कंपनी के पक्ष में आदेश के लिए न्यायाधीश के एनसीएलएटी सदस्य से संपर्क के दावे पर सीजेआई करेंगे विचार
सुभाष दिलीप
- 14 Nov 2025, 09:05 PM
- Updated: 09:05 PM
नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायाधीश द्वारा एक कंपनी के पक्ष में आदेश पारित कराने के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (एनसीएलएटी), चेन्नई के न्यायिक सदस्य से संपर्क करने संबंधी सनसनीखेज दावा शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय के जांच के दायरे में आ गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रशासनिक पक्ष से इस मामले पर प्रधान न्यायाधीश विचार करेंगे।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने शीर्ष अदालत के समक्ष दावा किया कि उनकी जानकारी के अनुसार, ‘‘यह संदेश एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने भेजा था’’ जो कंपनी मामलों के अपीलीय अधिकरण के न्यायिक सदस्य को भेजा गया था।
इस दावे पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत के अगले प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले को, जिसमें उक्त न्यायिक सदस्य ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है, एनसीएलएटी की चेन्नई स्थित पीठ से एनसीएलएटी की नयी दिल्ली स्थित प्रधान पीठ को स्थानांतरित कर दिया।
पीठ ने निजी कंपनी एएस मेटकॉर्प प्राइवेट लिमिटेड की ओर से पेश हुए भूषण से कहा, ‘‘इस मामले में उठाया गया बड़ा मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण है और प्रशासनिक पक्ष से प्रधान न्यायाधीश इस पर विचार करेंगे।’’
मेटकॉर्प प्राइवेट लिमिटेड के मामले से एनसीएलएटी, चेन्नई के न्यायिक सदस्य ने खुद को अलग कर लिया था।
एनसीएलएटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अशोक भूषण से अनुरोध किया गया कि वह अपनी अध्यक्षता वाली पीठ में मामले की सुनवाई करें और विवाद का जल्द से जल्द निस्तारण करें।
शीर्ष अदालत ने हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण द्वारा नियुक्त अंतरिम समाधान विशेषज्ञ (आईआरपी) को भी दिवालियापन विवाद में आगे बढ़ने का निर्देश दिया।
पीठ के अनुसार, उक्त न्यायिक सदस्य ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग करने से पहले अपने आदेश में घटना को दर्ज किया है, जो प्रशासनिक दृष्टिकोण से इस मुद्दे पर विचार करने के लिए पर्याप्त है।
शीर्ष अदालत ने आदेश दिया, ‘‘इसके परिणामस्वरूप, हम निर्देश देते हैं कि मामले के विशिष्ट तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, एनसीएलएटी, चेन्नई के समक्ष लंबित कंपनी की अपील को सभी रिकॉर्डों के साथ नयी दिल्ली स्थित एनसीएलएटी की प्रधान पीठ को स्थानांतरित कर दिया जाए। हम एनसीएलएटी के अध्यक्ष से अनुरोध करते हैं कि वे कंपनी की अपील को अपनी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें और प्रतिवादी पक्ष को नोटिस जारी करने के बाद जल्द से जल्द उस पर निर्णय लें।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम इस रिट याचिका को प्रधान न्यायाधीश के विचारार्थ रिकॉर्ड में जानकारी लाने के लिए एक अभ्यावेदन के रूप में रखना उचित समझते हैं। कानून को अपना काम करने दीजिए।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उपलब्ध सामग्री के आधार पर, यह स्पष्ट है कि यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) के तहत एक अपराध है और उचित कदम यह होगा कि उनसे संपर्क करने वाले वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए।
उन्होंने दलील दी कि उनकी जानकारी के अनुसार, ‘‘यह संदेश एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की ओर से आया था।’’
भूषण ने कहा कि एनसीएलएटी के न्यायिक सदस्य ने व्हाट्सएप संदेश का स्क्रीनशॉट रख लिया है और इसे दिवाला विवाद में पक्ष को दिखाया तथा बताया कि उच्च न्यायपालिका के सबसे सम्मानित सदस्यों में से एक ने उनसे संपर्क किया था और एक विशेष पक्ष के हित में आदेश देने का अनुरोध किया था।
पीठ ने कहा कि वह इस पर और कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेगी, क्योंकि उसने मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखने का आदेश दिया है, जो प्रशासनिक पक्ष से इस मुद्दे पर विचार करेंगे।
एएस मेट कॉर्प प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर यह याचिका, केएलएसआर इंफ्राटेक लिमिटेड के दिवालियापन से संबंधित एनसीएलएटी चेन्नई के समक्ष चल रही कार्यवाही से उपजी है।
तेरह अगस्त 2025 को एनसीएलएटी में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा ने अदालत में यह कहकर सनसनी फैला दी कि उन्हें उच्च न्यायपालिका के एक वरिष्ठ सदस्य से संदेश मिले हैं, जिसमें उन पर एक विशेष पक्षकार के पक्ष में फैसला देने के लिए दबाव डाला गया है।
भाषा सुभाष