न्यायालय ने संपत्ति कानूनों में प्रणालीगत खामियों को चिह्नित किया, देशव्यापी सुधार की जरूरत बताई
देवेंद्र सुभाष
- 07 Nov 2025, 11:38 PM
- Updated: 11:38 PM
नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) औपनिवेशिक काल के संपत्ति कानूनों में प्रणालीगत खामियों को चिह्नित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को देशव्यापी सुधार की जरूरत बताई तथा विधि आयोग से एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने और संपत्ति निबंधन प्रक्रिया के पुनर्गठन के लिए ‘ब्लॉकचेन’ तकनीक के उपयोग की संभावना पर विचार करने को कहा।
‘ब्लॉकचेन’ तकनीक एक डिजिटल बहीखाता है जो लेन-देन को सुरक्षित और पारदर्शी तरीके से रिकॉर्ड करता है और धोखाधड़ी को कम करती है।
न्यायमूर्ति पमिदिघंतम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में यह निर्देश जारी किया। इसने बिहार के 2019 के उस संशोधन को रद्द कर दिया, जिसमें, निबंधन अधिकारियों को ‘जमाबंदी’ संख्या के बिना बिक्री या उपहार विलेखों के पंजीकरण से इनकार करने का अधिकार दिया गया था।
न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने 32 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘अचल संपत्ति के स्वामित्व के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार में स्वाभाविक रूप से उसे अपनी इच्छानुसार स्वतंत्र रूप से अर्जित करने, रखने और निपटाने की स्वतंत्रता शामिल है। जिस दक्षता और पारदर्शिता के साथ अचल संपत्ति खरीदी और बेची जाती है, वह राष्ट्र की संस्थागत परिपक्वता का प्रदर्शन है और यह उसके नागरिकों के उस विश्वास और भरोसे का प्रमाण है जो वे उसके कानूनी और लेन-देन संबंधी ढांचे की विश्वसनीयता में रखते हैं।’’
फैसले में संपत्ति कानूनों में ‘‘पंजीकरण और स्वामित्व के बीच लंबे समय से चले आ रहे विरोधाभास’’ का उल्लेख किया गया और कहा गया, ‘‘अब समय आ गया है कि हम एक ऐसी व्यवस्था की ओर बढ़ें जिसमें अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री सरल हो और निबंधन सरकार द्वारा गारंटीकृत स्वामित्व का निर्णायक प्रमाण बने।’’
इसमें “सरकार द्वारा गारंटीकृत निर्णायक स्वामित्व प्रणाली” की दिशा में बढ़ने की आवश्यकता पर जोर दिया गया, जो संपत्ति लेन-देन को सरल बनाएगी और मुकदमों के बोझ को कम करेगी।
एक निर्देश में, इसने सुझाव दिया कि केंद्र छेड़छाड़-रहित, पारदर्शी और एकीकृत डिजिटल भूमि रिकॉर्ड प्रणाली बनाने के लिए ‘ब्लॉकचेन’ तकनीक के इस्तेमाल की संभावना पर विचार करे।
न्यायालय ने कहा कि बिहार में दाखिल-खारिज और भूमि सर्वेक्षण प्रक्रिया अभी भी अधूरी है।
यह फैसला समीउल्ला नामक व्यक्ति की उस याचिका पर आया, जिसकी पैरवी अधिवक्ता एथेनम वेलन ने की है। यह याचिका पटना उच्च न्यायालय के उस निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें 2019 के उन नियमों को रद्द करने से इनकार किया गया था, जिनके तहत निबंधन अधिकारी दाखिल खारिज के प्रमाण के बिना बिक्री या उपहार विलेखों के निबंधन से इनकार कर सकते थे।
फैसले में यह स्थापित सिद्धांत दोहराया गया कि दाखिल खारिज से स्वामित्व का अधिकार नहीं मिलता, बल्कि यह केवल राजस्व संबंधी उद्देश्यों के लिए एक प्रविष्टि के रूप में कार्य करता है।
पटना उच्च न्यायालय के 2019 के बिहार संशोधन को बरकरार रखने वाले फैसले को दरकिनार करते हुए इसने अपीलों को स्वीकार किया और 10 अक्टूबर 2019 की अधिसूचना को निरस्त कर दिया।
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