अजित पवार के बेटे से जुड़ी कंपनी के भूमि सौदे को लेकर तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज
शफीक सुभाष
- 06 Nov 2025, 11:28 PM
- Updated: 11:28 PM
पुणे, छह नवंबर (भाषा) महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बेटे पार्थ पवार से जुड़ी एक कंपनी से संबंधित 300 करोड़ रुपये के भूमि सौदे पर अनियमितताओं के आरोप लगे हैं और इससे राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। आरोप के बाद राज्य सरकार ने उच्च-स्तरीय जांच का आदेश देते हुए एक सब-रजिस्ट्रार को निलंबित कर दिया।
पिंपरी चिंचवड़ पुलिस ने पार्थ पवार से जुड़ी कंपनी से संबंधित जमीन सौदे में तीन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।
इस बीच, राकांपा (एसपी) के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे ने भूमि सौदे में कथित अनियमितताओं की जांच उच्च न्यायालय के एक वर्तमान न्यायाधीश की निगरानी में कराने की मांग की।
उन्होंने यह भी कहा कि जांच पूरी होने तक अजित पवार को देवेंद्र फडणवीस सरकार से इस्तीफा दे देना चाहिए।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भूमि सौदे को "प्रथम दृष्टया गंभीर" बताते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि उन्होंने संबंधित विभागों से मामले से जुड़ी जानकारी मांगी है, जबकि अजित पवार ने जोर देकर कहा कि उनका विवादास्पद सौदे से कोई लेना-देना नहीं है।
विपक्ष ने सत्तारूढ़ ‘महायुति’ पर निशाना साधा और भूमि सौदे की न्यायिक जांच की मांग की। सत्तारूढ़ गठबंधन में भाजपा, अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना शामिल हैं।
सरकार ने एक सब-रजिस्ट्रार को निलंबित कर दिया है और भूमि सौदे में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है।
अधिकारियों ने कहा कि फडणवीस के निर्देश पर गठित जांच समिति का नेतृत्व अपर मुख्य सचिव (राजस्व) विकास खरगे करेंगे।
पार्थ पवार ने अब तक इन आरोपों प्रतिक्रिया नहीं दी है।
निबंधन महानिरीक्षक (आईजीपी) कार्यालय ने पुणे जिले में हवेली संख्या 4 कार्यालय से जुड़े सब-रजिस्ट्रार आर बी तारु को दस्तावेज़ पंजीकरण में अनियमितताओं और राज्य के खजाने को नुकसान पहुंचाने के आरोप में निलंबित करने का आदेश जारी किया।
आदेश में कहा गया है कि तारु के खिलाफ यह कार्रवाई संयुक्त जिला रजिस्ट्रार और कलेक्टर (स्टांप) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर आधारित है।
एक अधिकारी के अनुसार, पुणे के मुंडवा इलाके में सरकार की 40 एकड़ की ‘महार वतन’ भूमि को निजी कंपनी अमाडिया एंटरप्राइजेड एलएलपी को 300 करोड़ रुपये में बेचा गया और इस पर स्टांप शुल्क माफ कर दिया गया। इस कंपनी में पार्थ पवार एक साझेदार हैं।
उन्होंने बताया कि सरकारी भूमि होने के कारण भूखंड को किसी निजी कंपनी को बेचा नहीं जा सकता।
संयुक्त जिला रजिस्ट्रार संतोष हिंगाने की शिकायत पर पिंपरी चिंचवड़ के बावधन पुलिस थाने में दिग्विजय पाटिल, शीतल तेजवानी और रवींद्र तारू के खिलाफ बीएनएस की धारा 316 (5) (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात,) और धारा 318 (2) (धोखाधड़ी) के तहत सरकारी खजाने को छह करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई।
शिकायत में कहा गया है कि आरोपियों ने कथित तौर पर यह जानते हुए भी कि यह जमीन सरकार की है, जमीन का विक्रय विलेख निष्पादित करने के लिए मिलीभगत की।
निबंधन महानिरीक्षक रवींद्र बिनवडे ने कहा कि जांच समिति यह पता लगाएगी कि सरकारी जमीन को एक निजी कंपनी को कैसे बेचा गया और यह भी देखेगी कि छूट मानदंडों के अनुसार दी गई थी या नहीं।
बिनवडे ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘छूट का दावा करने के लिए जमा किए गए दस्तावेज़ों की जांच की जाएगी। समिति यह भी देखेगी कि पंजीकरण के दौरान किस तरह के दस्तावेज़ पेश किए गए थे। तत्काल कार्रवाई के तौर पर हमने सब-रजिस्ट्रार को निलंबित कर दिया है, क्योंकि अगर यह सरकारी ज़मीन है तो पंजीकरण नहीं होना चाहिए था।’’
राजस्व विभाग के सूत्रों ने दावा किया कि संपत्ति दस्तावेज़ में ज़मीन मुंबई सरकार के नाम पर है।
पार्थ पवार के अलावा दिग्विजय पाटिल, जिनके नाम पर पंजीकरण हुआ है इस कंपनी में सह-साझेदार हैं।
