आधार को नागरिकता नहीं, पहचान के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल करने के निर्देश दिए थे: निर्वाचन आयोग
पारुल माधव
- 15 Nov 2025, 04:51 PM
- Updated: 04:51 PM
नयी दिल्ली, 15 नवंबर (भाषा) निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने बिहार में संशोधित मतदाता सूची में नाम शामिल करने या हटाने के लिए आधार को नागरिकता के नहीं, बल्कि पहचान के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल के निर्देश पहले ही जारी कर दिए थे।
शीर्ष अदालत में दाखिल जवाब में आयोग ने कहा कि न्यायालय ने मतदाता सूची को अद्यतन करने के लिए आधार के इस्तेमाल के नियम आठ सितंबर को ही स्पष्ट कर दिए थे।
आयोग ने कहा कि अदालत ने स्पष्ट किया था कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए) 1950 की धारा 23(4) के मद्देनजर आधार कार्ड का इस्तेमाल पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए।
आरपीए की धारा 23 मतदाता सूची में नाम शामिल करने से संबंधित है।
निर्वाचन आयोग ने कहा, “उपरोक्त आदेश का पालन करते हुए आयोग ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) को नौ सितंबर 2025 को निर्देश जारी कर दिया था कि राज्य की संशोधित मतदाता सूची में नाम शामिल करने या हटाने के लिए आधार को पहचान के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जाए, न कि नागरिकता के प्रमाण के तौर पर।”
आयोग ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर उस अंतरिम याचिका पर अपना जवाब दाखिल किया, जिसमें यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि आधार का इस्तेमाल आरपीए 1950 की धारा 23(4) की भावना के अनुरूप केवल पहचान स्थापित करने और सत्यापन के उद्देश्य से किया जाए।
निर्वाचन आयोग ने कहा कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने अगस्त 2023 में जारी एक कार्यालय ज्ञापन (ओएम) में स्पष्ट किया था कि आधार नागरिकता, निवास या जन्म तिथि का प्रमाण नहीं है।
उसने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय ने एक मामले में संबंधित कार्यालय ज्ञापन का हवाला देते हुए स्पष्ट किया था था कि यह (आधार) वास्तव में जन्मतिथि का प्रमाण नहीं है और इसे (जन्मतिथि) साबित करने का दायित्व आधार धारक पर है।
आयोग ने कहा, “यह भी रेखांकित करना अहम है कि इस न्यायालय ने आठ सितंबर 2025 के अपने आदेश के जरिये मतदाता सूची में नाम शामिल करने और हटाने के लिए आधार के इस्तेमाल के नियम पहले ही स्पष्ट कर दिए थे।”
शीर्ष अदालत ने उपाध्याय की अर्जी पर सात अक्टूबर को नोटिस जारी किया था।
पीठ ने कहा था कि शीर्ष अदालत पहले ही कह चुकी है कि आधार नागरिकता और निवास का प्रमाण नहीं है।
यह अर्जी उस लंबित याचिका के संदर्भ में दायर की गई थी, जिसमें निर्वाचन आयोग को पूरे देश में नियमित अंतराल पर मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
भाषा पारुल