“विसरा रिपोर्ट बिना देरी के जांच अधिकारी को मिलना सुनिश्चित करें मुख्य सचिव”: उच्च न्यायालय
सं राजेंद्र शोभना
- 12 Nov 2025, 11:06 PM
- Updated: 11:06 PM
प्रयागराज, 12 नवंबर (भाषा) फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरीज (एफएसएल) से विसरा रिपोर्ट, जांच एजेंसियों को मिलने में विलंब को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश के मुख्य सचिव, डीजीपी और महानिदेशक (चिकित्सा स्वास्थ्य) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि विसरा रिपोर्ट बिना समय की बर्बादी के जांच एजेंसियों को उपलब्ध कराई जाए जिससे जांच के दौरान समग्र और उचित आकलन सुगम हो सके।
विसरा परीक्षण मृत्यु के कारण का पता लगाने या मृतक के शरीर में किसी बाहरी तत्व जैसे विष या मादक पदार्थ की उपस्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है।
दहेज के लिए हत्या के एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति समित गोपाल ने उक्त निर्देश पारित किया।
अदालत ने सात नवंबर, 2025 के अपने आदेश में कहा कि यद्यपि मृतक का विसरा लैब को फरवरी, 2024 में भेज दिया गया था और इसकी रिपोर्ट सितंबर 2024 में तैयार कर ली गई थी लेकिन एक फरवरी, 2025 तक यह जांच अधिकारी को नहीं मिली। वास्तव में रिपोर्ट को इसके बाद केस डायरी में संलग्न किया गया। इस बीच, आरोप पत्र 13 सितंबर, 2024 को दाखिल कर दिया गया और विसरा रिपोर्ट मिलने से पहले ही 11 नवंबर, 2024 को आरोप पत्र को संज्ञान में ले लिया गया था।
अदालत ने कहा, ‘‘यह तथ्य परेशान करने वाला है। एफएसएल द्वारा जांच एजेंसी को विसरा रिपोर्ट जल्द भेजने की एक प्रक्रिया होनी आवश्यक है।’’
अदालत ने आगे कहा कि इस मामले में जाच बगैर विसरा रिपोर्ट के ही पूरी कर ली गई और आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया। इससे पता चलता है कि जहां तक मृतक की मृत्यु का कारण का संबंध है, यह निर्णयात्मक नहीं था। यह विलंब दर्शाता है कि जांच किसी ना किसी तरह से अपूर्ण थी।
विसरा रिपोर्ट को परिस्थितियों की श्रृंखला में एक आवश्यक कड़ी बताते हुए अदालत ने जोर दिया कि इस तरह के महत्वपूर्ण साक्ष्य एक उचित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए तय समय सीमा में जांच एजेंसी के हाथ में होने चाहिए।
मौजूदा मामले में मृतका के भाई ने यह आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि उसकी बहन का उसके पति और सास ससुर द्वारा एक मोटरसाइकिल और एक लाख रुपये दहेज के लिए उत्पीड़न किया गया और संदिग्ध परिस्थितियों में उसकी मृत्यु हो गई।
शासकीय अधिवक्ता ने जमानत याचिका का विरोध किया। अदालत ने याचिकाकर्ता राम रतन को जमानत देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि यह साबित है कि याचिकाकर्ता मृतक का पति है और उसके खिलाफ दहेज के लिए उत्पीड़न करने का आरोप है। महिला का शादी के सात वर्ष के भीतर अप्राकृतिक तरीके से मृत्यु हो गई।
भाषा सं राजेंद्र