आईजीआर कार्यालय के आदेश के अनुसार, सब-रजिस्ट्रार (तारु) को दस्तावेजों का पंजीकरण तभी करना चाहिए था जब यह सत्यापित हो जाता कि सक्षम प्राधिकारी से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) संलग्न है। इस मामले में, प्रथम दृष्टया एनओसी के बिना दस्तावेजों का पंजीकरण किया गया, जिसके परिणामस्वरूप "गंभीर अनियमितताएं" हुईं।
आदेश में कहा गया है, “छूट का लाभ उठाते हुए दस्तावेज़ का पंजीकरण 500 रुपये पर किया गया। हालांकि, छूट की अनुमति दी जा सकती थी, लेकिन दो प्रतिशत की लेवी भी लगती है जिस के तहत एक प्रतिशत स्थानीय निकाय उपकर और एक प्रतिशत मेट्रो उपकर देना था जो छह करोड़ रुपये है और इसे माफ नहीं किया जा सकता है। इसलिए, इसके परिणामस्वरूप राज्य के खजाने को नुकसान हुआ।”
जिला कलेक्ट्रेट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि तहसीलदार रैंक का अधिकारी सूर्यकांत येवले भी वर्तमान भूमि सौदे में जांच के दायरे में है। हालांकि उसे एक अन्य मामले में निलंबित किया गया था।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन ने येवले के खिलाफ महार वतन भूमि को कथित तौर पर निजी व्यक्तियों के नाम पर हस्तांतरित करने की अनुमति देने के लिए जांच शुरू कर दी है, जिसे बाद में अमाडिया को बेच दिया गया।
समझौते के अनुसार 272 व्यक्तियों ने पुणे निवासी शीतल तेजवानी को ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ के माध्यम से मुंडवा भूमि अमाडिया को बेच दी।
फडणवीस ने नागपुर में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "प्रथम दृष्टया, यह मुद्दा गंभीर लगता है। मैंने संबंधित विभागों से मामले से जुड़ी जानकारी मांगी है। जांच के आदेश दे दिए गए हैं।"
वहीं, अजित पवार ने पत्रकारों से कहा कि उनका पूरे मामले से कोई लेना-देना नहीं है।
अजित पवार ने जोर देकर कहा, "मेरा इस (भूमि सौदे) से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। मुख्यमंत्री को निश्चित रूप से इसकी जांच करनी चाहिए। यह उनका अधिकार है।"
उप-मुख्यमंत्री ने कहा, “तीन-चार महीने पहले, मैंने सुना था कि ऐसी कुछ चीजें चल रही थीं। मैंने तब स्पष्ट रूप से कहा था कि मैं ऐसे किसी भी गलत काम को बर्दाश्त नहीं करूंगा। मैंने स्पष्ट निर्देश जारी किए थे कि किसी को भी ऐसी गलत चीजें नहीं करनी चाहिए। मुझे नहीं पता कि उसके बाद क्या हुआ।”
वित्त, योजना और आबकारी विभागों के मंत्री अजित पवार ने स्पष्ट किया कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को लाभ सुनिश्चित करने के लिए कभी किसी अधिकारी को न बुलाया या न निर्देश दिया।
राकांपा अध्यक्ष ने कहा, “मैं अधिकारियों को स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं किसी भी ऐसे व्यक्ति के किसी भी गलत काम का समर्थन नहीं करूंगा जो अपना काम करवाने के लिए मेरे नाम का सहारा ले।”
राज्य सरकार में मंत्री नितेश राणे ने जोर देकर कहा, "भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं करने की मुख्यमंत्री फडणवीस की शैली है। किसी को बख्शा नहीं जाएगा।"
उद्योग मंत्री उदय सामंत ने पार्थ पवार का बचाव करते हुए कहा कि उनके दस्तावेज़ सही थे।
सामंत ने कहा, "वह (पार्थ पवार) सभी आरोपों का जवाब देंगे। मेरे विभाग का फर्म को दिए गए प्रोत्साहनों और छूटों से कोई लेना-देना नहीं था। यह जांचने की जरूरत है कि यह सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी से संबंधित है या नहीं।"
विपक्ष ने भूमि सौदे को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर हमला किया।
कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने सौदे की न्यायिक जांच की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि सौदे से संबंधित फाइल सरकारी विभागों के माध्यम से "रॉकेट की गति" से आगे बढ़ी।
कांग्रेस विधायक ने दावा किया कि कुछ घंटों के भीतर, उद्योग निदेशालय ने न केवल एक आईटी पार्क और डेटा सेंटर के लिए कंपनी को भूमि के हस्तांतरण को मंजूरी दी, बल्कि 21 करोड़ रुपये के स्टांप शुल्क को भी माफ कर दिया।
शिवसेना (उबाठा) अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने लातूर में कहा कि जांच से "कुछ भी ठोस नहीं निकलेगा" और सरकार अंततः इसमें शामिल लोगों को "क्लीन चिट" दे देगी।
भाषा
शफीक