इंदौर के व्यक्ति ने सहेजीं ‘वंदे मातरम्’ की निशानियां, मुर्मू और मोदी को भेजे दुर्लभ बटन
मनीषा
- 10 Nov 2025, 02:47 PM
- Updated: 02:47 PM
(तस्वीरों सहित)
इंदौर (मध्यप्रदेश), 10 नवंबर (भाषा) इंदौर के एक व्यक्ति ने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की विरासत से जुड़ी अलग-अलग दुर्लभ वस्तुएं सहेजी हैं। इनमें देशभक्ति का ज्वार पैदा करने वाले इस तराने के ग्रामोफोन रिकॉर्ड और ‘वंदे मातरम्’ का नारा लिखे ऐतिहासिक बटन शामिल हैं।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के रचे राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ को इस वर्ष 150 वर्ष पूरे हुए हैं। इस मौके पर देश भर में कई कार्यक्रम हो रहे हैं।
दुर्लभ वस्तुओं के संग्राहक जफर अंसारी ने सोमवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उन्होंने पिछले तीन दशक में अलग-अलग जगहों से 'वंदे मातरम्’ की विरासत से जुड़ी राष्ट्रीय महत्व की कई चीजें जुटाई हैं।
उन्होंने बताया, ‘‘इन चीजों में करीब 20 ग्रामोफोन रिकॉर्ड भी हैं। इन रिकॉर्ड में वंदे मातरम् के बांग्ला, हिन्दी और मराठी संस्करणों वाले गीत हैं जिन्हें सुनकर देशभक्ति की भावना मजबूत होती है।"
अंसारी ने बताया कि उनके संग्रह में ‘वंदे मातरम्’ के बटन भी शामिल हैं जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्वारा खादी के जैकेट पर लगाया जाता था।
उन्होंने बताया, ‘‘धातु के बने इन बटन पर राष्ट्रध्वज तिरंगे और चरखे के साथ हिन्दी में वंदे मातरम् उत्कीर्ण है। मैंने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् की 150वीं सालगिरह पर इन बटन का एक-एक सेट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजा है।’’
अंसारी के मुताबिक, उनके पास उस तिरंगे की 1937 में कागज पर छापी गई प्रतिकृति भी है जिसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी में 1907 के दौरान एक कार्यक्रम में फहराया था।
उन्होंने बताया, ‘‘मैडम भीकाजी कामा के विदेशी धरती पर तिरंगा फहराए जाने की ऐतिहासिक घटना के 30 साल बाद पुणे की एक प्रिंटिंग प्रेस ने इस झंडे की प्रतिकृति कागज पर छापी थी। इस झंडे के बीचों-बीच हिन्दी में वंदे मातरम् लिखा गया है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों में इस झंडे की प्रतिकृति बांटकर देशभक्ति और आजादी की अलख जगाई जाती थी।’’
माना जाता है कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘वंदे मातरम्’ की रचना सात नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के अवसर पर की थी। मातृभूमि की वंदना में गाए गए इस तराने को 1950 में राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया था।
‘वंदे मातरम्’ पहली बार साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में चटर्जी के उपन्यास ‘आनंदमठ’ के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ था।
भाषा हर्ष