बेंगलुरु की महिला ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटाले में करीब 32 करोड़ रुपये गंवाए
अमित नरेश
- 17 Nov 2025, 08:17 PM
- Updated: 08:17 PM
बेंगलुरु, 17 नवंबर (भाषा) कर्नाटक के बेंगलुरु की 57 वर्षीय एक महिला सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने छह महीने से अधिक समय तक चले एक 'डिजिटल अरेस्ट' घोटाले में कथित तौर पर लगभग 32 करोड़ रुपये गंवा दिए। यह शायद कर्नाटक में इस प्रकार की सबसे बड़ी साइबर धोखाधड़ी है और इस संबंध में एक मामला दर्ज कर लिया गया है। यह जानकारी पुलिस ने सोमवार को दी।
धोखेबाजों ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अधिकारी बनकर स्काइप के माध्यम से महिला पर लगातार निगरानी रखकर उसे "डिजिटल अरेस्ट" की स्थिति में रखा। ठगों ने महिला को गिरफ्तार करने की धमकी दी और उससे सारी वित्तीय जानकारी हासिल कर ली तथा 187 बैंकिंग लेनदेन करने के लिए दबाव डाला।
शहर के इंदिरानगर की सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी शिकायत में कहा कि अंत में 'क्लीयरेंस लेटर' मिलने तक धोखबाजों ने उसे छह महीने से अधिक समय तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ के धोखे में रखा।
महिला ने अपनी शिकायत में कहा कि इसकी शुरुआत 15 सितंबर, 2024 को एक व्यक्ति के फोन से हुई, जिसने डीएचएल अंधेरी से होने का दावा करते हुए आरोप लगाया कि उसके नाम से बुक किए गए पार्सल में क्रेडिट कार्ड, पासपोर्ट और ‘एमडीएमए’ है और उसकी पहचान का दुरुपयोग किया गया है।
मेथिलीन-डाइऑक्सीमेथाम्फेटामीन (एमएमडीए) एक मादक पदार्थ होता है।
इससे पहले कि महिला कोई जवाब दे पाती, कॉल व्यक्तियों के पास स्थानांतरित कर दी गई जिन्होंने खुद को सीबीआई अधिकारी बताया और उसे धमकाया और दावा किया कि "सारे सबूत आपके खिलाफ हैं"।
महिला की शिकायत के अनुसार जालसाज़ों ने उसे पुलिस से संपर्क नहीं करने की चेतावनी दी और कहा कि वे उसके घर पर नजर रख रहे हैं। शिकायत के अनुसार अपने परिवार और बेटे की होने वाली शादी के डर से, वह चुप रही।
शिकायत के अनुसार महिला को दो स्काइप आईडी बनाने और वीडियो पर बने रहने का निर्देश दिया गया था। इसके अनुसार मोहित हांडा नामक एक व्यक्ति ने दो दिन तक उस पर नजर रखी, उसके बाद राहुल यादव ने एक हफ्ते तक उस पर नजर रखी।
एक और जालसाज प्रदीप सिंह ने खुद को सीबीआई का वरिष्ठ अधिकारी बताया और उस पर अपनी बेगुनाही साबित करने का दबाव डाला।
शिकायतकर्ता ने कहा कि ऐसा प्रतीत हुआ कि समूह को उसकी फ़ोन गतिविधि और लोकेशन की जानकारी थी, जिससे उसका डर और बढ़ गया। शिकायतकर्ता ने कहा कि उन्होंने उसे आरबीआई की वित्तीय खुफिया इकाई से अपनी सारी संपत्ति का सत्यापन कराने को कहा और इसे आधिकारिक दिखाने के लिए जाली पत्र भी दिखाए।
उमारानी ने 24 सितंबर से 22 अक्टूबर तक अपने वित्तीय विवरण साझा किए और बड़ी रकम हस्तांतरित की। उन्होंने 24 अक्टूबर और तीन नवंबर के बीच दो करोड़ रुपये की कथित जमानत राशि जमा की, जिसके बाद "कर" के लिए और भुगतान किया गया।
महिला को छह दिसंबर को उसके बेटे की सगाई से पहले ‘क्लियरेंस लेटर’ देने का वादा किया गया था, लेकिन उसे एक फर्ज़ी पत्र मिला। इस दबाव के कारण महिला मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो गई।
शिकायत के अनुसार पीड़िता को एक दिसंबर को ‘क्लियरेंस लेटर’ मिला लेकिन इतने दिनों तक तनाव झेलने के बाद वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई जिससे उबरने और ठीक होने में एक महीने का समय लगा।
उन्होंने कहा, "इस पूरे समय मुझे स्काइप पर बताना पड़ता था कि मैं कहां हूं और क्या कर रही हूं। प्रदीप सिंह नाम का यह व्यक्ति रोज़ाना संपर्क में रहता था। मुझे बताया गया था कि सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद 25 फ़रवरी तक पैसे वापस कर दिए जाएंगे।’’
दिसंबर के बाद घोटालेबाजों ने ‘प्रोसेसिंग’ शुल्क की मांग की और रिफंड को फरवरी और फिर मार्च तक टालते रहे। 26 मार्च, 2025 को सभी तरह का संवाद बंद हो गया।
शिकायतकर्ता ने शिकायत दर्ज कराने के लिए जून में अपने बेटे की शादी तक इंतजार किया।
पीड़िता ने कहा, "187 लेनदेन के माध्यम से मुझसे लगभग 31.83 करोड़ रुपये की राशि वसूली गई, जो मैंने ही जमा की थी।"
महिला ने अधिकारियों से पूरे मामले की जांच करने की मांग की है।
भाषा अमित