एक दशक के शोध से पता चलता है कि डिजिटल युग में लोग मीडिया पर भरोसा क्यों नहीं करते?
माधव
- 15 Nov 2025, 05:54 PM
- Updated: 05:54 PM
(कैथरीन हैपर, ग्लासगो विश्वविद्यालय द्वारा)
ग्लासगो, 15 नवंबर (द कन्वरसेशन) आज यह लगभग निर्विवाद सत्य है कि दुनियाभर में मीडिया पर भरोसा कम हो रहा है। लेकिन शोधकर्ताओं के लिए यह स्पष्ट रूप से दर्शाना मुश्किल रहा है कि हम 20वीं सदी के उच्च विश्वसनीयता वाले मीडिया युग से डिजिटल युग के कम भरोसे वाले दौर में कैसे पहुंच गये।
लोगों के मीडिया से जुड़ने के तरीके और विश्वसनीय जानकारी के लिए उनके रुख में बदलाव आ रहा है। वर्ष 2011 से 2024 तक, ‘ग्लासगो यूनिवर्सिटी मीडिया ग्रुप’ में मेरे और मेरे सहयोगियों ने कई अध्ययन समूहों के जरिए इन रुझानों का पता लगाया है।
हमारे निष्कर्ष, जिनका सारांश मेरी पुस्तक ‘द कंस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक ओपनियन इन ए डिजिटल ऐज’ में दिया गया है। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि बहुत से लोगों को लगता है कि आज पत्रकारिता शक्तिशाली लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है, न कि उनके लिए बोलती है।
बीसवीं सदी के प्रसारण और प्रेस के दर्शकों के लिए, भरोसा काफी हद तक उस चीज पर टिका था जिसे हम विश्वास की छलांग कह सकते हैं। समाचार माध्यमों की संख्या बहुत कम होने के कारण दर्शकों के पास जानकारी के लिए बहुत कम विकल्प थे।
ज्यादातर लोगों के पास अन्य स्रोतों तक पहुंच नहीं थी या समाचारों में बताई गई बातों का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं था - हालांकि जब उनके पास था, तो उन्होंने समाचार रिपोर्टों पर कम भरोसा किया।
पारंपरिक मीडिया संस्थान अब अपनी सामग्री प्रदान करने के लिए डिजिटल मंचों पर निर्भर हैं, जहां इन्हें वैकल्पिक सूचना स्रोतों की विस्तृत श्रृंखला के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।
मुख्यधारा की खबरें अब भी सरकार, व्यापार और आर्थिक विशेषज्ञों के दृष्टिकोण से संचालित होती हैं। लेकिन डिजिटल मंच सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, स्वतंत्र पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और रोजमर्रा के उपयोगकर्ताओं की आवाज को भी सुनने का मौका प्रदान करते हैं।
इस माहौल में, मुख्यधारा के समाचार माध्यमों के लिए काम करने वाले पत्रकारों से यह साबित करने की अपेक्षा की जाती है कि वे अपने दर्शकों के हितों का सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व करते हैं - अब पाठक, श्रोता और दर्शक इसे सत्य नहीं मानते।
समूह के प्रतिभागियों ने कई घंटों की चर्चा के दौरान मुझे और मेरे सहयोगियों को बताया कि वे मुख्यधारा की पत्रकारिता को एक असफल राजनीतिक व्यवस्था से जुड़ा हुआ देखते हैं। उदाहरण के लिए पत्रकार आर्थिक वृद्धि के प्रतिशत के बारे में सकारात्मक रिपोर्ट दे सकते हैं और समझदारीपूर्ण व्यय योजनाओं की मांग कर सकते हैं, लेकिन बहुत से लोग यह नहीं मानते कि चीजें बेहतर होंगी।
हमारे सबसे हाल के अध्ययन में, जिसमें जीवन-यापन की लागत के संकट के संबंध में मीडिया सामग्री और दर्शकों की प्रतिक्रिया का विश्लेषण किया गया था (और जिसे 2026 में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जायेगा), हमने पाया कि पत्रकारों ने, राजनीतिज्ञों की तरह, संकट को एक अल्पकालिक झटके की तरह रिपोर्ट किया, जिससे खाद्य और ऊर्जा की कीमतें अस्थायी रूप से बढ़ गईं।
लेकिन हमारे प्रतिभागियों ने इस संकट को अपने समुदायों और जीवन स्तर में दीर्घकालिक गिरावट के रूप में समझा। दूसरे शब्दों में, पत्रकारों और उनके दर्शकों की प्राथमिकताओं और विश्वासों के बीच एक विसंगति है।
आप अपना समाचार कहां से प्राप्त करते हैं?
जानकारी प्राप्त करने के लिए पहले से कहीं अधिक विकल्पों के साथ, लोग अब अपनी आवश्यकताओं और परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न मंचों और माध्यमों के बीच स्थानांतरित होते हैं। महामारी के दौरान, लाखों लोगों ने नवीनतम स्वास्थ्य मार्गदर्शन के लिए बीबीसी का रुख किया। वहीं दूसरी ओर, लोग मनोरंजन और समाचारों के लिए एल्गोरिथम-संचालित सोशल मीडिया फीड्स का अनुसरण करते हैं।
हालांकि, हमारा शोध बताता है कि ज्यादातर लोगों के पास विश्वसनीय जानकारी देने के लिए एक प्रमुख जुड़ाव का तरीका होता है। प्राथमिकताओं के आधार पर ये मुख्यतः तीन श्रेणियों में आते हैं:
1. मुख्यधारा के स्रोत
वृद्ध और उच्च-शिक्षित प्रतिभागी मुख्यधारा की खबरों पर भरोसा करते थे। वे आधिकारिक साक्ष्यों, राजनीतिज्ञों और विशेषज्ञों जैसी आधिकारिक आवाजों पर भरोसा करते थे।
2. गैर-मुख्यधारा स्रोत
निम्न आय वाले प्रतिभागियों के उन स्रोतों से जुड़ने की अधिक संभावना थी जिन्हें मुख्यधारा के ‘‘एजेंडे’’ से मुक्त माना जाता था। अक्सर पक्षपातपूर्ण पॉडकास्टर, स्वतंत्र आउटलेट और ब्लॉगर्स पर भरोसा किया जाता था और साथ ही आमतौर पर सोशल मीडिया पोस्ट पर भी - जो सार्वजनिक संस्थानों और प्रतिष्ठित हस्तियों के प्रति अपनी शंका व्यक्त करते थे।
3. स्रोतों का मिश्रण
युवा प्रतिभागियों द्वारा गूगल समाचार, मित्रों के समर्थन जैसे एकत्रीकरण ऐप के माध्यम से समाचारों को फिल्टर करने, या प्लेटफॉर्म एल्गोरिदम द्वारा निर्देशित होने की अधिक संभावना थी।
एल्गोरिदम-संचालित प्लेटफार्म के संदर्भ में नये सूचना स्रोत उभर रहे हैं, जो उपयोगकर्ताओं को उत्तेजक सामग्री प्रदान करते हैं, साथ ही राजनीतिक समूह भी लोगों की कुंठाओं को बढ़ाते हैं।
खतरा यह है कि जैसे-जैसे अधिक संख्या में लोग पारंपरिक समाचारों से हटकर बिना किसी औपचारिक सत्यापन प्रक्रिया या राजनीतिक दलों की उचित जांच के सूचना स्रोतों की ओर बढ़ रहे हैं, इस बात को लेकर अनिश्चितता बढ़ती जा रही है कि किस पर या किस बात पर भरोसा किया जाये।
(द कन्वरसेशन)
देवेंद्र