न्यायालय का बढ़ते प्रदूषण स्तर से जुड़ी नई जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार
संतोष मनीषा
- 18 Nov 2025, 04:58 PM
- Updated: 04:58 PM
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ द्वारा दायर उस नई जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें देश में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर के समाधान में ‘लगातार और व्यवस्थागत विफलता’ से निपटने के लिए तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप का अनुरोध किया गया है।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने समग्र स्वास्थ्य प्रशिक्षक ल्यूक क्रिस्टोफर कॉउटिन्हो को जनहित याचिका वापस लेने और पर्यावरणविद एम सी मेहता द्वारा प्रदूषण पर दायर एक लंबित मामले में हस्तक्षेप याचिका दायर करने की अनुमति दे दी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता एम सी मेहता मामले में लंबित कार्यवाही में हस्तक्षेप याचिका दायर करने के लिए याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता चाहते हैं।’’
अदालत प्रदूषण पर मुख्य याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगी। कॉउटिन्हो ने 24 अक्टूबर को याचिका दायर की थी और केंद्र, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम), कई केंद्रीय मंत्रालयों, नीति आयोग और दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र की सरकारों को पक्षकार बनाया था।
याचिका में कहा गया है कि वर्तमान वायु प्रदूषण संकट ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ के स्तर पर पहुंच गया है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
याचिका में वायु प्रदूषण को एक राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के अलावा एक समयबद्ध राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार करने का अनुरोध किया गया था।
इसमें कहा गया है, ‘‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी), जिसे 2019 में वर्ष 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर को 20-30 प्रतिशत तक कम करने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था (इस लक्ष्य को बाद में 2026 तक 40 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया), अपने सामान्य उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाया है। जुलाई 2025 तक, आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 130 निर्दिष्ट शहरों में से केवल 25 ने वर्ष 2017 के मुकाबले पीएम10 के स्तर में 40 प्रतिशत की कमी हासिल की है, जबकि 25 अन्य शहरों में वास्तव में वृद्धि देखी गई है।’’
याचिका में आरोप लगाया गया है कि अकेले दिल्ली में 22 लाख स्कूली बच्चों के फेफड़ों को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंच चुकी है, जिसकी पुष्टि सरकारी और चिकित्सा अध्ययनों से होती है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियां अपर्याप्त हैं।
इसमें एक स्वतंत्र पर्यावरणीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ की अध्यक्षता में वायु गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य पर एक राष्ट्रीय कार्यबल गठित करने की भी मांग की गई है।
इसमें फसल अवशेष जलाने पर तत्काल अंकुश लगाने, किसानों को प्रोत्साहन और टिकाऊ विकल्प देने के अलावा उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने और ई-मोबिलिटी तथा सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में वास्तविक समय पर निगरानी और जानकारी सार्वजनिक करके औद्योगिक उत्सर्जन मानदंडों को सख्ती से लागू करने का अनुरोध किया गया है।
भाषा
संतोष