एआई डॉक्टरों की तुलना में अधिक सहानुभूतिपूर्ण साबित हो रहा
(द कन्वरसेशन) मनीषा वैभव
- 10 Nov 2025, 11:36 AM
- Updated: 11:36 AM
(जेरेमी हॉविक, यूनिवर्सिटी ऑफ लीस्टर)
लीस्टर (ब्रिटेन), 10 नवंबर (द कन्वरसेशन) शतरंज, कला और चिकित्सकीय निदान में अपनी क्षमता साबित कर चुकी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीक अब चिकित्सा के क्षेत्र में डॉक्टरों से आगे निकलती दिख रही है। मरीजों के लिए डॉक्टरों में पाया जाने वाला मानवीय गुण ‘सहानुभूति’ अब एआई में पाया जा रहा है।
ब्रिटिश मेडिकल बुलेटिन में प्रकाशित हालिया समीक्षा में 15 अध्ययनों का विश्लेषण किया गया। इसमें एआई द्वारा लिखे गए जवाबों की तुलना स्वास्थ्य पेशेवरों के लिखित उत्तरों से की गई। शोधकर्ताओं ने दोनों प्रकार के उत्तरों का सहानुभूति के आधार पर मूल्यांकन किया। परिणाम चौंकाने वाले थे — 15 में से 13 अध्ययनों (करीब 87 प्रतिशत) में एआई के उत्तर अधिक सहानुभूतिपूर्ण पाए गए।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पहले कि हम स्वास्थ्य सेवा की मानवीय संवेदना एआई के हवाले कर दें, यह समझना जरूरी है कि वास्तव में हो क्या रहा है।
इन अध्ययनों में आमने-सामने बातचीत के बजाय केवल लिखित उत्तरों की तुलना की गई थी, जिससे एआई को एक संरचनात्मक बढ़त मिली। न स्वर की गलत व्याख्या का जोखिम, न शरीर की भाषा को समझने की चुनौती, और सही उत्तर देने के लिए असीमित समय दिया गया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इन अध्ययनों में किसी प्रकार की हानि को नहीं मापा गया। उन्होंने केवल यह जांचा कि उत्तर सहानुभूतिपूर्ण लगते हैं या नहीं। यह नहीं देखा गया कि वे बेहतर परिणाम देते हैं या नहीं।
फिर भी, सीमाओं के बावजूद, निष्कर्ष स्पष्ट था — एआई की “सहानुभूति” का स्तर लगातार बढ़ रहा है और तकनीक हर दिन और उन्नत होती जा रही है।
डॉक्टरों की घटती सहानुभूति
विशेषज्ञ बताते हैं कि समय के साथ डॉक्टरों की सहानुभूति में गिरावट आना आम बात है। ब्रिटेन में हुई कई स्वास्थ्य त्रासदियों की जांच रिपोर्टों — जैसे मिड स्टैफ़र्डशायर एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट से लेकर अन्य रोगी सुरक्षा समीक्षाओं तक — सभी ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि स्वास्थ्य पेशेवरों की असंवेदनशीलता कई बार ऐसे नुकसान की वजह बनी जिसे रोका जा सकता था।
दरअसल, समस्या डॉक्टरों की नहीं, बल्कि प्रणाली की है। डॉक्टर अब अपने समय का लगभग एक-तिहाई हिस्सा कागजी काम और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पर खर्च करते हैं। उन्हें पूर्व-निर्धारित प्रोटोकॉल और प्रक्रियाओं का पालन करना होता है, जिससे वे खुद एक तरह से “बॉट” की तरह काम करने पर मजबूर हो जाते हैं। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं कि जब मुकाबला होता है, तो “बॉट” जीत जाता है।
