हवाई किराए में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव रोकने संबंधी याचिका पर न्यायालय ने केंद्र से जवाब मांगा
वैभव नेत्रपाल
- 17 Nov 2025, 07:26 PM
- Updated: 07:26 PM
नयी दिल्ली, 17 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र और अन्य से उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें भारत में निजी विमानन कंपनियों द्वारा लागू हवाई किराए और अन्य शुल्कों में ‘अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव’ को नियंत्रित करने के लिए बाध्यकारी नियामक दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है।
शीर्ष अदालत सामाजिक कार्यकर्ता एस लक्ष्मीनारायणन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई, जिन्होंने नागरिक उड्डयन क्षेत्र में पारदर्शिता और यात्री सुरक्षा के लिए एक मजबूत, स्वतंत्र नियामक स्थापित करने की मांग की है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय और भारतीय विमानपत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण को नोटिस जारी कर याचिका पर उनका जवाब मांगा और मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की।
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र श्रीवास्तव और अधिवक्ता चारु माथुर तथा अभिनव वर्मा उपस्थित हुए।
याचिका में दावा किया गया है कि सभी निजी एयरलाइन ने बिना किसी ठोस कारण के, इकोनॉमी क्लास के यात्रियों के लिए मुफ्त ‘चेक-इन बैगेज’ भत्ते को 25 किलोग्राम से घटाकर 15 किलोग्राम कर दिया है, ‘‘जिससे पहले टिकट सेवा का हिस्सा रहे सामान को राजस्व के एक नए स्रोत में बदल दिया गया है’’।
याचिका में कहा गया है कि ‘‘चेक-इन के लिए केवल एक ही सामान ले जाने की अनुमति देने की नई नीति और ‘चेक-इन बैगेज’ का लाभ न उठाने वाले यात्रियों को किसी भी प्रकार की छूट, मुआवज़ा या लाभ न देना, इस उपाय की मनमानी और भेदभावपूर्ण प्रकृति को दर्शाता है।’’
याचिका में दावा किया गया है कि वर्तमान में, किसी भी प्राधिकरण के पास हवाई किराए या सहायक शुल्कों की समीक्षा करने या उन्हें सीमित करने का अधिकार नहीं है, जिससे एयरलाइन छिपे हुए शुल्कों और अप्रत्याशित मूल्य निर्धारण के माध्यम से उपभोक्ताओं का शोषण कर रही हैं।
याचिका में कहा गया है कि ‘‘एयरलाइन का अनियमित, अपारदर्शी और शोषक आचरण, जो मनमाने ढंग से किराया वृद्धि, सेवाओं में एकतरफा कमी, जमीनी स्तर पर शिकायत निवारण का अभाव और अनुचित गतिशील मूल्य निर्धारण एल्गोरिदम के रूप में प्रकट होता है, नागरिकों की समानता, आवागमन की स्वतंत्रता और सम्मानपूर्वक जीवन जीने के मौलिक अधिकारों का सीधे तौर पर उल्लंघन करता है।’’
इसमें यह भी कहा गया है कि नियामक सुरक्षा उपायों के अभाव के परिणामस्वरूप, विशेष रूप से त्योहारों या मौसम की गड़बड़ी के दौरान, मनमाने ढंग से किराया वृद्धि होती है, जिससे गरीब और अंतिम समय में यात्रा करने वाले यात्रियों को अत्यधिक नुकसान होता है।
याचिका में कहा गया है कि कुछ धनी लोग पहले से योजना बनाकर बुकिंग कर सकते हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को ‘सर्ज प्राइसिंग’ के चरम पर होने के बीच टिकट खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
इसमें कहा गया है, ‘‘पहुंच और अवसर में यह असमानता अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के मूल पर प्रहार करती है।’’
संविधान का अनुच्छेद 14 जहां कानून के समक्ष समानता से संबंधित है, वहीं अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है।
भाषा वैभव