकृष्णन ने कहा कि उन्हें कॉलेज के शताब्दी समारोह में वापस आने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर ईश्वर ने चाहा, तो मैं शताब्दी समारोह में जरूर आऊंगा।’’
उपराष्ट्रपति ने राष्ट्र के लिए अपने दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि हमारा देश दुनिया में सबसे शक्तिशाली बने। हम कभी दूसरे देशों पर अपनी शर्तें थोपते नहीं हैं। किसी भी देश को हम पर अपनी शर्तें नहीं थोपनी चाहिए।’’
केरल के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने कहा कि शिक्षा का ध्यान राष्ट्र निर्माण और नौकरी चाहने वालों के बजाय नौकरी देने वालों पर होना चाहिए, जो 'विकसित भारत' और 'विकसित केरल' के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
उन्होंने कहा कि केरल ने राष्ट्र के लिए, खासकर संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में, बहुत बड़ा योगदान दिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा केवल व्यक्तिगत विकास के लिए ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की प्रगति के लिए भी है।’’
आर्लेकर ने कहा कि सभी प्रयास 'विकसित भारत 2047' के दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में होने चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को ऐसे उद्यमियों और नवप्रवर्तकों को विकसित करना चाहिए, जो दूसरों के लिए रोजगार सृजित कर सकें।
उन्होंने कहा, ‘‘यही 'विकसित भारत' का मार्ग है। इसे ‘विकसित केरल’ के साथ जोड़ा जाना चाहिए। आइए हम भारत के अच्छे नागरिक बनने का प्रयास करें—तभी हम उस विजन की ओर बढ़ सकते हैं।’’
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी, केरल के वित्त मंत्री के. बालगोपाल और कोल्लम के बिशप पॉल एंटनी मुल्लास्सेरी ने भी अपने विचार रखे।
राधाकृष्णन दो-दिवसीय यात्रा के तहत सोमवार को केरल पहुंचे। वह मंगलवार को तिरुवनंतपुरम में एक समारोह में भाग लेने के बाद वापस लौटेंगे।
भाषा
सुरेश