मरीजों की अधिक संख्या का दबाव इसे और गंभीर बनाता है। दुनियाभर में लगभग एक-तिहाई सामान्य चिकित्सक (जीपी) इस समस्या का शिकार हैं, जबकि कुछ विशेषताओं में यह दर 60 प्रतिशत से भी अधिक है। थके हुए डॉक्टरों के लिए सहानुभूति बनाए रखना मुश्किल हो जाता है — यह नैतिक विफलता नहीं, बल्कि शारीरिक वास्तविकता है। लगातार तनाव मस्तिष्क की भावनात्मक ऊर्जा को खत्म कर देता है।
असल आश्चर्य यह नहीं कि एआई अधिक सहानुभूतिपूर्ण लगती है, बल्कि यह है कि इतनी कठिन परिस्थितियों में डॉक्टर अब भी किसी हद तक सहानुभूति दिखा पाते हैं।
एआई की सीमाएं
किसी भी “केयरबॉट” में वह मानवीय गुण नहीं हो सकता जो वास्तविक देखभाल का आधार है।
एआई किसी डरे हुए बच्चे का हाथ पकड़कर उसे सुरक्षित महसूस नहीं करा सकती, किसी किशोर के चेहरे और देहभाषा से उसकी अनकही चिंता नहीं पढ़ सकती, न ही उपचार अस्वीकार करने वाले मरीज के कारणों को किसी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर समझ सकती है।
वह मरते हुए मरीज के साथ चुपचाप नहीं बैठ सकती, न ही उस क्षण की गहराई साझा कर सकती है जब शब्द विफल हो जाते हैं। वह तब भी नैतिक निर्णय नहीं ले सकती जब चिकित्सकीय दिशानिर्देश किसी मरीज के मूल्यों से टकराते हैं।
यही वे तत्व हैं जो चिकित्सा को मानवीय बनाते हैं — और एआई इन्हें कभी नहीं दोहरा सकती।
क्या होना चाहिए आगे
वर्तमान में खतरा यह है कि एआई उन पहलुओं पर कब्जा कर रही है जिन्हें मनुष्य बेहतर कर सकते हैं। इंसान वही काम कर रहे हैं जिन्हें मशीनें आसानी से कर सकती हैं। इसे सुधारने के लिए तीन बदलाव जरूरी हैं:
(1) सहानुभूतिपूर्ण संचार में चिकित्सा प्रशिक्षण को मजबूत करना। यह केवल मेडिकल स्कूल का एक छोटा-सा अध्याय नहीं, बल्कि स्वास्थ्य शिक्षा का केंद्रीय हिस्सा होना चाहिए।
(2) स्वास्थ्य व्यवस्था का पुनर्गठन, ताकि डॉक्टरों पर प्रशासनिक बोझ कम हो, पर्याप्त परामर्श समय मिले और बर्नआउट से बचाव के लिए प्रणालीगत सुधार किए जा सकें।
(3) एआई के वास्तविक प्रभावों का मूल्यांकन। केवल यह जांचना पर्याप्त नहीं कि जवाब “सहानुभूतिपूर्ण” लगते हैं — बल्कि यह देखना जरूरी है कि उनका मरीजों के परिणामों, गलत सलाह या छूटे हुए निदानों पर क्या असर पड़ता है।
स्वास्थ्य सेवा में “सहानुभूति संकट” तकनीक की कमी से नहीं, बल्कि उन प्रणालियों से पैदा हुआ है जो इंसानों को इंसान बने रहने नहीं देतीं।
एआई प्रशासनिक कार्यों को सरल बनाकर डॉक्टरों को राहत दे सकती है और उन्हें मरीजों से जुड़ने के लिए अधिक समय दे सकती है — लेकिन यदि इसे मानवीय जुड़ाव के स्थान पर रखा गया, तो यही चिकित्सा की सबसे बड़ी ताकत को कमज़ोर कर देगा।
तकनीक आगे बढ़ती रहेगी — सवाल यह है कि हम इसे मानव सहानुभूति का सहायक बनाएंगे या उसका विकल्प। फैसला हमारे हाथ में है, लेकिन समय तेजी से निकल रहा है।
(द कन्वरसेशन) मनीषा